पंजाब में भारी बारिश और बाढ़ से हालात चिंताजनक बने हुए हैं. राज्य में लाखों हेक्टेयर फसल को बर्बाद हुई है तो, वहीं पशुधन को भी काफी नुकसान पहुंचा है. इस बीच, पूर्व सांसद भूपिंदर सिंह मान ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान को पत्र लिखकर पंजाब की बाढ़ को तुरंत राष्ट्रीय आपदा घोषित करने की मांग की है. पत्र की एक कॉपी पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान को भी भेजी गई है, जिसमें प्रभावित किसानों की तत्काल जरूरतों का जिक्र है.
पूर्व राज्यसभा सांसद और भारतीय किसान यूनियन (मान) के राष्ट्रीय अध्यक्ष और अखिल भारतीय किसान समन्वय समिति के अध्यक्ष भूपिंदर सिंह मान, भारतीय किसान यूनियन (मान) के अध्यक्ष और शुगर मिल बटाला के पूर्व चेयरमैन सुखविंदर सिंह कहलों, महासचिव बलराज सिंह, उपाध्यक्ष बलदेव सिंह दबुर्जी, महासचिव सुरजीत सिंह सोढ़ी, महासचिव गुरमीत सिंह कोटली फसी, परमजीत सिंह मल्ही की ओर से जारी एक संयुक्त प्रेस विज्ञप्ति में यह जानकारी दी गई.
मान ने बताया कि प्रधानमंत्री को लिखे अपने पत्र में उन्होंने बताया है कि यह मेरे हाल के दिनों में देखी गई सबसे भीषण बाढ़ों में से एक है. अपुष्ट आकलन के अनुसार, पंजाब भर में 1,500 से अधिक गांव जलमग्न हो गए हैं और 3 लाख एकड़ से अधिक कृषि भूमि बाढ़ में डूब गई है, जिससे लगभग 20 लाख निवासी प्रभावित हुए हैं. यह संकट भारत के पंजाब के लिए लगभग चार दशकों में सबसे खराब माना जा रहा है.
नेताओं ने बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में कृषि लोन की माफी या कम से कम लोन वसूली पर पांच साल की मोहलत की मांग की है. उन्होंने कहा कि धान की फसल और आगामी गेहूं की बुवाई, दोनों को हुए नुकसान को देखते हुए किसानों के पुनर्वास में कम से कम पांच साल लग सकते हैं.
उन्होंने राष्ट्रीय आपदा राहत कोष से धनराशि शीघ्र जारी करने की भी मांग की है. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि न केवल फसलों और मवेशियों की बल्कि घरों, सड़कों, ट्यूबवेलों और अन्य महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे को बहाल करने के लिए भी बड़े पैमाने पर धन की जरूरत होगी, जो सभी बुरी तरह प्रभावित हुए हैं.
उन्होंने यह भी अफसोस जताया कि दो दशकों से सक्रिय रेत माफिया के कारण, रेत की कटाई नहीं हो पाई है, क्योंकि माफिया कीमतों को ऊंचा रखने के लिए मांग और आपूर्ति को नियंत्रित करता है. अगर इसे तर्कसंगत बनाया जाता और किसानों को नालों, नदियों और नहरों से गाद निकालने की अनुमति दी जाती तो संकट बहुत कम होता.
बयान में आगे बताया गया है कि कैसे व्यापक गाद, मृदा अपरदन और मौजूदा कृषि बीमा योजनाओं की विफलता ने किसानों की परेशानी को बढ़ा दिया है. मान ने कहा, "फसल बीमा योजनाएं मूलतः बैंकों के हितों की रक्षा करती हैं, किसानों की नहीं. ये योजनाएं उन्हीं लोगों के हितों को नुकसान पहुंचा रही हैं, जिनकी रक्षा करने का ये दावा करती हैं.
उन्होंने मांग की है कि एक किसान-हितैषी बीमा नीति विकसित की जानी चाहिए और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि उस नीति को केवल बीमा कंपनियों के साथ नहीं, बल्कि किसानों के साथ परामर्श प्रक्रिया में आकार दिया जाना चाहिए. उन्होंने सोशल मीडिया पर गलत सूचनाओं के प्रसार पर भी चिंता जताई और बाढ़ के कारणों के सटीक आंकड़े तुरंत जारी करने का आह्वान किया.
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