भारत में खरीफ सीजन में प्रमुख तौर पर धान के साथ-साथ मक्का की खेती की जाती है. खरीफ की यह मुख्य फसल मानी जाती है. खरीफ के सीजन में मक्का के साथ मिश्रित खेती भी की जाती है. इससे किसानों को काफी लाभ होता है क्योंकि खरीफ के सीजन में किसान मकई के साथ बींस, खीरा, भिडी या अन्य सब्जियों की खेती करते हैं. इससे किसानों को काफी फायदा होता है. जो किसान खरीफ के सीजन में मक्के की खेती करना चाहते हैं, उन्हें अभी से ही इसकी खेती की तैयारी शुरू कर देनी चाहिए. किसान खरीफ मक्का की बुवाई 25 से 15 जून तक तक सकते हैं. इसकी खेती से किसानों को अच्छी आमदनी प्राप्त होती है. मिश्रित खेती में किसान मक्का के साथ झिंगी, उड़द या अरहर की भी खेती कर सकते हैं.
बिहार मकई उत्पादन के मामले में देश का एक अग्रणी राज्य है. यहां पर तीनों ही सीजन रबी, खरीफ और जायद के सीजन में मक्के की खेती की जाती है. रबी फसल में जिन किसानों के पास सिंचाई की व्यवस्था है वो किसान मकई की खेती बड़े पैमाने पर करते हैं. मुख्य तौर पर दियारा और टाल क्षेत्रों में इसकी खेती की जाती है. बिहार के भागलपुर जिले में प्रमुख तौर पर मक्के की खेती की जाती है. मकई की खेती में 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बीज का इस्तेमाल करना चाहिए. साथ ही बीजी की बुवाई से पहले बीज को फफूंदनाशक दवा कैप्टान, थीरम या वैभिस्टिन के साथ बीजोपचार करें. बीजोपचार के लिए 2.5 ग्राम पाउडर के साथ प्रति किलोग्राम बीज का इस्तेमाल करें.
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मकई की खेती के लिए खेत की तैयारी करने के लिए खेतों की अच्छे तरीके से जुताई करनी चाहिए. जुताई गहरी होनी चाहिए और फिर पाटा चलाकर इसे समतल कर देना चाहिए. इससे खेत ढेला रहित हो जाता है और मिट्टी भुरभुरी हो जाती है. मकई की बुवाई से पहले खेत में प्रति हेक्टेयर 10-15 टन गोबर की सड़ी हुई खाद या वर्मी कंपोस्ट का इस्तेमाल करना चाहिए. इसके साथ ही खेत से जलनिकासी की पर्याप्त व्यवस्था होनी चाहिए. क्योंकि मकई के खेतों में जलजमाव होने से फसल को नुकसान हो सकता है. बुवाई करने के लिए पौधों से पौधं के बीच की दूरी 20 सेमी होनी चाहिए. साथ ही पंक्ति से पंक्ति की दूरी 25 सेमी होनी चाहिए.
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मकई की खेती में रबी और गरमा सीजन की खेती में पांच से छह सिंचाई की आवश्यकता होती है. मोचा निकलने से दाना भरने तक खेत में पर्याप्त नमी की रहने की जरूरत होती है. खरीफ सीजन में मकई के खेतों में सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है. जबकि इस सीजन में खेतों में जल निकासी सी बेहतर व्यवस्था होनी चाहिए. खरीफ और जायद की खेती में 35 से 40 दिनों के उपरांत खाद का इस्तेमाल करना चाहिए. मकई के खेत में तीन साल में एक बार जिंक सल्फेट का इस्तेमाल 20-25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से करना चाहिए.
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