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चुनावी वादों का जुमला बनकर रह गई महोली चीनी मिल, जल्द शुरू होने की आस में बैठे किसान

चुनावी वादों का जुमला बनकर रह गई महोली चीनी मिल, जल्द शुरू होने की आस में बैठे किसान

हालांकि एक वक्त ऐसा था जब इस मिल का दाना एशिया में मशहूर हुआ करता था. लेकिन वर्ष 1998 में घाटा होने के कारण मिल को बंद करना पड़ा. मिल के बंद होने के कारण 250 नियमित कर्मचारी और  700 से ज़्यादा सीज़नल कर्मचारी बेरोजगार हो गये.

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बंद पड़ी चीनी मिल बंद पड़ी चीनी मिल

देश में एक बार फिर चुनाव होने बाले हैं. इस बीच विभिन्न राजनीतिक दलों का प्रचार प्रसार चालू है. सभी नेता और पार्टियां अपने-अपने सहूलियत के हिसाब से  चुनाव प्रचार कर रहे हैं और वादे कर रहे हैं. सीतापुर के महोली का चीनी मिल भी इस इसी चुनावों के दावों और वादों के बीच फंसकर रह गया है. हालांकि हर बार चुनाव के वक्त नेता इसे खोलने के वादे करते हैं फिर चुनाव खत्म होते ही उनके वादों की मियाद भी खत्म हो जाती है औऱ मिल की स्थिति जस की तस बनी रहती है. महोली क़स्बे में स्थित दि लक्ष्मी जी शुगर मिल पिछले 26 सालों से बंद पड़ी है.

हालांकि एक वक्त ऐसा था जब इस मिल का दाना एशिया में मशहूर हुआ करता था. लेकिन वर्ष 1998 में घाटा होने के कारण मिल को बंद करना पड़ा. मिल के बंद होने के कारण 250 नियमित कर्मचारी और  700 से ज़्यादा सीज़नल कर्मचारी बेरोजगार हो गये. इस बीच जब भी चुनाव आया तो नेताओ ने इस चीनी मिल को चालू कराने के लिए स्थानीय लोगों को सपने दिखाए और वोट लिए. पर चीनी मिल चालू नहीं हुई. आज चीनी मिल के कलपुर्जों में जंग लग रही है. दि लक्ष्मी शुगर मिल की स्थापना सेठ किशोरी लाल ने वर्ष 1932 में की थी. क़स्बे के रहने वाले राजू दीक्षित बताते है चीनी मिल का दाना इतना बड़ा और सफेद था यहां की चीनी आर्मी को सप्लाई की जाती थी.

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भाजपा सरकार में बंद हुई थी महोली चीनी मिल

मिल पर बढ़ते कर्ज और मिल के घाटे में चलने के कारण उस वक्त के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने मिल को बंद करने का फैसला किया. इसके बाद 1998 में यह मिल बंद हो गया. जिसके बाद से आज भी चीनी मिल की चिमनी से धुंआ निकलने की आस में लाखों किसानो के साथ हजारों की संख्या में बेरोजगार युवा आस लगाये बैठे हैं. महोली गन्ना विकास समिति के गन्ना विकास अधिकारी सूर्य नारायण द्विवेदी बताते हैं कि ये मिल फरवरी 1998 में जब बंद हुई उस वक्त इस मिल में गन्ना विकास समिति के 536 गांवों और मैगलगंज (लखीमपुर खीरी जिला) गन्ना विकास समिति के 110 गांवों का गन्ना आता था. महोली जोन के किसानों का गन्ना अब जवाहरपुर चीनी मिल और हरदोई कि दो मिलों हरिगांवा और अजवापुर में जाता है. गन्ना विभाग की जानकारी के अनुसार जोन में करीब 70 हजार गन्ना किसान हैं, जिनमें से 66 हजार किसान गन्ने की आपूर्ति भी करते हैं. 

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इतनी थी पेराई क्षमता

द्विवेदी आगे बताते हैं कि यह पुराने जमाने की मिल थी, जिसकी रोजाना पेराई क्षमता 25 हजार क्विंटल हुआ करती थी, वहीं अब लाखों क्विंटल गन्ने की रोजना पेराई की जाती है. हालांकि चीनी मिल बंद होने से किसानों पर कोई ख़ास असर नहीं पड़ा. क्योंकि गन्ने की आपूर्ति नियमित जारी है. पहले की तुलना में गन्ने का क्षेत्रफल भी बढ़ा है.वो ये भी कहते हैं कि सीतापुर में एक चीनी मिल को छोड़कर मौजूदा समय में किसानों को 14 दिन में भुगतान भी हो रहा है. 

(सीतापुर से मोहित शुक्‍ला की रिपोर्ट)