
खेती में खाद का इस्तेमाल जरूरी है, लेकिन जरूरत से ज्यादा खाद मिट्टी के लिए दवा नहीं, बल्कि बीमारी बन जाती है. कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक, लंबे समय तक अधिक रासायनिक उर्वरक डालने से मिट्टी की प्राकृतिक सेहत बिगड़ने लगती है.

मिट्टी एक जिंदा प्रणाली है, जिसमें सूक्ष्म जीव, केंचुए और जैविक तत्व मिलकर फसल को पोषण देते हैं. जब किसान बार-बार अधिक मात्रा में यूरिया, डीएपी और पोटाश डालते हैं, तो मिट्टी में लवणता बढ़ जाती है. इसका सीधा असर यह होता है कि अच्छे बैक्टीरिया और फायदेमंद फंगस नष्ट होने लगते हैं.

ज्यादा खाद डालने से मिट्टी में पोषक तत्वों का संतुलन भी बिगड़ता है. खेत में नाइट्रोजन तो बढ़ जाती है, लेकिन जिंक, बोरोन, सल्फर और आयरन जैसे माइक्रो न्यूट्रिएंट की कमी हो जाती है. यही वजह है कि खेत में हरी-भरी फसल दिखने के बावजूद पैदावार और गुणवत्ता घटने लगती है.

विशेषज्ञ बताते हैं कि लगातार ज्यादा खाद डालने से मिट्टी सख्त हो जाती है. पानी और हवा का संचार रुक जाता है, जिससे जड़ें कमजोर पड़ती हैं. इसका नतीजा यह होता है कि फसल हल्की हवा, कम बारिश या तापमान के उतार-चढ़ाव में भी जल्दी खराब होने लगती है.

बीमार मिट्टी पानी को सही तरीके से रोक नहीं पाती. कभी खेत में जलभराव हो जाता है और कभी नमी जल्दी खत्म हो जाती है. ऐसे में किसान को बार-बार सिंचाई और अतिरिक्त खाद डालनी पड़ती है, जिससे लागत और बढ़ जाती है.

कृषि वैज्ञानिकों का मानना है कि संतुलित खाद प्रबंधन, मिट्टी परीक्षण, जैविक खाद और फसल चक्र अपनाकर मिट्टी को फिर से स्वस्थ बनाया जा सकता है. सही मात्रा में खाद ही मिट्टी और किसान दोनों के लिए फायदेमंद होती है.

विशेषज्ञों का कहना है कि अगर समय रहते खाद की मात्रा और तरीका नहीं सुधारा गया तो आने वाले वर्षों में जमीन की उपजाऊ परत कमजोर होती चली जाएगी. इससे न सिर्फ पैदावार घटेगी, बल्कि खेती टिकाऊ रहना भी मुश्किल हो जाएगा.
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