अलवर के सिलीसेढ़ झील में सिंघाड़े की खेती शुरू हो गई है. 500 मगरमच्छों के खौफ के बीच 40 परिवार सिंघाड़े की खेती कर रहे हैं. सिंघाड़े की खेती सर्दियों के मौसम में 6 महीने तक की जाती है. लेकिन मगरमच्छों से ज्यादा मछलियां किसानों को परेशान कर रही हैं.
झील में दो तरह की मछलियां सिंघाड़े की फसल को बर्बाद कर रही हैं. ऐसे में किसान चिंतित हैं. मछलियों की वजह से उनकी फसल खराब हो रही है. किसानों का आरोप है कि ठेकेदार ने चालाकी से मछलियों को झील के अंदर छोड़ दिया है ताकि किसान झील में सिंघाड़े की खेती न करें.
राजस्थान के अलवर में भी सिंघाड़े की खेती की जाती है. अलवर की सिलीसेढ़ झील में सिंघाड़े की खेती शुरू हो गई है. अलवर शहर से 15 किलोमीटर दूर सिलीसेढ़ में वर्तमान में लगभग 30 से 40 परिवार सिंघाड़े की खेती कर रहे हैं. सिंघाड़े की खेती में छह महीने लगते हैं.
सर्दी शुरू होते ही सिंघाड़े की फसल शुरू हो जाती है और बाजार में पहुंच जाती है. लेकिन इस बार, इस फसल से जुड़े पुश्तैनी परिवारों को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है. सिंघाड़े के पौधे आगरा से लाए जाते हैं. प्रत्येक पौधे की कीमत 1600 रुपये प्रति क्विंटल है.
किसानों ने बताया कि इस बार ठेकेदार ने दो प्रजातियों की मछलियां छोड़ी हैं जो सिंघाड़े की फसल को नष्ट कर रही हैं. ये मछलियां बाजार में ज्यादा नहीं बिकतीं. इसके बावजूद, ठेकेदार ने सिंघाड़े की फसल को बर्बाद करने के लिए इन प्रजातियों को छोड़ दिया है.
किसानों के अनुसार इस समय उनकी लागत भी नहीं निकल पा रही है. जिससे किसानों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. उन्होंने बताया कि अलवर से जयपुर और सीकर की मंडियों में सिंघाड़े की सप्लाई होती है. इन्हें नाव से तोड़ा जाता है. सिंघाड़े की फसल 5 से 7 फीट गहरे पानी में बोई जाती है.
इसमें सामान्य खेती की तुलना में अधिक मेहनत की आवश्यकता होती है. सिलीसेढ़ झील में 500 मगरमच्छ हैं. ऐसे में किसान अपनी जान जोखिम में डालकर झील के अंदर सिंघाड़े की खेती करते हैं. लेकिन मगरमच्छों से ज्यादा सिलीसेढ़ झील की मछलियों ने किसानों को परेशान कर रखा है.
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