भारत में Farmers Income बढ़ाने के लिए सरकार कई योजनाएं चला रही है. देश में Sustainable Farming Methods को बढ़ावा देने के लिए Natural and Organic Farming को भी बढ़ावा दिया जा रहा है. इसके पीछे अत्यधिक लागत वाली रासायनिक खेती से पर्यावरण और इंसानों की सेहत के लिए उपजे खतरे से बचना भी एक वजह है. वैज्ञानिक भी अब इस बात को मानने लगे हैं कि सर्वकल्याण के लिहाज से जहर मुक्त प्राकृतिक और जैविक खेती ही स्थाई समाधान है. पर्यावरण संबंधी शोध संस्था CSE के अध्ययन में वैज्ञानिकों ने कहा है कि खर्च और आमदनी के हिसाब से Chemical Free Farming ही मुनाफे का सौदा है. वैज्ञानिकों का दावा है कि जिन किसानों को समय के साथ यह बात समझ में आ रही है, वे प्राकृतिक और जैविक खेती काे अपना रहे हैं. खेती की इसी परंपरागत विधा के रूप में किसानों को आज नहीं तो कल, प्राकृतिक या जैविक खेती को अपनाना ही होगा.
शोध में खेती की लागत से जुड़े सभी Component का विस्तृत अध्ययन किया गया है. इसमें खाद, बीज, ऊर्जा, दवाएं और श्रम सहित खेती में लगने वाली सभी प्रकार की लागत और मौसम आदि से हुए नुकसान के बाद हुए उत्पादन और मुनाफे का विश्लेषण किया गया.
रिपोर्ट के मुताबिक प्राकृतिक एवं जैविक खेती जलवायु की अनुकूलता के लिहाज से बिल्कुल मुफीद है. इस प्रकार Climate Change की चुनौतियों का किसानों को जो नुकसान उठाना पड़ रहा है, प्राकृतिक या जैविक खेती करके किसान इस नुकसान से बच सकते हैं.
अध्ययन में शामिल कर्नाटक के धारवाड़ स्थित University of Agriculture Science के वैज्ञानिक सीपी चंद्रशेखर ने कहा कि प्राकृतिक और जैविक खेती ज्यादा उत्पादन और मुनाफा देने वाली हैं. यह बात शोध में भी उजागर हुई है. इस बात का परीक्षण लागत और मुनाफे का समग्र लेखा जोखा करके ही किया गया है. अध्ययन में मिट्टी, पानी, ऊर्जा, जैव विविधता, कार्बन उत्सर्जन और जलवायु परिवर्तन के अलावा जीव जगत की सेहत पर प्रभाव के पहलुओं को भी शामिल किया गया.
सीएसई की “Evidence on Holistic Benefits of Organic and Natural Farming in India” शीर्षक से प्रकाशित रिपोर्ट में प्राकृतिक और जैविक खेती के फायदों का जिक्र है. इसके अनुसार खेती की इन विधाओं में खेत की मिट्टी का स्वास्थ्य बेहतर होता है. मिट्टी को सख्त बनाने वाले Chemical Fertilizer से इतर गोबर एवं अन्य Organic Composts से खेत की मिट्टी का भुरभुरापन (Soil Porosity) बढ़ता है. इससे मिट्टी की जलधारण क्षमता (water-holding capacity) बढ़ती है. फलस्वरूप पौधों की जड़ें ज्यादा गहराई में जाने से पौधों को ज्यादा पोषक तत्व मिलते हैं.
चंद्रशेखर ने कहा कि कुल मिलाकर रसायन रहित खेती से मिट्टी की सूक्ष्मजीवी सेहत बेहतर होती है. इससे सेहत के लिहाज से पौधे मजबूत बनने के कारण जलवायु की प्रत्येक परिस्थितियों का सामना करने में सक्षम होते हैं. इसीलिए प्राकृतिक एवं जैविक खेती काे Sustainable Farming का उपयुक्त विकल्प माना जा रहा है. इस आधार पर रिपोर्ट में प्राकृतिक खेती को संपूर्ण लाभ के लिहाज से रासायनिक खेती की तुलना में ज्यादा फायदेमंद बताया गया है.
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रिपोर्ट के मुताबिक प्राकृतिक और जैविक खेती को हर लिहाज से फायदेमंद मानते हुए सरकार इसे बढ़ावा दे रही है. इनमें केंद्र और राज्य सरकारें परंपरागत कृषि विकास योजना, पूर्वोत्तर राज्यों के लिए चल रहा Mission Organic Value Chain और National Mission on Natural Farming सहित अन्य योजनाएं शामिल हैं.
रिपोर्ट के अनुसार इसके बावजूद प्राकृतिक और जैविक खेती का दायरा बढ़ने की गति अभी भी धीमी बनी हुई है. इसकी वजह यह है कि पिछले 5-6 दशकों में किसानों द्वारा अपनाई गई रासायनिक खेती को छोड़ कर फिर से परंपरागत खेती को अपनाना जोखिम या चुनौतीपूर्ण काम लगता है.
सरकार के आंकड़ों से इस स्थिति का अंदाज लगाया जा सकता है. इसके मुताबिक मार्च 2023 तक देश भर में बोई गई फसलों के क्षेत्रफल में प्राकृतिक और जैविक खेती की हिस्सेदारी महज 4.2 प्रतिशत थी. इस अवधि में बुआई करने वाले 14.6 करोड़ किसानों में organic farmers की भागीदारी महज 3 फीसदी तक ही पहुंच पाई थी. इसी कारण से सरकार की भी चिंता है कि हर लिहाज से फायदेमंद साबित होने वाली प्राकृतिक एवं जैविक खेती को अपनाने वाले किसानों की संख्या में अपेक्षित इजाफा नहीं हो रहा है.
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