जलवायु परिवर्तन के कारण मिट्टी की नमी में कमी आई है, तापमान और बारिश के पैटर्न में भी बदलाव आया है. साथ ही कीट और रोग लगने की घटनाओं में भी तेजी से बढ़ोतरी हुई है, जिससे फसलों की उत्पादकता पर प्रभाव पड़ रहा है. यही वजह है कि देश के किसान परंपरागत फसलों की खेती छोड़ ऐसी फसलों की खेती कर रहे हैं जो मौजूदा वक्त में उनके लिए लाभकारी हो. इसी क्रम में इस साल कपास और दालों का रकबा कम कर किसानों ने मक्के का रकबा बढ़ा दिया है. दरअसल बिजनेसलाइन की रिपोर्ट के मुताबिक, मध्य प्रदेश, कर्नाटक और महाराष्ट्र के किसानों ने इस खरीफ सीजन में अधिक मक्का लगाया है और 18 अगस्त तक देश में हार्डी फसल का कुल क्षेत्रफल 81.24 लाख हेक्टेयर से अधिक हो गया है. यह एक साल पहले कवर किए गए 79.41 लाख हेक्टेयर के मुकाबले अधिक है.
मालूम हो कि मॉनसून धीरे से आने और धीमी गति से बढ़ने के बाद किसानों का एक वर्ग दालों और कपास जैसी अन्य फसलों की तुलना में मक्के की खेती करना पसंद कर रहा है.
मध्य प्रदेश में मक्के का क्षेत्रफल एक साल पहले के 15.99 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 17.41 लाख हेक्टेयर हो गया है. मध्यप्रदेश में मक्के का क्षेत्रफल सामान्य (पांच वर्ष का औसत) 13.48 लाख प्रति हेक्टेयर से अधिक है. इसी तरह, कर्नाटक में मक्के का क्षेत्रफल बढ़कर 14.53 लाख हेक्टेयर (एक साल पहले की समान अवधि में 13.79 लाख हेक्टेयर) और महाराष्ट्र में 8.77 लाख हेक्टेयर (8.74 लाख हेक्टेयर) हो गया है. उत्तर प्रदेश में यह क्षेत्र 7.54 लाख हेक्टेयर (7.49 लाख हेक्टेयर), झारखंड में 2.19 लाख हेक्टेयर (1.99 लाख हेक्टेयर) और तेलंगाना में 2.05 लाख हेक्टेयर (2.01 लाख हेक्टेयर) से थोड़ा ऊपर है. हालांकि, राजस्थान में रकबा थोड़ा कम होकर 9.42 लाख हेक्टेयर (9.44 लाख हेक्टेयर) और गुजरात में 2.82 लाख हेक्टेयर (2.87 लाख हेक्टेयर) पर है.
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आईसीएआर-भारतीय मक्का अनुसंधान संस्थान (आईआईएमआर) के निदेशक, हनुमान सहाय जाट ने कहा कि पिछले साल की तुलना में इस बार खरीफ मक्के का रकबा अधिक है. मॉनसून के देर से आने के कारण किसानों ने कम अवधि वाली किस्मों को अपनाया है. जाट ने कहा, “फसल की स्थिति अच्छी है और लगभग पिछले वर्ष के समान है. हम इस साल अच्छी फसल की उम्मीद कर रहे हैं.”
तीसरे अग्रिम अनुमान के अनुसार, 2022-23 के दौरान भारत का मक्का उत्पादन रिकॉर्ड 35.91 मिलियन टन था. हालांकि, दक्षिण एशिया जैव प्रौद्योगिकी केंद्र के निदेशक, भागीरथ चौधरी ने कहा कि सरकार को फॉल आर्मीवर्म कीट के प्रबंधन पर गंभीरता से ध्यान देना चाहिए, जो कुछ साल पहले मक्के में सामने आया एक खतरनाक कीट है. उन्होंने कहा, “कीट अभी भी सक्रिय है, लेकिन यह मक्के को नुकसान नहीं पहुंचा पाएगा. किसानों ने कीट से निपटना सीख लिया है, लेकिन प्रति एकड़ 3,000-4,000 रुपये की अतिरिक्त लागत पर, जिसके बाद उनके लिए खेती की लागत अधिक हो जाती है.”
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वहीं, एग्रीटेक फर्म एब्सोल्यूट के विशेषज्ञ-वैश्विक कमोडिटी रिसर्च, तरुण सत्संगी ने कहा, "हालांकि हम पिछले साल के 81.5 लाख हेक्टेयर के स्तर के करीब हैं, लेकिन अगस्त में कम बारिश और उच्च तापमान के कारण इस खरीफ सीजन में मक्के की पैदावार चिंता का विषय हो सकती है."
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