सिगाटोका रोग की पहचान और इसका प्रबंधन बेहद ही जरूरी है. यह रोग फैल जाने पर किसानों को बड़ा नुकसान हो सकता है. इस रोग से बचाव के लिए कृषि विभाग, बिहार सरकार ने उपाय बताए हैं. इन उपायों को अपनाकर किसान केले की फसल को बचा सकते हैं.
पीला सिगाटोका रोग के कारण केले के नए पत्तों के ऊपरी हिस्सा हल्का पीला दाग दिखाई पड़ता है या उस पर धारीदार लकीर की तरह दिखाई देता है. कुछ समय बाद ये धब्बे बड़े हो जाते है और इनका रंग भूरा हो जाता है. साथ ही इनका केंद्र हल्का कत्थई रंग का हो जाता है. यह रोग फल उत्पादन को प्रभावित करता है.
पीला सिगाटोका रोग से फसल से बचाव के लिए इस रोग की प्रतिरोधी किस्म की बुवाई करनी चाहिए. इसके अलावा खेत को खरपतवार से मुक्त रखने से भी इस रोग से बचाव होता है. अगर फसल में यह रोग फैल जाए तो खेत से अधिक पानी की निकासी करें और 1 किलो ट्राईकोडर्मा विरिडे को 25 किलो गोबर खाद के साथ प्रति एकड़ की दर से मिट्टी में मिलाएं.
काला सिगाटोका रोग के कारण केले की पत्तियों के निचले भाग पर काला धब्बा पड़ने के साथ धारीदार लाईनें बन जाती है. ये रोग ज्यादा तापमान के कारण फैलता है और इसके कारण केले समय से पहले पक जाते हैं. इस रोग के कारण किसानों को सही मुनाफा नहीं मिल पाता है.
किसानों को काला सिगाटोका रोग से बचाव के लिए रासायनिक फफूंदनाशक कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 1 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए. इस दवा के छिड़काव से फल जल्दी नहीं पकता है, जिससे किसानों का नुकसान होने से बच जाता है.
पनामा विल्ट के लक्षण- इस रोग के लगने पर अचानक पौधे का सूखना या नीचे के हिस्से की पत्ती का सूखना शुरू हो जाता है. इस रोग के लगने पर पत्तियां पीली होकर रंगहीन हो जाती हैं, जो बाद में मुरझा कर सूख जाती हैं. उसके बाद तने सड़ जाते हैं और अंदर से सड़ी मछली जैसी दुर्गंध आती है.
पनामा विल्ट से बचाव- किसानों को पनामा रोग से बचाव के लिए कार्बेन्डाजिम डब्लू.पी. 1 ग्राम प्रति लीटर पानी के साथ घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए. केले की पत्तियां चिकनी होती हैं, ऐसे में घोल में स्टीकर मिला देना लाभदायक होता है.
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