जेब से 50 रुपये ज्यादा चले जाएं, लेकिन मछली फ्रेश खाने को मिल जाए तो मानों जैसे मन की मुराद पूरी हो जाती है. मछली कौन सी खरीदनी है मछली बाजार में इससे ज्यादा तलाश इसकी होती है कि फ्रेश फिश कहां मिलेगी. क्योंकि नदी-तालाब से बाजार तक फ्रेश मछली लेकर आना बड़ा नामुमकिन सा है.
लेकिन अब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) से तैयार फ्रेश फिश घरों तक पहुंच रही है. इसकी वजह है बीज से लेकर दो किलो तक की मछली तैयार करने में पूरी तरह से एआई का इस्तेमाल किया जा रहा है. एआई के चलते बीमार मछली बाजार तक आने का खतरा भी कम हो गया है.
मछली तालाब या नदी से निकलकर जिंदा बाजार तक पहुंचे इसके लिए हाईटेक टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया जा रहा है. हालांकि, अब बड़े तालाबों पर ही इसका इस्तेमाल किया जा रहा है. लेकिन अब मछलियों को हाथ से दाना खिलाने और थर्मामीटर से तालाब के पानी का तापमान चेक करने का तरीका पुराना हो चला है.
मछलियों की सेहत जानने के लिए तालाब में जाल डालने की जगह एआई से उनकी नब्ज टटोली जा रही है. वो भी एक एसी कमरे में लैपटॉप के सामने बैठकर. नए जमाने के मछली पालन में कैमरे और सेंसर से लैस ड्रोन ने मेहनत और लागत दोनों को आधा कर दिया है. वक्त की बचत भी होने लगी है.
मछलियों की अच्छी सेहत के लिए जरूरी है कि तालाब का पानी सामान्य रहना चाहिए. मतलब जिस मछली की जैसी जरूरत है उसके मुताबिक. गर्मी हो या सर्दी मछलियों को न तो बहुत ज्यादा ठंडा और ना ही ज्यादा गर्म पानी चाहिए होता है.
इसलिए हर मौसम में मछलीपालक तालाब के पानी को सामान्य बनाए रखने के लिए कई तरह के उपाय अपनाते हैं. कई बार तो थर्मामीटर लगाकर पानी का तापमान जांचना पड़ता है. लेकिन ड्रोन में लगा सेंसर पानी के तापमान की रिपोर्ट आपके मोबाइल या फिर लैपटॉप पर भेज देता है. पानी प्रदूषित है तो किस तरह से ये रिपोर्ट भी ड्रोन में लगे सेंसर बता देते हैं.
तालाब पर उड़ने के दौरान ड्रोन में लगे कैमरे उसकी तस्वीर भेजते रहते हैं. तालाब पर बहुत नीचे ड्रोन उड़ाने से उसमे मौजूद मछलियां भी साफ-साफ दिखाई देने लगती हैं. इससे मछलियों की प्रमुख बीमारी लाल धब्बा भी दिखाई देने लगती है. या फिर मछलियां तालाब में कैसा व्यवहार कर रही हैं ये भी पता चल जाता है.
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