तापमान में बढ़ोतरी होने के कारण खीरे में चिपचिपा झुलसा रोग का प्रकोप होता है. चिपचिपा झुलसा रोग के विकास के लिए अधिकतम तापमान सीमा 30 से 40 डिग्री के बीच होती है. हालांकि, संक्रमण 15-35 डिग्री के बीच भी हो सकता है. वहीं, अधिक तापमान रोग की गति को और तेज कर करता है. कुल मिलाकर मई के महीने में बढ़ रही गर्मी खीरे की फसल को नुकसान पहुंचा सकती है.
चिपचिपा झुलसा रोग नमी से भी बढ़ता है. खीरे में लगने वाले चिपचिपा झुलसा रोग उच्च नमी से भी काफी तेजी से बढ़ता है. नमी से इस रोग का फैलाव और संक्रमण दोनों बढ़ता है. साथ ही अधिक बारिश, अधिक सिंचाई और पत्तियों पर पानी होने से ये रोग तेजी से फैलता है, जिससे उत्पादन और क्वालिटी में कमी आती है.
इस रोग का असर पत्तियों पर दिखाई देता है. चिपचिपा झुलसा रोग लगने पर पत्तियां पानी से लथपथ होकर भूरे या पीले रंग की हो जाती हैं. इसके अलावा पत्तियां पीले रंग के घेरे से घिर जाती हैं और फट कर गिर सकती हैं, जिससे पत्तियां उखड़ी हुई दिखाई देती हैं.
रोग का खीरा बेल के तने पर असर दिखाई देता है. इसमें तने पर पानी से भीगे हुए जख्म की तरह निशान जो भूरे रंग के हो जाते हैं, वे तने पर दिखते हैं. इससे तने फट सकते हैं और लाल-भूरे या काले रंग के चिपचिपे हो सकते हैं. साथ ही इस रोग के लगने से कई बार पौधे मर भी जाते हैं.
फलों पर रोग का असर: चिपचिपा झुलसा रोग जब फलों में लग जाता है तो फलों पर भूरे या काले धब्बे हो जाते हैं. इसके बाद धब्बे धीरे-धीरे चिकने होने के बाद चिपचिपे हो जाते हैं. साथ ही फलों पर फफूंद दिखाई देने लगते हैं. इससे किसानों को काफी नुकसान होता है.
चिपचिपा झुलसा रोग से बचाव के लिए किसान अपने खेतों में थायोफैनेट मिथाइल को 250-600 ग्राम प्रति एकड़ की दर से इस्तेमाल कर सकते हैं. इसके अलावा कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 2 ग्राम प्रति लीटर का घोल बनाकर फसलों पर छिड़काव करें.
साथ ही किसान खीरे की फसल को बचाने के लिए मैन्कोजेब 500 ग्राम प्रति एकड़ दर से घोल बनाकर छिड़काव कर सकते हैं. ऐसा करने से खीरे को इस रोग से बचाया जा सकता है.
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