Rejuvenating Water Bodies : सरकार और समाज के सहयोग से संवर रहे तालाब और झीलें, सीएसई ने किया सर्वे

Rejuvenating Water Bodies : सरकार और समाज के सहयोग से संवर रहे तालाब और झीलें, सीएसई ने किया सर्वे

भारत में बीते कुछ दशकों में तालाब और झील सहित अन्य Water bodies विकास की अंधी दौड़ की भेंट चढ़ गई. पिछले कुछ सालों में इन जलस्रोतों को फिर से जीवंत करने की कोशिशें अब रंग लाने लगी है. सरकार और समाज के सहयोग से चल रही इस मुहिम की उपयोगिता को लेकर CSE द्वारा किए गए अध्ययन में पता चला है कि स्थानीय जल स्रोतों की दशा में अब बदलाव आ रहा है.

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Rejuvenating Water Bodies : सरकार और समाज के सहयोग से संवर रहे तालाब और झीलें, सीएसई ने किया सर्वेजलाशयों के संवरने से लौट रही जैव विविधता (सांकेतिक फोटो)

भारत में ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में मौजूद तालाब, पोखर और झील सहित अन्य छोटे बड़े जलाशय पिछले कुछ दशकों से चल रही विकास की आंधी में अपना वजूद खोने लगे थे. इनमें से अधिकांश Encroachment के कारण या तो निर्माण कार्यों की भेंट चढ़ गए या बुरी तरह प्रदूषित हो गए हैं. पिछले कुछ सालों में जलाशयों के वजूद को बचाने के लिए तेज हुई बहस का असर यह हुआ कि अतिक्रमण के शिकार होने वाले या सूख चुके जल स्रोत अब सरकार और समाज के सहयोग से पुनर्जीवित होने लगे हैं. इनमें लखनऊ की कुकरैल नदी पर सरकार द्वारा हटाए गए अतिक्रमण से लेकर अमृत सरोवर योजना के तहत संवारे गए पुराने तालाब तक, तमाम ऐसे जल स्रोत शामिल हैं, जिनका कायाकल्प हो रहा है. सुकून देने वाली यह बात पर्यावरण से जुड़े शोध संस्थान Centre for Science and Environment (CSE) की सर्वे रिपोर्ट में उजागर हुई है. देशव्यापी स्तर पर किए गए सर्वे की रिपोर्ट में इस उपलब्धि का श्रेय Govt Schemes के साथ निजी और सामुदायिक स्तर पर तेज की गई पहल को दिया गया है.

सर्वे के नतीजे

देश में चार अलग अलग तरह की जलवायु वाले इलाकों में सीएसई की ओर से 250 जलाशयों का सर्वे किया गया. इसमें पाया गया कि सरकारी योजनाओं के कार्यान्वयन और जन सहयोग से 140 झील और तालाबों की हालत में गुणात्मक बदलाव आया है.

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सर्वे रिपोर्ट के निष्कर्षों को एक किताब में भी संकलित किया गया है. ‘बैक फ्रॉम द ब्रिंक: रिजुवनेटिंग इंडियाज लेक, पॉन्ड्स एंड टैंक्स - ए कॉम्पेंडियम ऑफ सक्सेस स्टोरीज’ नामक इस पुस्तक में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार देश के दर्जन भर से ज्यादा राज्यों में जल स्रोतों को संवारने के काम का सर्वे किया गया था. इनमें राज्य सरकार की 22 और केंद्र सरकार की 5 योजनाओं के तहत बनी या बहाल हुई 250 Water Bodies की समीक्षा की गई.

सर्वे में शामिल किए गए जल स्रोत जिन 4 जलवायु क्षेत्रों में मौजूद थे उनमें सिंधु-गंगा का मैदानी क्षेत्र, रेगिस्तान, तटीय मैदान और दक्कन का पठार शामिल है. सर्वे में मिशन अमृत सरोवर, अमृत 2.0, दिल्ली में झीलों काे संवारने की मुहिम और तमिलनाडु की अनाइथा ग्राम अन्ना मरुमलार्ची थोट्टम (एजीएएमटी) योजना भी प्रमुख रूप से शामिल रही. इन योजनाओं में शामिल 250 जलाशयों में से लगभग 140 जलाशय उम्मीदों पर खरे उतर रहे हैं.

गौरतलब है कि देश में पहली बार जल संसाधनों की गणना पिछले साल की गई थी. इसके अनुसार, भारत में कुल 2,424,540 वॉटर बॉडी हैं. इनमें से 97 प्रतिशत से अधिक जलाशय ग्रामीण इलाकों में ही मौजूद हैं. इन जलाशयों का Catchment area और उनके Feeder Channel जल संग्रह में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं. साथ ही ये बाढ़ को भी नियंत्रित करने में कवच का काम करते हैं.

जलाशय बढ़ा रहे जैव विविधता

रिपोर्ट के अनुसार पुनर्जीवित हुए जलाशय Incredible Biodiversity के घर साबित हो रहे हैं. इन झील, तालाबों की दशा सुधारने के बाद इनका उपयोग स्थानीय लोगों द्वारा किया जाने लगा है. इससे ये जलाशय सामाजिक साहचर्य में भी अहम भूमिका निभा रहे हैं. यह सर्वे सीएसई में Water Program की प्रबंधक सुष्मिता सेनगुप्ता की अगुवाई में किया गया. सर्वे की Findings के बारे में सेनगुप्ता ने बताया कि पुनर्जीवित हुए जलाशयों की कामयाबी के पीछे राजनीतिक और प्रशासनिक इच्छाशक्ति के अलावा सामुदायिक भागीदारी मुख्य वजह रही.

उन्होंने कहा कि जिन इलाकों में अमृत सरोवर मिशन जैसी योजनाओं को राजनीति और प्रशासनिक इच्छाशक्ति से पूरा किया गया, उनमें बदलाव साफ तौर पर देखा जा सकता है. सर्वे रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि जलाशयों की बदहाली को सुधारने के लिए जो शुरुआत की गई है, उसे बरकरार रखने की जरूरत है.

आगे का रास्ता

सर्वे के आधार पर जुटाए गए तथ्यों के हवाले से रिपोर्ट में कहा गया है कि देश भर में जल स्रोतों को पुनर्जीवित करने के लिए यह जरूरी है कि उनमें गंदे पानी को जलाशय में डालने से पहले उसे साफ करें. क्योंकि गंगा और यमुना सहित देश की तमाम नदियों सहित अन्य जलाशयों के प्रदूषित होने की एक मात्र वजह इनमें गंदे पानी का लगातार हो रहा प्रवाह है.

रिपोर्ट के अनुसार अटल कायाकल्प और शहरी परिवर्तन मिशन (AMRUT) 2.0 में Water Bodies के कायाकल्प के साथ-साथ उनमें Recycled Treated Water का ही प्रवाह करने का प्रावधान है. इस मिशन के तहत केंद्र और राज्य सरकार की एजेंसियों को इन प्रावधानों का पालन हर हाल में सुनिश्चित कराने की जरूरत है. साथ ही प्रत्येक जलाशय की दशा को सुधारने के क्रम में उसके बहाव क्षेत्र और फीडर चैनलों को भी एक साथ उपचारित किया जाना जरूरी है. 

इसके लिए जलभराव क्षेत्र और फीडर चैनलों की वास्तविक सीमाओं की Mapping की जानी चाहिए. इसके अलावा क्षेत्रीय और स्थानीय स्तर पर प्रत्येक जलाशय के जलभराव क्षेत्र को मैपिंग के जरिए खाली स्थान के रूप में छोड़ना जरूरी है. तभी बाढ़ नियंत्रण के उपाय कारगर साबित होंगे.

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डेटाबेस बना कारगर हथ‍ियार

रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकारी परियोजनाओं में जलाशयों का Database बनाकर इनकी पहचान करके इन्हें पुनर्जीवित करना सार्थक पहल साबित हुई है. रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि अब देश के शहरी इलाकों में भी जलाशयों का विस्तृत डेटाबेस बनाना जरूरी है. क्योंकि शहरी इलाकों में अक्सर अतिक्रमण के शिकार हो चुके और गाद से भरे जलाशय सरकारी रिकॉर्ड में ही अपने वजूद को बचा पाते हैं. इस लिहाज से जलाशयों के जीर्णोद्धार की योजनाओं को लागू करने में मजबूत डाटाबेस मददगार साबित होगा.

रिपोर्ट के अनुसार सरकारी योजनाओं में जल शोधन की आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल तो हो रहा है, लेकिन जितने प्रभावी ढंग से इन तकनीकों को सतत रूप से प्रयोग में लाया जाना चाहिए, उतना नहीं हो पा रहा है.  इसे अपशिष्ट जल के उपचार और जलाशयों में प्रदूषण के उन्मूलन के लिए उपलब्ध कराया जाना चाहिए. रिपोर्ट के मुताबिक ग्राम पंचायतों की जमीनों पर भी अतिक्रमण का बढ़ता खतरा ग्रामीण इलाकों में जलाशयों पर आसन्न संकट के रूप में देखा जा रहा है. सरकार को समय रहते इस खतरे को भांप कर अभी से कारगर उपाय करने चाहिए.

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