कीटनाशक प्रबंधन बिलकेंद्र सरकार ने लंबे समय से लटके हुए कीटनाशक प्रबंधन विधेयक पर फिर से विचार-विमर्श शुरू कर दिया है. बताया जा रहा है कि सरकार इसे कृषि क्षेत्र के बड़े सुधारों में से एक मान रही है. लेकिन पौध संरक्षण उद्योग ने इस विधेयक पर गहरी चिंता व्यक्त की है. इंडस्ट्री का कहना है कि नया कानून 'लाइसेंस राज' को बढ़ावा दे सकता है और कड़े डाटा सुरक्षा नियम न होने से नए शोध प्रभावित हो सकते हैं. एग्रो केम फेडरेशन ऑफ इंडिया के महानिदेशक कल्याण गोस्वामी के अनुसार, यह विधेयक भारत के कीटनाशक नियमों को आधुनिक बनाने की एक बड़ी कोशिश है, लेकिन इसमें बहुत सारी कमियां हैं जिन्हें दूर करना पड़ेगा.
कीटनाशक प्रबंधन विधेयक पिछले कई सालों से चर्चा में है. सबसे पहले 2008 में इसे राज्यसभा में पेश किया गया था, लेकिन यह पास नहीं हो हुआ. इसके बाद 2020 में कैबिनेट ने नए बिल को मंजूरी दी और इसे संसद में पेश किया गया. संसदीय समिति ने 2021 में अपनी रिपोर्ट भी सौंपी थी. वहीं, अब 2025 तक यह बिल अभी भी विचाराधीन है और कानून बनने का इंतजार कर रहा है.
पौध संरक्षण उद्योग की सबसे बड़ी चिंता लाइसेंसिंग की प्रक्रिया को लेकर है. जानकारी के अनुसार, मौजूदा मसौदे में राज्य सरकारों को लाइसेंस अधिकारियों की शक्तियां तय करने की असीमित छूट दी गई है. इंडस्ट्री का मानना है कि इससे राज्यों के बीच नियमों में एकरूपता नहीं रहेगी. इसके अलावा अधिकारियों की मनमानी बढ़ सकती है और भ्रष्टाचार का खतरा पैदा हो सकता है. उद्योग की मांग है कि केंद्र एक डिजिटल सिस्टम के जरिए साफ और एक समान लाइसेंसिंग नियम बनाए. इसके साथ ही, लाइसेंस धारकों को बार-बार नए राज्य-स्तर पर लाइसेंस लिए बिना कहीं भी बिक्री करने की अनुमति दी जाए.
कीटनाशक प्रबंधन विधेयक की धारा 40(1)(d) को लेकर भी सवाल उठाए जा रहे हैं. इसमें इंस्पेक्टरों को नमूने लेने का अधिकार दिया गया है, लेकिन यह तय करने का कोई नियम नहीं है कि यह प्रक्रिया निष्पक्ष होगी या नहीं. पौध संरक्षण उद्योग को डर है कि इससे चुनिंदा कंपनियों को निशाना बनाया जा सकता है. ऐसे में मांग की गई है कि नमूने रोटेशन के आधार पर हो और पारदर्शिता के लिए इसका डिजिटल रिकॉर्ड रखा जाए.
पौध संरक्षण उद्योग ने धारा 57 को हटाए जाने पर भी लाल झंडी दिखाई है, जो कीटनाशकों की कीमतों के नियम से जुड़ी है. इंडस्ट्री का तर्क है कि कीटनाशकों की कीमत बाजार का विषय है, इसे तकनीकी कानून के जरिए नियंत्रित करना सही नहीं है. इंडस्ट्री का कहना है कि धारा 35 के तहत बिना वैज्ञानिक जांच के कंपनियों पर एक साल या उससे ज्यादा का बैन लगाना कारोबार को खत्म कर सकता है. उनका सुझाव है कि बैन केवल ठोस वैज्ञानिक सबूतों पर लगे, यह छोटी अवधि (60-90 दिन) के लिए हो और छोटी गलतियों को अपराध की श्रेणी से बाहर रखा जाए.
कीटनाशक प्रबंधन बिल (Pesticide Management Bill) एक प्रस्तावित कानून है, जिसका उद्देश्य भारत में कीटनाशकों के निर्माण, बिक्री, भंडारण और उपयोग को नियमों के अनुसार चलाना है, ताकि सुरक्षित और प्रभावी उत्पादों की उपलब्धता सुनिश्चित हो सके, मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण के जोखिम को कम किया जा सके, और नकली कीटनाशकों के कारण किसानों को हुए नुकसान की भरपाई के लिए एक 'क्षतिपूर्ति कोष' बनाया जा सके.
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