Farmers Festival : छत्तीसगढ़ के किसान सावन में मनाते हैं धरती को हरा भरा बनाने वाला हरेली पर्व

Farmers Festival : छत्तीसगढ़ के किसान सावन में मनाते हैं धरती को हरा भरा बनाने वाला हरेली पर्व

Farmers in India प्रकृति के साथ तालमेल कायम कर धरती काे हरियाली से सजाने का काम हजारों साल से करते आए हैं. खेती कहे जाने वाले इस काम में किसान इस बात का ध्यान रखते हैं कि जिस प्रकार से पूर्वजों ने उन्हें हरी भरी धरती दी थी, उससे ज्यादा हरियाली से सजी संवरी धरती वे अपनी भावी पीढ़ि‍यों को देकर जाएं. इसी उद्देश्य के लिए छत्तीसगढ़ के किसान आज भी सावन में हरेली पर्व मनाते हैं.

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Farmers Festival : छत्तीसगढ़ के किसान सावन में मनाते हैं धरती को हरा भरा बनाने वाला हरेली पर्वछत्तीसगढ़ में सरकार और समाज मिलकर सावन में मनाते हैं हरेली पर्व (फोटो: साभार, छग सरकार)

सावन के महीने में धरती अपने आप को हरियाली के रूप में को पेड़ पौधों के गहनों से सजाने का काम करती है. किसान इस काम में वन बाग लगा कर धरती का श्रृंगार करते हुए अपने भरण पोषण का भी इंतजाम करते हैं. भारत के किसान इस काम को अनादि काल से पर्व के रूप में मनाते हुए करते आए हैं. कालांतर में पैसे की भूख को मिटाने की जद्दोजेहद में फंसे किसान भले ही सावन के उत्सव से जुड़े इस मकसद को भूल गए हों, लेकिन छत्तीसगढ़ सहित अन्य Tribal Areas में किसानों ने इस परंपरा को आज भी जीवंत रखा है. छत्तीसगढ़ में आदिवासी और किसान समुदाय, सावन के महीने में Earth Beautification से जुड़े  पर्व के रूप में हरेली का भव्य आयोजन करते हैं. तारीफ की बात यह है कि Chhattisgarh Govt भी इस काम में पूरी तरह से शरीक होती है. इसके पीछे सबसे बड़ी वजह सामाजिक दबाव है] जिसके चलते सरकार को भी पूरे राज्य में उत्साह और उमंग से मनाए जाने वाले हरेली पर्व में पूरे सरकारी तंत्र को भी लगाना पड़ता है. वहीं, उत्तराखंड में इसे हरेला पर्व के नाम से मनाते हैं.

किसानों ने जिंदा रखीं हरेली की परंपराएं

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय स्वयं Tribal Community से ताल्लुक रखते हैं. खेती किसानी से जुड़े Tribal Traditions की गहरी जानकारी रखने वाले सीएम साय ने इस साल हरेली पर्व के मौके पर राज्य की जनता से आह्वान करते हुए कहा कि ''आइए इस हरेली धरती माँ का श्रृंगार करें, एक पेड़ मां के नाम लगाएं''.

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वैसे भी छत्तीसगढ़ की संस्कृति अपनी अति विशिष्ट परंपराओं और पर्वों के लिए जानी जाती है. यहां का हर पर्व, प्रकृति के प्रति गहरे समर्पण भाव की मिसाल देता है. राज्य सरकार की ओर से शुरू की गई इस मुहिम की सहायक संचालक डॉ. दानेश्वरी संभाकर ने कहा कि छत्तीसगढ़ में धरती मां को हरा भरा बनाने वाला दुर्लभ पर्व हरेली है. इस पर्व के साथ ही धरती हरीतिमा की चादर ओढ़ लेती है. इस पर्व को मनाते हुए एक तरफ किसान धान के खेतों में पौध की रोपाई करते हैं, वहीं वनवासी समुदायों के लोग फल और औषधीय महत्व के पौधे लगा कर अपने भरण पोषण का इंतजाम करते हैं.

पृथ्वी के प्रति प्रेम का प्रतिदान है हरेली

डाॅ. संभाकर ने कहा कि हर तरफ प्रकृति अपने सुंदर नजारे पेश करने के काम में अपने को व्यक्त करती है. ऐसे में धरती माता का पूरा स्नेह हर जीव-जन्तु पर उमड़ता है. इस स्नेह के प्रतिदान के रूप में छत्तीसगढ़ के लोग हरेली पर्व मनाते हुए प्रकृति की पूजा करते हैं.

उन्होंने कहा कि इस साल हरेली पर्व पर एक और खुशी छत्तीसगढ़ के लोगों के साथ जुड़ रही है. यह खुशी PM Modi द्वारा एक पेड़ मां के नाम पर लगाने के अभियान का आगाज होने की है. सीएम साय के नेतृत्व में यह अभियान पूरे उत्साह से राज्य में चल रहा है. सीएम साय ने खुद हरेली पर्व में शरीक होकर लोगों से धरती माता और अपनी मां के नाम पर पेड़ लगाने की अपील की है.

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खेती से जुड़ा लोकपर्व है हरेली

डॉ. संभाकर ने कहा कि जो धरती मनुष्यों सहित सभी जीव जंतुओं का भरण पोषण करती है, उसे सजा संवार कर रखने की जिम्मेदारी हम सब की है. धरती के श्रृंगार के लिए लगाए जाने वाले पौधे हरेली की स्मृतियों को संजोते हैं. इसीलिए छत्तीसगढ़ में हरेली को सबसे बड़े लोक पर्व का रुतबा हासिल है.

उन्होंने कहा कि राज्य के पहले लोक पर्व के रूप में हरेली के माध्यम से लोग छत्तीसगढ़ की संस्कृति और आस्था से अवगत हो पाते हैं. हरेली का मतलब ही हरियाली बनाए रखना होता है. यह पर्व हर वर्ष सावन महीने की अमावस्या के दिन मनाया जाता है.

उन्होंने बताया कि हरेली मुख्य रूप से खेती-किसानी से जुड़ा पर्व है. यह पर्व किसानों द्वारा Kharif Season की अपनी सभी फसलों की बुआई पूरी करने के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है. किसानों का मानना है कि धान सहित अन्य फसलों की बुआई करके वे धरती मां का श्रृंगार करने का काम मुकम्मल कर लेते हैं. हरेली मनाते हुए किसान खेती में काम आने वाले कृषि यंत्रों की पूजा करते हैं.

खेती के औजारों की होती है पूजा

उन्होंने बताया कि किसान इस पर्व के दौरान खेती में इस्तेमाल होने वाले हल, फावड़ा, खुरपी, नागर, गैंती और कुदाल आदि कृष‍ि यंत्रों की साफ-सफाई करते है. इसके बाद किसान इन यंत्रों को एक स्थान पर रखकर उनकी विधि‍वत पूजा करते हैं.

घर में महिलाएं तरह-तरह के छत्तीसगढ़ी व्यंजन बनाती हैं. इनमें गुड़ का चीला खासतौर पर बनाया जाता है. इस पर्व को जीवंत बनाने के लिए पूजा अर्चना और खान पान के अलावा खेल प्रतियोगिताएं भी आयोजित होती हैं. नारियल फेंक प्रतियोगिता के बिना तो हरेली पर्व अधूरा माना जाता है. इस दौरान युवा और बच्चे गेड़ी चढ़ने का भी लुत्फ उठाते हैं.

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हरेली में हैं हर समाज के अपने काम

डॉ. संभाकर ने बताया कि गौ पालन के काम से जुड़े यादव समाज के लोग हरेली के दिन गांव में सुबह से ही सभी घरों में जाकर गाय, बैल और भैंसों को नमक तथा बगरंडा का पत्ता खिलाते हैं. ऐसी मान्यता है कि इस पत्ते को खाने से पशुधन की सेहत रहती है.

हरेली के दिन गांव में लोहारों की भी पूछपरख बढ़ जाती है. इस दिन गांव के लोहार हर घर के मुख्य द्वार पर नीम की पत्ती लगाकर और चौखट में कील ठोंककर सुखी संपन्न होने का आशीष देते हैं. इसके पीछे मान्यता है कि ऐसा करने से उस घर में रहने वालों की अनिष्ट से रक्षा होती है.

इसके बदले में किसान उन्हे दान स्वरूप स्वेच्छा से दाल, चावल, सब्जी और नगद राशि भेंट स्वरूप देते हैं. ग्रामीण इस पर्व को मनाते हुए घर के बाहर गोबर से तमाम देवी देवताओं के चित्र बनारि किसी भी प्रकार के अनिष्ट से उनकी रक्षा करने की प्रार्थना करते हैं.

गेड़ी दौड़ का होता है आयोजन

कई दिनों तक चलने वाले हरेली पर्व में अमावस्या से लेकर तीजा तक गेड़ी दौड़ का आयोजन किया जाता है. मुख्य रूप से यह पुरुषों का खेल है. इसमें बांस के दो डंडों से दोनों पैरों के लिए गेड़ी बनाई जाती हैं. घर में जितने युवा एवं बच्चे होते हैं उतनी ही गेड़ी बना कर इनका इस्तेमाल करके दौड़ना होता है.

गेड़ी दौड़ का प्रारंभ हरेली से होकर भाद्रपद में तीजा के दिन तक होता है. इसमें तीजा पोला के समय जिस दिन बासी खाने का कार्यक्रम होता है, उस दिन गेड़ी दौड़ का समापन होता है. दौड़ में शामिल होने वाले बच्चे, गांव के तालाब पर जाकर स्नान करते समय गेड़ी को तालाब में छोड़ आते हैं. इसके बाद अगले साल हरेली की प्रतीक्षा करते हुए बच्चे पूरे साल गेड़ी पर नहीं चढ़ते हैं.

गेड़ी दौड़ का एक व्यवहारिक महत्व भी है. बारिश के मौसम में गांव के रास्ते कीचड़ से भर जाते है, इसलिए बच्चे इस समय गेड़ी पर चढ़कर एक स्थान से दूसरे स्थान पर आते जाते हैं. कालांतर में इसे हरेली पर्व की प्रतियोगिता का रूप दे दिया गया है.

प्रतियोगिता को रोचक बनाने के लिए गेड़ी दौड़ कीचड़ भरे रास्तों पर ही आयोजित की जाती है. डॉ. संभाकर ने कहा कि अब गांव के रास्ते पक्के बन गए हैं. गांव की गलियों में अब कीचड़ नहीं होता है, फिर भी गेड़ी दौड़ का महत्व आज भी बरकरार है.

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नारियल फेंक प्रतियोगिता

हरेली पर्व में बच्चों और युवाओं की गेड़ी दौड़ प्रतियोगिता के अलावा नारियल फेंक प्रतियोगिता भी होती है. यह अधेड़ उम्र के लोगों का खेल है. इसमें बच्चे भाग नहीं लेते हैं. इस प्रतियोगिता में एक निश्चित दूरी पर नारियल को बारंबार फेंका जाता है. जब एक नारियल खराब हो जाता है, तो तत्काल ही दूसरे नारियल को खेल में सम्मिलित किया जाता है.

खेल प्रारंभ होने से पूर्व नारियल फेंकने की दूरी निश्चित की जाती है, फिर शर्त रखी जाती है कि नारियल को कितने बार फेंक कर उक्त दूरी को पार किया जाएगा. जितनी बार निश्चित किया गया है, उतने बार में नारियल अगर उस दूरी को पार कर लेता है, तो वह नारियल उसी का हो जाता है. यदि प्रतिभागी नारियल फेंकने में नाकाम रहता है, तो उसे एक नारियल खरीद कर देना पड़ता है.

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