
सरायकेला भारत के पूर्वी राज्य झारखंड के खरसावां जिला एक ऐतिहासिक उपलब्धि दर्ज कर रही है. कभी सीमित स्तर पर अफीम की अवैध खेती के लिए चर्चित यह जिला अब पूरी तरह अफीम-मुक्त घोषित किया जा सकता है. इस जिले में वर्ष 2024-25 में मात्र 678.96 एकड़ में ऐसी खेती पाई गई थी, जिसे जिला पुलिस ने तीन चरणों वाले प्री-कल्टीवेशन ड्राइव के माध्यम से पूरी तरह नष्ट कर दिया.

इस प्री-कल्टीवेशन ड्राइव का नेतृत्व पुलिस अधीक्षक मुकेश लुणायत कर रहे हैं, जिन्होंने प्रशासनिक टीम, कृषि विभाग, पंचायत प्रतिनिधियों और ग्रामीणों को एकजुट कर एक व्यापक सामाजिक परिवर्तन की शुरुआत की है. केंद्रीय गृह मंत्रालय के निर्देशानुसार यह अभियान 8 से 22 सितंबर, 3 से 17 अक्टूबर और 2 से 17 नवंबर के तीन चरणों में संचालित हो रही है.

इसमें प्रभावित क्षेत्रों (ईचागढ़, कुचाई, खरसावां, कांड्रा और चौका) में ग्रामीणों को नशे की खेती छोड़ वैकल्पिक कृषि, सब्ज़ी उत्पादन और पशुपालन अपनाने की प्रेरणा दी गई. गांवों में मुखिया, ग्राम प्रधान और किसानों ने पुलिस की उपस्थिति में सामूहिक शपथ ली कि वे अब कभी अफीम की खेती नहीं करेंगे.

बता दें कि पिछले साल यानी 2024-25 में यहां 678.96 एकड़ भूमि पर अवैध अफीम की खेती की जा रही थी, जिसे एसपी मुकेश लुणायत के नेतृत्व में चलाए गए प्री-कल्टीवेशन ड्राइव के तहत पूरी तरह समाप्त कर दिया गया है. इस पहल में पुलिस, जिला प्रशासन, कृषि विभाग और पंचायत प्रतिनिधियों का समन्वय झारखंड में सामाजिक सुधार और सुरक्षा की साझी जीत के रूप में देखा जा रहा है.

एसपी मुकेश लुणायत ने बताया कि अभियान का उद्देश्य केवल खेती नष्ट करना नहीं बल्कि किसानों को वैकल्पिक जीवन-निर्वाह का मार्ग दिखाना है. उन्होंने कहा कि हमने अपराध नहीं उसकी जड़ खत्म की है. अफीम की जगह अब खेतों में सब्जियां, अनाज और आत्मनिर्भरता की फसलें लहलहा रही हैं.

जिले के सुदूर गांवों में ड्रोन से निगरानी और पुलिस के रात्रि निरीक्षण जारी है. पूर्व अफीम किसान जयलाल माझी कहते हैं कि पहले डर के साए में खेती करते थे. अब पुलिस उनकी साथी है. उन्होंने बताया कि अफीम हमारी पीढ़ियों को बर्बाद कर रहा था. अब वो आलू, धान, गेहूं और सब्जी की खेती कर रहे हैं.

सरायकेला-खरसावां मॉडल अब एक ग्लोबल केस स्टडी के रूप में देखा जा सकता है. यह बदलाव दिखाता है कि जब शासन, समाज और सुरक्षा तंत्र एकसाथ खड़े हों तो असंभव समझी जाने वाली चुनौतियां भी इतिहास बन जाती हैं. अब सरायकेला की धरती से संदेश साफ है कि अब नशा नहीं नवजागरण की खेती होगी. (मनीष कुमार लाल दास की रिपोर्ट)
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