घोर शहरीकरण के बावजूद लोकल कृषि मंडियों का महत्व और भी तेजी से बढ़ रहा है. एक रिपोर्ट में यह बात सामने आई है. रिपोर्ट कहती है कि लोकल कृषि मंडियों से अनाज और सब्जियों का कारोबार अधिक देखा जा रहा है. इसी आधार पर एक मांग ये उठ रही है कि सरकार को लोकल एग्री मार्केट को अधिक मजबूती देने पर विचार करना चाहिए. ये लोकल कृषि मंडिया वही होती हैं जो आपके गांव-घर के नजदीक होती है और जहां किसान अपनी उपज लेकर बेचते हैं. इन लोकल मंडियों से किसानों की उपज निकल कर शहरों की बड़ी-बड़ी मंडियों में पहुंचती है.
'सिचुएशन एसेसमेंट ऑफ एग्रीकल्चरल हाउसहोल्ड्स एंड लैंड एंड होल्डिंग्स ऑफ हाउसहोल्ड्स इन रूरल इंडिया (2019)' की रिपोर्ट बताती है कि मंडियों में जो कुल बिक्री हुई उनमें 93 परसेंट ज्वार, 90 परसेंट मक्का, 82 परसेंट आलू, 88 परसेंट प्याज और 62 परसेंट धान देश की लोकल मंडियों में बेची गई. इस आंकड़े से लोकल मंडियों की महत्व का पता चलता है. इससे इस जरूरत को भी बल मिलता है कि सरकार को लोकल मंडियों को मजबूत करने पर अधिक फोकस करना चाहिए क्योंकि अनाज और बाकी की उपजों का अधिक व्यापार वहीं से होता है.
साल 2018-19 के बजट में सरकार ने ऐलान किया था कि देश की मौजूदा 22,000 मंडियों और हाटों को अपग्रेड किया जाएगा. इन हाटों को ग्रामीण एग्रीकल्चरल मार्केट यानी कि GrAMs में तब्दील किया जाएगा. सरकार की योजना के मुताबिक इन मंडियों के इंफ्रास्ट्रक्चर को मनरेगा और अन्य सरकारी स्कीमों की मदद से सुधारा जाएगा. अप्रैल 2022 तक के डेटा बताते हैं कि सरकार ने देश के 1351 हाटों को मनरेगा के तहत अपग्रेड कर दिया है जहां इंफ्रास्ट्रक्चर सुधारा गया है और सुविधाएं बढ़ाई गई हैं. इसके अलावा 1632 हाटों के सुधार पर काम जारी है.
ग्रामीण इलाके के किसान अपनी उपज को इन हाटों और मंडियों में बेचते हैं. यहां के व्यापारी किसानों से उनकी उपज खरीदते हैं. हाटों में लोकल प्राइवेट ट्रेडर होते हैं जिन्हें किसान अपनी उपज बेचते हैं. रिपोर्ट बताती है कि किसान एग्रीकल्चरल प्रोड्यूस मार्केट कमेटी के बजाय अपनी उपज को लोकल मंडियों और हाटों में बेचना पसंद करते हैं. सर्वे में पता चला है कि एपीएमसी में केवल 3 परसेंट ज्वार और मक्का, 7.5 परसेंट आलू, 5.2 परसेंट प्याज और 2.7 परसेंट धान बेचे गए. यह आंकड़ा जनवरी से जून 2019 का है.
सरकार ने देश के 9477 हाटों पर सर्वे किया जिसमें पता चला कि उनमें 72 परसेंट हाट रिटेल मार्केट, 24 परसेंट रिटेल और होलसेल मार्केट और 70 परसेंट लोकल सरकारी संस्थाओं के द्वारा चलाए जाते हैं. हालांकि लोकल सरकारी संस्थाओं के पास पर्याप्त फंड नहीं होता जिससे कि वे ग्रामीण हाटों का इंफ्रास्ट्रक्चर दुरुस्त कर सकें. इनमें अधिकांश हाट (69 परसेंट) साप्ताहिक चलते हैं जबकि 11 परसेंट हाट रोजाना आधार पर चलते हैं. दिलचस्प बात ये है कि इन हाटों में सबसे अधिक हिस्सेदारी कृषि और बागवानी के उत्पादों की है.
सरकार ने देश के हाटों, लोकल मंडियों और ग्रामीण कृषि बाजारों के प्रबंधन के लिए खास गाइडलाइंस तय की है. ग्रामीण हाटों को अपग्रेड करने के बाद इन्हें ई-नाम प्लेटफॉर्म से जोड़ने की योजना है. ई-नाम से जुड़ने के बाद किसान ऑनलाइन अपनी उपज बेच सकेंगे और इसका ट्रांजैक्शन भी ऑनलाइन हो सकेगा. इससे किसानों को मिलने वाला पैसा जल्द खाते में आएगा, कैश पर निर्भरता भी कम होगी.
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