बिहार के किसान मॉनसून की बारिश के साथ ही सिंघाड़े की बुआई करना शुरू कर चुके हैं. दरअसल जून-जुलाई में सिंघाड़ा खेत या तालाब में बोया जाता है. इसके लिए खेत में न्यूनतम दो फिट पानी होना चाहिए.
आमतौर पर छोटे तालाबों, पोखरों में सिंघाड़े का बीज बोया जाता है लेकिन खेतों में गड्ढे बनाकर उसमें पानी भर के भी पौधों की बुवाई की जाती है. इस तरह सिंघाड़े की खेती की जाती है.
जून से दिसंबर यानी छह महीने की सिंघाड़े की फसल से बढ़िया मुनाफा कमाया जा सकता है. इसको लेकर किसान जनवरी और फरवरी के महीने में नर्सरी तैयार करते हैं.
सिंघाड़े के बीज से पौधा तैयार होने में करीब दो महीने का समय लगता है. वहीं इसकी बुआई मई से जून महीने के बीच में की जाती है. वहीं पौधा लगाने के तकरीबन तीन महीने बाद फल देना शुरू हो जाता है.
मई-जून के महीने में सिंघाड़े के पौधे में से एक-एक मीटर लंबी बेल तोड़ कर उन्हें तालाब में रोप देना चाहिए. वहीं इसकी नर्सरी के लिए पके हुए फलों को बीज के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं.
सिंघाड़ा की नर्सरी लगाने के लिए पौधों के बीच में बराबर दूरी रखना चाहिए. दूरी रखने से फलों के खराब होने की आशंका नहीं रहती है. इससे स्वस्थ पौधे आते हैं जिनसे उपज अच्छी मिलती है.
सिंघाड़े की खेती करने के लिए किसान एक बीघा की खेती के लिए एक कट्ठा जमीन में नर्सरी लगाएं. वहीं एक बीघा में सिंघाड़े की खेती करने में करीब 60 हजार रुपये तक का खर्च आता है.
सिंघाड़ा किसानों के लिए कमाई का अच्छा विकल्प है. अगर किसान इसकी खेती एक कट्ठे में करते हैं तो उन्हें करीब दो क्विंटल से अधिक का उत्पादन मिलता है. इसी हिसाब से उनकी कमाई भी बढ़ती है.
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