राज्य के किसान पैक्स में धान,गेहूं सहित अन्य फसलों को बेचते ही थे. लेकिन अब वे पैक्स से कृषि यंत्र किराये पर ले सकते हैं. इसके लिए सरकार सूबे के सभी पैक्स में कृषि संयंत्र बैंक की स्थापना करने की योजना बना रही है. हाल के समय में सूबे के 2927 पैक्स में कृषि संयंत्र बैंक स्थापित किए जा रहे हैं. कृषि विभाग के द्वारा मिली जानकारी के अनुसार कृषि विभाग भौगोलिक जरूरतों को देखते हुए कृषि यंत्रों की सूची पैक्स को उपलब्ध कराएगी. कृषि यंत्र खरीदने के लिए हर पैक्स को करीब 15 लाख रुपये दिए जाएंगे.
हाल के समय में कई पैक्स के द्वारा किसानों को भाड़े पर कृषि यंत्र भी दिया जा रहा है. कैमूर जिले के नरहन सह जबुरना पंचायत के पैक्स अध्यक्ष और सासाराम भभुआ सेंट्रल कॉपरेटिव बैंक सासाराम के उपाध्यक्ष विजय बहादुर सिंह कहते हैं कि सरकार की यह योजना काफी अच्छी है. लेकिन जिस कंपनी का कृषि यंत्र सरकार के द्वारा मिलता है, उसमें गड़बड़ी होने पर संबंधित कंपनी के इंजीनियर समय पर देखने नहीं आते हैं.
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इस योजना के लिए राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम और राज्य सरकार की ओर से कुल करीब 04 अरब 39 करोड़ 05 लाख की राशि स्वीकृत की गई है. इसमें ऋण मद में राष्ट्रीय सहकारी विकास बैंक निगम की ओर से करीब तीन अरब सात करोड़ 33 लाख रुपये जारी किए गए हैं. इस राशि में अनुदान के रूप में 01 अरब 09 करोड़ 76 लाख रुपये है. वहीं राज्य सरकार ने भी 21 करोड़ 95 लाख रुपये दिए हैं.
कृषि यंत्रों की सूची कृषि विभाग भौगोलिक जरूरतों को देखते हुए पैक्स को उपलब्ध कराएगा. वहीं चयनित कृषि यंत्रों की सूची पैक्स की ओर से जिला सहकारिता पदाधिकारी को दी जाएगी. जिला सहकारिता पदाधिकारी की अध्यक्षता में जिला कृषि पदाधिकारी, कृषि अभियंता, पैक्स अध्यक्ष के साथ गठित स्क्रीनिंग समिति में रहेंगे. ये अधिकारी तय करेंगे कि कृषि यंत्र भौगोलिक जरूरतों के अनुरूप है या नहीं. बिहार में यह योजना 2025 तक चलेगी. इसके तहत बिहार के सभी 8643 पैक्स में कृषि संयंत्र बैंक स्थापित किए जाएंगे.
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सासाराम भभुआ सेंट्रल कॉपरेटिव बैंक सासाराम के उपाध्यक्ष और कैमूर जिले के नरहन सह जबुरना पंचायत के पैक्स अध्यक्ष विजय बहादुर सिंह कहते हैं कि सरकार के द्वारा 15 लाख रुपये की राशि मिलती है. इसमें साढ़े सात लाख अनुदान मिलता है. वहीं बाकी राशि बैंक को कृषि यंत्रों से होने वाली कमाई के द्वारा चुकाना होता है. किसान कृषि यंत्रों के लिए ऑनलाइन और ऑफलाइन आवेदन करते है. इससे किसानों को आसानी से कृषि यंत्र तो मिल जाते हैं, लेकिन सबसे बड़ी दिक्कत ये है कि जब कोई मशीन खराब हो जाती है तो उस कंपनी के इंजीनियर दो-दो महीने के बाद यंत्र देखने आते हैं. आगे वे कहते है कि सरकार एक बार ही राशि कृषि यंत्र खरीदने के लिए देती है. उसके बाद जो भी मशीन खरीदना है, वह कृषि यंत्र से कमाए हुए पैसे से खरीदना होता है. वहीं वे मशीनों का किराया घंटे के हिसाब से लेते हैं.
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