कुरुक्षेत्र के बुहानी गांव के रहने वाले सलिंदर और राजेश कभी एक फैक्ट्री में काम करते थे. लेकिन, उनकी तनख्वाह इतनी कम थी कि परिवार का पालन-पोषण करना मुश्किल था. इसके बाद, उन्होंने अपना खुद का काम करने की सोची. लेकिन, काफी रिसर्च करने के बावजूद वे यह तय नहीं कर पा रहे थे कि वे ऐसा क्या करें जिससे उन्हें अच्छी कमाई हो सके.
फिर, एक दिन उन्हें कंप्यूटर पर काम करते हुए मोती की खेती का प्रशिक्षण देने वाले एक संस्थान का विज्ञापन दिखाई दिया. उन्होंने मोती की खेती का प्रशिक्षण लेने का फैसला किया और यहीं से दोनों दोस्तों की किस्मत हमेशा के लिए बदल गई. साल 2015-16 में, उन्होंने छोटे स्तर पर मोती की खेती शुरू की.
सलिंदर कुमार ने बताया कि विज्ञापन देखने के बाद उन्होंने ओडिशा के भुवनेश्वर से मोती की खेती का प्रशिक्षण लिया. इसके बाद, उन्होंने घर पर ही मोती की खेती करने का विचार किया. उन्होंने पानी जमा करने के लिए एक टैंक बनवाया, जिसमें 5000 मोतियों का पालन किया जा सकता था.
टैंक और सीप मिलाकर कुल 3,000,00 रुपये का खर्च आया. उन्होंने 1000 सीप से शुरुआत की थी. एक मोती सीप पर 45 से 50 रुपये का खर्च आता है. वहीं, 13 महीने बाद उन्हें साढ़े 7 लाख रुपये की आमदनी हुई. औसतन, एक मोती 150 रुपये में बिकता है. इसके बाद, दोनों दोस्तों ने पीछे मुड़कर नहीं देखा. उन्होंने कई जगहों पर मोती टैंक के फार्म बनवाए हैं, जिनमें आज वे हर साल 3 लाख सीप का पालन करके करोड़ों का व्यवसाय कर रहे हैं.
सलिंदर ने बताया कि मोती की खेती में उन्हें अच्छा खासा मुनाफा हुआ है. जो लोग मोती की खेती करना चाहते हैं, उन्हें सलाह देते हुए सलिंदर ने कहा कि कोई भी छोटे स्तर से इसकी शुरुआत कर सकता है. लेकिन, इसके लिए प्रशिक्षण लेना बहुत जरूरी होता है. कई लोग ऐसे होते हैं जो बिना किसी प्रशिक्षण के इसकी खेती शुरू कर देते हैं और फिर उन्हें नुकसान का सामना करना पड़ता है.
मोती की कई किस्में हैं. लेकिन, उन्होंने बाजार की मांग के अनुसार डिजाइनर और हाफ राउंड मोती के उत्पादन को चुना. खेती शुरू करने के लिए, पहले तालाबों या नदियों से सीपों को इकट्ठा करना होता है या फिर उन्हें खरीदा जा सकता है. इसके बाद, हर सीप में एक छोटे से ऑपरेशन के बाद, इसके अंदर 4-6 मिमी व्यास वाले साधारण या डिजाइनर बीड जैसे गणेश, बुद्ध या किसी फूल की आकृति डाली जाती है.
फिर, सीप को बंद कर दिया जाता है. इस तरह, 1 साल में डिजाइनर मोती और डेढ़ साल में हाफ राउंड मोती तैयार हो जाता है. मोती की खेती करते समय, तापमान और भोजन का विशेष ध्यान रखना पड़ता है. भोजन में उन्हें एल्गी दिया जाता है. वहीं, समय-समय पर सीपों को खोलकर देखना पड़ता है कि कहीं सीप मर तो नहीं रहे हैं.
सलिंदर कुमार ने बताया कि मोती का उत्पादन जितना आसान दिखता है, उतना है नहीं. कई सवालों के जवाब जरूरी है, जैसे- पर्ल फार्मिंग के लिए पानी कैसा हो? तापमान कितना और कैसे बनाए रखा जाए? सीप कैसे खोलें? उसके अंदर कण, रेत या बीड कैसे डालें? सीप की माइनर सर्जरी कैसे हो? इसलिए, जिन्होंने पहले कभी यह नहीं किया है या उनके आसपास भी किसी ने नहीं किया है, उन्हें मोती पालन से पहले प्रशिक्षण जरूर लेना चाहिए.
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