कृषि क्षेत्र में किसानों के लिए पैसे कमाने के कई तरीके हो सकते हैं, बस इसके लिए उन्हें कुछ नया सोचने की जरूरत होती है. अमरावती के रहने वाले एक 65 वर्षीय किसान ने कुछ इसी तरह का सोचा और आज वो फैमिली डॉक्टर की तरह फैमिली फार्मर हैं. धामनगांव रेलवे के रहने वाले किसान रमेश साखरकर पिछले दो वर्षों से पांच परिवारों के फैमिली फार्मर बने हुए और लगभग 20 लोगों को सेहत का खयाल रखते हुए उन्हें पौष्टिक भोजन करा रहे हैं. इस तरह से पूरा परिवार आज रासायन मुक्त पौष्टिक भोजन खा रहा है और एक स्वस्थ जीवन जी रहा है. उन सभी के बेहतर स्वास्थ्य में रमेश साखरकर का बड़ा योगदान है.
नागपुर में आयोजित एक बीजोत्सव कार्यक्रम में एक प्रजेंटेशन देते हुए सेवानिवृत प्रोफेसर रश्मी बख्शी ने कहा कि साखरगर गुरुजी ने हमे अपनाया है और हमे बिना रसायान वाला भोजन खिलाया है. वो हमे बेहतर स्वास्थ्य और खुशी देते हैं. इसी तरह से वर्धा के सुरगांव के रहने वाले 54 वर्षीय प्रवीण देशमुख प्राकृतिक खेती करते हैं और अपने ग्राहकों को शुद्ध प्राकृतिक उपज खिलाते हैं. वह तीन एकड़ में फसल और सब्जियां उगाते हैं. उन्होंने बताया कि ग्राहकों तक अपने उत्पाद की जानकारी देने के लिए उन्होंने एक व्हाट्सएप ग्रूप बनाया है. जिसमें 150 लोग हैं.
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टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक इस ग्रूप में प्रवीण अपने खेतों और फसलों से संबंधित पूरी जानकारी साझा करते हैं. जिसमें वो बताते हैं कि उन्होंने किस फसल की बुवाई की है. वों उन्हें बताते हैं कि फसल कैसे बढ़ रही है और उत्पादन किस तरह से हो रहा है. इसलिए सभी लोग उनपर पूरा विश्वास करते हैं. इसलिए वो खुद को सभी का फैमिली फार्मर कहते हैं. देशमुख अपने फार्म में ग्राहकों के लिए प्रत्येक साल एक लंच का भी आयोजन करते हैं. इस दिन के अलावा भी बाकी दिनों में ग्राहक उनके फार्म में आ सकते हैं और उनके फार्म को देख सकते हैं.
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वहीं रश्मी बख्शी बताती है कि प्राकृतिक रूप से उगाए गए सब्जियों की अच्छी कीमत मिलती है. रमेश साखरकर से सब्जी खरीदने वाला प्रत्येक परिवार उन्हें 7000 रुपये प्रति माह देता है. इस तरह से महीने की पहली तारीख को उनके पास 35 हजार रुपये होते हैं. वहीं किसानों से प्राकृतिक उत्पाद खरीदकर परिवारों को बेचने वाले हेमंत पर्रिकर बताते हैं कि पारिवारिक किसान की अवधारणा गलत नहीं है और जल्द ही यह उपभोक्ताओं के बीच एक प्रसिद्ध मॉडल हो जाएगा.
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