ग्वालियर चंबल संभाग का दायरा मुरैना, भिंड, ग्वालियर और गुना सीट तक विस्तृत है. इनमें मुरैना और भिंड लोकसभा क्षेत्र सही मायने में चंबल घाटी का प्रतिनिधित्व करते हैं. एक समय था, जब चंबल घाटी के दुर्दांत डकैत चुनावी फिजां का मिजाज तय करने में अहम भूमिका निभाते थे. अब चंबल के जंगलों में डाकुओं की जगह खनन माफिया ने लेकर बीहड़ से संसद तक पहुंच गए हैं. नतीजतन पिछले कुछ सालों से Chambal Valley में शांतिपूर्ण तरीके से मतदान होता आ रहा है. इस वजह से इलाके की दलित आबादी मुखर हाेकर मतदान करती है नतीजतन बसपा की जड़ें इस इलाके में मजबूत हो सकीं. हालांकि बसपा के दखल की वजह से चंबल क्षेत्र में Triangular Fight होने का सीधा लाभ भाजपा को मिलता रहा है. यही वजह है कि मुरैना और भिंड सीट पर पिछले 3 दशक से भाजपा ही हावी रही है. इस बार बसपा की स्थिति कमजोर होने के कारण इन दोनों सीट पर भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला होने के कारण चुनाव की तस्वीर रोचक हो गई है.
ग्वालियर चंबल संभाग की Electoral Politics में ग्वालियर के सिंधिया राजघराने का शुरू से ही दबदबा रहा है. इस इलाके की ग्वालियर, भिंड और गुना सीटें सीधे तौर पर राजघराने के किसी सदस्य के ही पास रहीं. दरअसल हरे भरे जंगल और पहाड़ों वाली अमोला घाटी से घिरा शिवपुरी जिला, आजादी से पहले ग्वालियर रियासत की Summer Capital होती थी. इस वजह से सिंधिया रियासत का दायरा चंबल के प्रवेश द्वार गुना तक विस्तृत होने के कारण राजमाता विजयाराजे सिंधिया, उनके पुत्र माधवराव सिंधिया और पौत्र ज्योतिरादित्य गुना से सांसद रहे.
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चंबल घाटी की माटी और पानी में ही बागी होने के गुण मौजूद हैं. इस बात को साबित करने के लिए दो घटनाएं काफी हैं. पहली घटना 1996 की है, जब Ballot Paper से वोट डाले जाते थे. इस कारण किसी सीट पर उम्मीदवारों की अधिकता Election Commission के लिए लंबे मतपत्र बनाने के रूप में परेशानी का सबब बनती थी. उस जमाने में चुनाव के दौरान चंबल इलाके में Booth Capturing आम बात थी. इससे निपटने के लिए चुनाव आयोग ने सख्ती की और यह बात चंबल के बागियों को इतनी नागवार गुजरी कि उन्होंने आयोग काे परेशान करने के लिए मुरैना सीट से 70 उम्मीदवार खड़े करा दिए.
चुनाव आयोग के लिए 70 उम्मीदवारों का मतपत्र छापना नामुमकिन हो गया. इसके बाद 40 उम्मीदवारों को समझा बुझा कर नामांकन वापस कराने के लिए तैयार किया गया. इतना सब कुछ करने के बाद भी 21 उम्मीदवार तब भी चुनाव मैदान में बचे रहे.
दूसरी घटना, 2008 की है, जब भिंड के तत्कालीन भाजपा सांसद अशोक अर्गल नगद 1 करोड़ रुपये लेकर संसद में पहुंच गए थे. उन्होंने संसद में नोट की गड्डियां लहरा कर उस समय अल्पमत में आई कांग्रेस की सरकार को बचाने के लिए 3 करोड़ रुपये उन्हें घूस में देने की पेशकश किए जाने का आरोप लगाते हुए पुलिस में इसकी FIR भी दर्ज करा दी. कथित तौर पर अर्गल को 3 करोड़ रुपये की घूस के एवज में 1 करोड़ रुपये एडवांस में देने वाले काे यह अंदाजा बिल्कुल नहीं रहा होगा कि पैसा लेने के बाद भी कोई इस प्रकार बागी हो जाएगा.
अर्गल तब तक मुरैना सीट से 3 बार भाजपा के सांसद चुने जा चुके थे. इसके बाद 2009 में भिंड सीट को अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित किए जाने के कारण अर्गल को भाजपा ने भिंड सीट से टिकट दिया और वह सांसद बने.
इस इलाके के मिजाज के प्रतिकूल दिल्ली के नामचीन पत्रकार उदयन शर्मा ने भी भिंड सीट पर 1991 में किस्मत आजमाई थी. कांग्रेस ने राजीव गांधी से मित्रता के चलते शर्मा को इस सीट पर भाजपा के स्वामी योगानंद सरस्वती के खिलाफ चुनाव मैदान में उतारा था, मगर उन्हें हार का सामना करना पड़ा.
पिछले चुनाव में मुरैना सीट से नरेंद्र सिंह तोमर चुनाव जीते थे. इसके बाद वह मोदी सरकार में कृषि मंत्री बनाए गए. इस सीट पर 1996 से भाजपा लगातार कब्जा बनाए हुए हैं. वहीं 1989 से लगातार अब तक भाजपा के कब्जे में रही भिंड सीट पर 2019 में संध्या राय चुनाव जीती थीं.
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इन दोनों सीटों पर दलित मतदाताओं की बहुलता होने के कारण बसपा ने 1990 के दशक से अपनी पकड़ को मजबूत बनाया. इस कारण इन सीटों पर भाजपा, बसपा और कांग्रेस के बीच त्रिकोणीय मुकाबला होता रहा. 2014 के बाद से बसपा का ग्राफ लगातार गिरने का असर इन दोनों सीटों पर भी पड़ा. इस कारण से पिछले दो चुनावों में इन सीटों पर कांग्रेस और भाजपा के बीच सीधी टक्कर होती है. हालांकि बसपा के उम्मीदवार वोटकटवा साबित होकर कांग्रेस काे अभी भी नुकसान पहुंचाने में सफल हो जाते हैं.
मौजूदा चुनाव में मुरैना सीट से भाजपा ने Sitting MP नरेंद्र सिंह तोमर की जगह शिवमंगल सिंह तोमर को उम्मीदवार बनाया है. तोमर अब दिमनी से विधायक बन कर एमपी विधानसभा के अध्यक्ष बन गए हैं. कांग्रेस ने सत्यपाल सिंह सिकरवार और बसपा ने रमेश चंद गर्ग को टिकट टिकट दिया है. मुरैना सीट पर वैश्य और क्षत्रिय मतदाताओं की संख्या प्रभावी है. ऐसे में भाजपा और कांग्रेस द्वारा क्षत्रिय उम्मीदवार उतारे जाने के बाद बसपा ने वैश्य को उम्मीदवार बनाया है. जिससे मत विभाजन का लाभ कांग्रेस के पक्ष में कम होता दिख रहा है.
वहीं, भिंड सीट पर भाजपा ने एक बार फिर संध्या राय को टिकट दिया है. जबकि कांग्रेस ने फूल सिंह बरैया को टिकट दिया है. बरैया हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में दतिया जिले की भांडेर सीट से चुनाव हार चुके हैं. वह पहले भी बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ चुके हैं. बसपा ने इस सीट पर देवाशीष जरारिया को टिकट दिया है. वह पिछले चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर लड़े थे और दूसरे नंबर पर रहे थे. स्पष्ट है कि इस चुनाव में भिंड सीट पर त्रिकोणीय मुकाबला होने के आसार हैं.
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