बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने गुरुवार सुबह करीब 8:00 बजे प्रदेशवासियों को बड़ी सौगात देते हुए हर परिवार को हर महीने 125 यूनिट मुफ्त बिजली देने की घोषणा की. लेकिन ठीक इसके आधे घंटे पहले पटना के सबसे व्यस्त और सुरक्षित माने जाने वाले क्षेत्र, पारस अस्पताल परिसर में दिन दहाड़े पांच अज्ञात हमलावरों ने पैरोल पर इलाज कराने आए बक्सर जिला के कुख्यात अपराधी चंदन मिश्रा की गोली मारकर हत्या कर दी. यह वारदात न केवल राजधानी की सुरक्षा पर, बल्कि बिहार की कानून-व्यवस्था पर भी बड़ा सवाल खड़ा करती है.
इस हत्या की खबर फैलते ही राजधानी पटना से लेकर देशभर में निंदा की लहर दौड़ गई. बिहार पुलिस के एडीजी (मुख्यालय एवं एसटीएफ) कुंदन कृष्णन ने मीडिया से बात की तो उन्होंने घटना को लेकर एक अजीबोगरीब बयान दे डाला. उन्होंने बढ़ते अपराध को किसानों से जोड़ते हुए कहा कि, “अप्रैल, मई और जून के महीनों में किसानों के पास काम नहीं होता, इसलिए इन महीनों में मर्डर ज्यादा होते हैं.” बयान से साफ है कि एडीजी कहीं न कहीं बिहार में आपराधिक घटनाओं का जिम्मेदार किसान को मान रहे हैं. वहीं, उनके इस बयान के बाद से बिहार की सियासत गरमा गई है. किसान संगठनों से लेकर सभी प्रमुख राजनीतिक दलों ने इस बयान की कड़ी निंदा की है.
बिहार पुलिस मुख्यालय के ADG कुंदन कृष्णन के हालिया बयान ने राजनीतिक हलकों में तूफान उठा दिया है. केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान और आरजेडी से बक्सर सांसद और किसान नेता सुधाकर सिंह ने इसे अति निंदनीय, अपमानजनक और किसानों के मान-सम्मान के खिलाफ बताया है.
चिराग पासवान ने अपने एक्स पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि बिहार पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी द्वारा किसानों को अप्रत्यक्ष रूप से हत्यारा बताना न केवल उनके त्याग और परिश्रम का अपमान है, बल्कि यह सरकार की विफलताओं से ध्यान भटकाने की कोशिश भी है. उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई करने की बजाय पुलिस विभाग का ध्यान अनर्गल बयानों पर केंद्रित है, जो अत्यंत चिंताजनक है. उन्होंने सरकार से आग्रह किया कि प्रशासन अपनी प्राथमिकता स्पष्ट करे और किसानों को निशाना बनाना बंद करे.
वहीं, बक्सर सांसद सुधाकर सिंह ने तो और तीखा हमला करते हुए ADG कुंदन कृष्णन पर व्यक्तिगत आरोप लगाए. उन्होंने एक्स पर लिखा कि जब बिहार की कानून-व्यवस्था चरमराई हुई है, तब एक शीर्ष अधिकारी का गुरुग्राम में आराम फरमाना चिंताजनक है. उन्होंने बिहार पुलिस पर माफियाओं से गठजोड़ और आम जनता से अवैध वसूली का आरोप लगाते हुए कहा कि अब ये अधिकारी अपनी नाकामी छुपाने के लिए किसानों को बदनाम कर रहे हैं. सुधाकर सिंह ने सवाल उठाया कि क्या अब पुलिस अधिकारी सत्तारूढ़ दलों के प्रवक्ता बन गए हैं? जो यह कहते फिर रहे हैं कि “सारा काम सरकार ही क्यों करे, मुफ्त राशन भी दे, रहने का घर भी दे”? आप स्वयं कोई काम नहीं करते हैं, सरकार आपको मुफ्त का ही तनख्वाह दे रही है और उन्हीं आम जनता और किसानों के दिए गए टैक्स पर पल रहे हैं.
संयुक्त किसान मोर्चा बिहार के नेता दिनेश कुमार, अशोक प्रसाद सिंह सहित अन्य प्रमुख किसान नेताओं ने बिहार पुलिस के एडीजी (मुख्यालय एवं एसटीएफ) कुंदन कृष्णन के विवादित बयान पर तीखी प्रतिक्रिया दी है. उन्होंने मांग की है कि एडीजी कुंदन कृष्णन बिहार के किसानों से अविलंब माफी मांगें, अन्यथा संपूर्ण बिहार में उनका पुतला दहन किया जाएगा. किसान नेताओं ने यह भी कहा कि 20 जुलाई को दिल्ली में आहूत संयुक्त किसान मोर्चा की जनरल बॉडी मीटिंग में बिहार इकाई की ओर से उनके खिलाफ निंदा प्रस्ताव पेश किया जाएगा.
किसान नेताओं ने कहा कि “बिहार में अपराध बढ़ने का असली कारण है राज्य में विकास की कमी, जातिवाद की जड़ें और पदस्थापन में भ्रष्टाचार. किसान चौदह-चौदह घंटे खेतों में मेहनत करता है, ताकि देश के 140 करोड़ लोगों का पेट भर सके. यही किसान देश की रीढ़ है. पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी अगर दिन में आठ घंटे काम कर पा रहे हैं, तो इसके पीछे किसान की मेहनत है. ऐसे में किसानों पर अपराध का दोषारोपण करना न केवल दुर्भाग्यपूर्ण है, बल्कि निंदनीय भी है.”
सहरसा जिले के किसान और सामाजिक कार्यकर्ता सुदीप्त प्रताप सिंह ने एडीजी कुंदन कृष्णन के बयान पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है. उन्होंने कहा कि एडीजी को सबसे पहले कृषि की मूलभूत समझ होनी चाहिए. जिन तीन महीनों (अप्रैल, मई और जून) की वे बात कर रहे हैं, उनमें से अप्रैल महीना में गेहूं की कटाई, मई महीने के तीसरे सप्ताह से धान का बिजड़ा और जून में धान की रोपनी में जुट जाता है. वह खाली कब रहता है. बिहार पुलिस खाली है तो सभी लोग बेकार और खाली ही हैं. उन्होंने सवाल उठाया कि क्या बिहार में जो भी हत्याएं हो रही हैं, वे सभी किसान ही करवा रहे हैं? इस तरह का गैरजिम्मेदार बयान न सिर्फ किसानों का अपमान है, बल्कि यह पुलिस की कार्यशैली और अधिकारियों की योग्यता पर भी गंभीर सवाल खड़ा करता है.
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