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क्या होता है वर्मीवाश जिसके इस्तेमाल से बढ़ जाती है पैदावार, पढ़ें इसके फायदे

क्या होता है वर्मीवाश जिसके इस्तेमाल से बढ़ जाती है पैदावार, पढ़ें इसके फायदे

वर्मीवाश के उपयोग से 10-15 फीसदी तक उत्पादन बढ़ जाता है. साथ ही उपज पर किसी प्रकार का दु्ष्प्रभाव नहीं पड़ता है. इसलिए खेती में वर्मीवाश का उपयोग करना काफी लाभकारी माना गया है. वर्मीवाश एक भूरे रंग का लिक्विड जैव उर्रवरक है.

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वर्मीवाश के इस्तेमाल के फायदे (सांकेतिक तस्वीर) वर्मीवाश के इस्तेमाल के फायदे (सांकेतिक तस्वीर)

आज के दौर में खेतों में उत्पादन बढ़ाने के लिए किसान रासायनिक उर्रवरकों का बेताहाशा इस्तेमाल करते हैं. इसके कारण सब्जियों और फसलों पर इसका खराब असर होता है. मिट्टी और पानी भी इससे प्रभावित होती है. ऐसे में वर्मीवाश किसानों के लिए एक बेहतर विकल्प साबित हो सकता है. रासायनिक खादों के विकल्प के तौर पर वर्मी कंपोस्ट से वर्मीवाश तैयार किया जाता है. इसे किसान कम लागत में तैयार कर सकते हैं. इसके साथ ही इसका इस्तेमाल करने से यह पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचाता है. इसके इस्तेमाल से किसान क्वालिटी की उपज हासिल कर सकते हैं. फसलों और सब्जियों में कीटनाशक और रोगनाशक के तौर पर भी वर्मीवाश का इस्तेमाल किया जा सकता है. 

इसके उपयोग से 10-15 फीसदी तक उत्पादन बढ़ जाता है. साथ ही उपज पर किसी प्रकार का दु्ष्प्रभाव नहीं पड़ता है. इसलिए कृषि में वर्मीवाश का उपयोग करना काफी लाभकारी माना गया है. वर्मीवाश एक भूरे रंग का लिक्विड जैव उर्वरक है. इसका उत्पादन केंचुआ खाद निर्माण के दौरान या अलग से भी किया जा सकता है. वर्मीवाश में केंचुआ द्वारा छोड़ा गया हार्मोन, पोषक तत्व और एंजाइम होता है. इसमें घुलमशील नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश मुख्य पोषक तत्व होते हैं. इसका कोई भी अवशेष मिट्टी के लिए हानिकारक नहीं होता है. 

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वर्मीवाश के इस्तेमाल की विधि

  • एक लीटर वर्मीवाश में 7-10 लीटर पानी मिलाकर पत्तियों पर शाम के समय छिड़काव करना चाहिए.
  • एक लीटर वर्मीवाश और एक लीटर गोमूत्र को 10 लीटर पानी में अच्छे से मिलाकर रातभर के लिए छोड़ दें.
  • इस तरह से 50-60 लीटर वर्मीवाश बनाकर विभिन्न रोगों के लिए एक हेक्टेयर में छिड़काव कर सकते हैं.
  • गर्मियों के मौसम में सब्जियों में जल्दी फूल और फल आने के लिए पत्तों पर वर्मीवाश का छिड़काव करें, इससे उत्पादन बढ़ता है. 

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वर्मीवाश के फायदे

  • इसके प्रयोग से पौधों में अच्छी वृद्धि होती है.
  • पानी की लागत में कमी होती है और खेती अच्छी होती है.
  • इसका इस्तेमाल पर्यावरण को स्वस्थ बनाता है.
  • कम लगात पर भूमि की उर्वरा शक्ति में वृद्धि होती है.
  • मिट्टी के भौतिक, रासायनिक और जैविक गुणों में वृद्धि होती है.
  • इसके उपयोग से पौध रक्षक दवाइयां भी कम लगती हैं, जिससे उत्पादन लागत में कमी आती है.
  • मिट्टी की जल ग्रहण करने की क्षमता बढ़ती है.
  • इससे उत्पादित फसल या सब्जी अधिक स्वादिष्ट लगता है.
  • इसके उपयोग से ऊर्जा की बचत होती है.