राजमा पोषक गुणों से भरपूर एक दलहनी फसल है जिसे देश के लोग खूब खाना पसंद हैं. खास कर उत्तर भारत के लोगों की तो राजमा चावल पहली पसंद हैं. यही वजह है कि इसकी मांग भी खूब होती है. इसकी बढ़ी हुई मांग को देखते हुए अब देश के मैदानी इलाकों में भी राजमा की खेती होने लगी है. इसकी खेती किसानों के लिए बेहद फायदेमंद होती है. इसकी उन्नत किस्म की खेती करके किसान अच्छी कमाई कर सकते हैं. पर इसकी खेती शुरू करने से पहले किसानों को यह जानना जरूरी है कि इसकी खेती कैसे की जाती है और अच्छी कमाई हासिल करने के लिए कौन से उन्नत किस्मों की खेती की जानी चाहिए.
किसी भी फसल की खेती में अच्छी उपज हासिल करने के लिए अच्छी गुणवत्ता के बीज का इस्तेमाल करना पड़ता है. अच्छी नस्ल से अधिक पैदावार होती है औऱ किसानों की आय़ बढ़ती है. राजमा की खेती करने के लिए किसान राजमा की उन्नत किस्मों का उपयोग कर सकते हैं. इनमें पी.डी.आर-14 (उदय), मालवीय-137, वी.एल.-63, अम्बर (आई.आई.पी.आर-96-4), उत्कर्ष (आई.आई.पी.आर-98-5), अरूण नाम की उन्नत किस्म की नस्ल हैं. राजमा के बुवाई के समय की बात करें तो राजमा की खेती के लिए अक्टूबर महीने का तीसरा और चौथा सप्ताह इसकी बुवाई का सही समय है. वहीं पूर्वी भारत में इसकी बुवाई नवंबर के पहले सप्ताह में भी की जाती है. पर इसके बाद बुवाई करने से इसके उत्पादन में गिरावट आती है.
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राजमा की खेती के लिए दोमट और हल्की दोमट मिट्टी बेहतर मानी जाती है. पर इसकी खेती में इस बात का विशेष ध्यान रखना पड़ता है कि पानी खेत से पानी निकासी की उचित व्यवस्था की गई हो. इसकी बुवाई के लिए खेत को अच्छे से दो से तीन बार कल्टीवेटर से जुताई करके खेत को तैयार किया जाता है. साथ ही इस बात का खास ध्यान देना होता है कि बुवाई के वक्त खेत में पर्याप्त नमी हो. राजमा की बुवाई करने से पहले इसका बीजोपचार करना जरूरी है. इससे बीजों को पर्याप्त नमी मिलती है.
राजमा की खेती के लिए अधिक नाइट्रोडन की आवश्यकता होती है. इसकी खेती में प्रति हेक्टेयर 120 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फॉस्फेट और 30 किलोग्राम पोटाश का छिड़काव करने की जरूरत होती है. किसान को खाद देते वक्त इस बात का ध्यान रखना चाहिए की राजमा की बुवाई के वक्त 60 किलोग्राम नाइट्रोजन और पोटाश और फॉस्फेट की पूरी मात्रा डाल देनी चाहिए, फिर बची हुए नाइट्रोजन का छिड़काव बुवाई के बाद करना चाहिए. इसके अलावा खेत में 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर गंधक का छिड़काव करने से अच्छे परिणाम मिलते हैं. साथ ही अच्छी उपज पाने के किए 30 और 50 दिन में खेत में 2 प्रतिशत यूरिया का छिड़काव करना चाहिए. साथ ही समय समय पर खेत की नमी के हिसाब से बुवाई करना चाहिए.
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राजमा की खेती में निराई-गुड़ाई का विशेष महत्व होता है. निराई गुड़ाई करते समय इसके पौधों में मिट्टी चढ़ा देना चाहिए जजब फल लगे तो पौधौं को सहारा मिल सके. इसके अलावा फल लगने के साथ ही खर पतवार नियंत्रण के लिए 3.3 लीटर प्रति हेक्टेयर पेंडीमेशलीन का छिड़काव करें. राजमा में मौजेक का प्रकोप होता है, साथ ही सफेद मक्खियों पर नियंत्रण करने से इसमें रोग नहीं फैल पाते हैं.
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