बकरियां खेती और दूध उत्पादन में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं. उनकी सही देखभाल और स्वास्थ्य का ख्याल रखना किसानों के लिए जरूरी है ताकि वे अधिक उत्पादन दे सकें और आर्थिक रूप से मजबूत बन सकें. बकरियों को कई प्रकार के रोग हो सकते हैं, जो उनकी सेहत और उत्पादन दोनों को प्रभावित करते हैं.
इसलिए जरूरी है कि बीमारियों के होने से पहले ही उचित बचाव के उपाय अपनाए जाएं. हम बकरियों के प्रमुख रोगों, उनके लक्षणों, कारणों और प्रभावी बचाव और उपचार के तरीकों के बारे में आसान भाषा में जानकारी देंगे.
बकरी चेचक: बकरी चेचक रोग हवा, संक्रमित वस्तुओं या छूने से फैलता है. संक्रमण का समय लगभग 27 दिन होता है. बीमार बकरी को तेज बुखार आता है, आंख और नाक से पानी आता है. बचाव के लिए प्रतिरोधक टीकाकरण जरूरी है और बीमार बकरियों को स्वस्थ बकरियों से अलग रखना चाहिए.
कॉन्टेजियस एक्स थाइमा (मुहा): यह रोग मुख्यतः गर्मी और बरसात के मौसम में फैलता है. खासकर बच्चों को ज्यादा प्रभावित करता है. इसमें मुंह और होठों पर लाल फफोले बनते हैं. इसका टीका उपलब्ध नहीं है, इसलिए साफ-सफाई का ध्यान रखना और घावों का इलाज करना आवश्यक है.
भूखमरी (एफएमडी): यह एक महामारी रोग है जो छूने से फैलता है. लक्षणों में तेज बुखार, मुंह से लार बहना, मुंह के अंदर फफोले और खुरों के बीच घाव शामिल हैं, जिससे बकरी लंगड़ी हो जाती है. बचाव के लिए बीमार बकरियों को अलग रखना, घावों पर बोरो ग्लिसरीन लगाना और पैरों के घावों की सफाई जरूरी है.
बकरी प्लेग (पीपीआर): यह रोग बहुत तेजी से फैलता है और मृत्यु दर लगभग 100 फीसदी होती है. लक्षणों में तेज बुखार, मुंह और जीभ पर छाले, दस्त, खांसी, सांस लेने में तकलीफ शामिल हैं. बचाव के लिए वार्षिक टीकाकरण आवश्यक है और बाहर से लाए गए पशुओं को एक सप्ताह अलग रखना चाहिए.
निमोनिया (सीसीपीपी): यह फेफड़ों को प्रभावित करने वाला खतरनाक रोग है, जो सांस के जरिए फैलता है. लगभग सभी बकरियां प्रभावित होती हैं और मृत्यु दर 60-100 फीसदी तक हो सकती है. बचाव के लिए सूखा, साफ आवास, संतुलित आहार, कृमिनाशक दवाओं का समय-समय पर इस्तेमाल और चराई का नियंत्रण आवश्यक है.
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