किसान आंदोलन 2.0 में आंदोलनकारी समूह संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) से अलग हुए गुट हैं. एसकेएम में कई लोगों का मानना है कि 'ये वे लोग हैं जो पिछले किसान आंदोलन में तोड़फोड़ करने के लिए जिम्मेदार थे और इसलिए उन पर भरोसा नहीं' किया जा सकता है. उनका कहना है कि उनकी कुछ नई मांगें उचित नहीं हैं. इसलिए यह एमएसपी जैसे मुख्य मुद्दों को कमजोर कर रहा है जिसके लिए एसकेएम ने साल 2020 में अभियान चलाया था और यह तब से लड़ रहा है. दरअसल, पूर्ववर्ती एसकेएम के सदस्यों के बीच वैचारिक मतभेद हैं. मोर्चा संगठन के नेताओं के एक वर्ग के पंजाब में विधानसभा चुनाव लड़ने के बाद एसकेएम विभाजित हो गया था.
साल 2020-21 में किसान आंदोलन पर हावी रहे पंजाब और हरियाणा के बड़े दिग्गजों की राय है कि इस विरोध में तीव्रता की कमी है क्योंकि इसका नेतृत्व केवल कुछ किसान यूनियनों द्वारा किया जा रहा है. किसान आंदोलन 1.0 में भाग लेने वाले पंजाब के कुल 40 किसान संघों में से केवल दो प्रमुख संघ ही दिल्ली चलो मार्च के पीछे हैं. उन्हें यह भी संदेह है कि दिल्ली चलो मार्च अप्रत्यक्ष रूप से पंजाब सरकार द्वारा प्रायोजित है. उनकी मांगे तो पंजाब सरकार मूंग के लिए एमएसपी जैसे चुनावी वादों को पूरा करने में विफल रही है और उसे विरोध का सामना करना पड़ रहा था. ऐसे में हो सकता है कि इसके पीछे राज्य की सरकार हो.
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हरियाणा सरकार द्वारा पंजाब सरकार पर आरोप लगाए गए हैं कि पंजाब ने उन प्रदर्शनकारियों को नहीं रोका जो बिना किसी बाधा का सामना किए बड़ी संख्या में शंभू और खनौरी सीमाओं तक पहुंचने में कामयाब रहे. बीकेयू के राकेश टिकैत जैसे प्रमुख किसान नेताओं का मानना है कि मौजूदा विरोध प्रदर्शन में कुछ कट्टरपंथी तत्व शामिल हो रहे हैं. इंडिया टुडे के साथ एक विशेष साक्षात्कार में, टिकैत ने कहा कि वर्तमान विरोध में भाग लेने वाले कई लोग सतलज-यमुना लिंक नहर जैसे मुद्दों को उठाना चाहते हैं. ये वो मुद्दे हैं जो पंजाब और हरियाणा के किसानों के बीच दरार पैदा कर सकते हैं. इसी तरह, कुछ लोग सांप्रदायिक मतभेद भी पैदा करना चाहते हैं. इसलिए, हमें उनके विरोध में नहीं देखा जा सकता है. लेकिन हम उन्हें मुद्दा-आधारित समर्थन प्रदान कर रहे हैं.'
टिकैत ने यह भी कहा कि अगर सरकार उनकी मुख्य चिंता का समाधान करने में विफल रहती है तो एसकेएम मार्च में एक अलग आंदोलन की योजना बना रहा है. हरियाणा के एक और प्रमुख किसान नेता, बीकेयू चादुनी समूह के प्रमुख गुरनाम सिंह चादुनी ने इंडिया टुडे को बताया कि उन्हें दिल्ली मार्च और चंडीगढ़ बैठकों में आमंत्रित नहीं किया गया था. उन्होंने कहा, 'एमएसपी पर कानून बनाने की कोई जरूरत नहीं है, केंद्र सरकार का लिखित आश्वासन ही काफी है.' दिलचस्प बात यह है कि कई पूर्व यूनियनें सिर्फ किसानों के साथ एकजुटता व्यक्त करने के लिए भारत बंद का विरोध कर रही हैं. जहां तक किसान विरोध का सवाल है, वे एकमत नहीं हैं. हरियाणा के एक प्रमुख पूर्व नेता ने नाम न छापने का अनुरोध करते हुए कहा कि वे दिल्ली चलो मार्च में शामिल होने के इच्छुक नहीं थे.
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