मिशन 2024 में बीजेपी के लिए झारखंड में कितना फायदेमंद होगा अर्जुन मंडा का कृषि मंत्री बनना, पढ़ें यहां का चुनावी गणित

मिशन 2024 में बीजेपी के लिए झारखंड में कितना फायदेमंद होगा अर्जुन मंडा का कृषि मंत्री बनना, पढ़ें यहां का चुनावी गणित

इस जमीन के महत्व को बीजेपी बेहतर समझती है तभी तो पीएम मोदी के खूंटी दौरे के एक महीने भी पूरे नहीं हुए और उन्होंने इस धरती को एक बड़ी सौगात दी. खूंटी से बीजेपी के सांसद और देश में आदिवासी के एक बड़े चेहरे को एक महत्वपूर्ण मंत्रालय की जिम्मेदारी दी गई.

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मिशन 2024 में बीजेपी के लिए झारखंड में कितना फायदेमंद होगा अर्जुन मंडा का कृषि मंत्री बनना, पढ़ें यहां का चुनावी गणितArjun Munda

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब 15 नंवबर 2023 को झारखंड के खूंटी जिले से देश को संबोधित किया तो वो महज एक संबोधिन नहीं था बल्कि 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव के लिए बीजेपी की तरफ से बिछाई जाने वाली जीत की बिसात की शुरुआत थी. खूंटी जिले का उलिहातू देश भर के आदिवासियों खास कर झारखंड और छत्तीसगढ़ के आदिवासियों के लिए बेहद महत्व रखता है क्योंकि यह धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा की जन्मस्थली है. बिरसा मुंडा के जन्मदिन की जयंती के मौके पर उलिहातू पहुंचने वाले नरेंद्र मोदी देश के पहले प्रधानमंत्री बने. बीजेपी के पीएम मोदी का यह दौरा खास इसलिए भी था क्योंकि इस जमीन के जरिए झारखंड में बीजेपी फिर से आदिवासियों के बीच अपनी खोई जमीन को वापस करने करने की जद्दोजहद में जुट गए हैं. 

इस जमीन के महत्व को बीजेपी बेहतर समझती है तभी तो पीएम मोदी के खूंटी दौरे के एक महीने भी पूरे नहीं हुए और उन्होंने इस धरती को एक बड़ी सौगात दी. खूंटी से बीजेपी के सांसद और देश में आदिवासी के एक बड़े चेहरे को एक महत्वपूर्ण मंत्रालय की जिम्मेदारी दी गई. अर्जुन मुंडा के केंद्रीय कृषि मंत्रालय का मंत्री बनाया गया. वर्तमान  में जिस तरह से देश में कृषि पर फोकस किया जा रहा है, उस लिहाज से यह मंत्रालय बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है. ऐसे में अब यह समझना जरूरी है कि आखिर अर्जुन मुंडा को कृषि मंत्रालय का जिम्मा दिए जाने से झारखंड में बीजेपी को क्या फायदा होने वाला है. क्योंकि चुनाव आने वाला है.

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उलिहातू से हुई थी शुरुआत

ऐसे भी पीएम मोदी के उलिहातू दौरे को लेकर माना जा रहा था कि यहां से पीएम मोदी छत्तीसगढ़ के आदिवासी वोटर्स को लुभाने का प्रयास करेंगे. छत्तीसगढ़ और झारखंड की स्थिति लगभग एक जैसी है. साथ ही चुनाव परिणाम भी बीजेपी के पक्ष में रहे. यहां के आदिवासी बहुल जिले बस्तर जिले के कुल 12 विधानसभा सीटों में से आठ सीटें बीजेपी की झोली में आई. इस जीत से बीजेपी के मन में कहीं ना कहीं यह आत्मविश्वास जरूर आया है कि भगवान बिरसा की जमीन उन्हें आदिवासियों के बीच अपनी खोई जमीन वापस दिला सकती है. 

खूंटी क्यों हैं खास

खूंटी जिला और अर्जुन मुंडा को अपने चुनावी बिसात में सबसे महत्वपूर्ण खिलाड़ी इसलिए भी मान रही है क्योंकि खूंटी जिला भौगोलिक रुप से पूर्वी सिंहभूम खास कर कोल्हान प्रमंडल और रांची प्रमंडल के बीच का जिला है. यह आदिवासियों का केंद्र माना जाता है. यहां के आदिवासी खास कर मुंडा समाज के लोगों का झारखड भर के आदिवासी समाज में अपना एक प्रभाव है. आबादी के लिहाज से झारखंड में सबसे अधिक आबादी 717708 चाईबासा में रहती है. खूंटी और चाईबासा सटे हुए जिलें हैं. इसके अलावा अर्जुन मुंडा को कोल्हान में अपना प्रभाव है, क्योंकि इसी जमीन से उन्होंने अपने सियासी सफर की शुरुआत की थी. यहां की जनता ने उन्हें तीन बार राज्य का मुख्यमंत्री बनाया था. 

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2019 के हार की वजह

साल 2019 विधानसभा चुनाव में बीजेपी को झारखंड में हार मिली थी और सत्ता गंवानी पड़ी थी उसकी एक प्रमुख वजह आदिवासी वोटर का छिटकना ही था, खास कर मुंडा वोटर भी बीजेपी से दूर हो गए थे. क्योंकि हार के बाद बीजेपी ने भी इसे स्वीकार किया था कि आदिवासी वोटर के दूर जाने के कारण ही उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा. झारखंड में एसटी के लिए 81 में से 28 सीटे आरक्षित हैं.2019 में हेमंत सोरेन की अगुवाई में  कांग्रेस-जेएमएम के गठबंधन ने उन 28 में से 25 सीटों पर जीत हासिल की थी. जबकि बीजेपी के हिस्से में सिर्फ दो सीटें आई थी. यह बीजेपी के लिए सबसे बड़ा हार का कारण बनी थी. क्योंकि जब 2014 में बीजेपी यहां पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आई थी उस वक्त बीजेपी को 37 सीट हासिल हुई थी. इस दौरान राज्य की 11 एसटी सीटों पर बीजेपी ने जीत हासिल की थी. झारखंड एक आदिवासी बहुल जिला है इसलिए लगभग सभी सीटों पर उनके वोट का प्रभाव पड़ता है. 2019 के विधानसभा चुनाव में खूंटी जिले के दो विधानसभा सीटों पर बीजेपी ने जीत दर्ज की थी. 
झारखंड में आदिवासियों की जनसंख्या

झारखंड में आदिवासी इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यहां पर आदिवासी निर्णायक भूमिका निभाते हं. यहां 2011 की जनगणना के अनुसार 26.3 फीसदी जनसंख्या आदिवासियों की है.  कुल 81 विधानसभा सीटों में से 28 एसटी के लिए आरक्षित होने के कारण, आदिवासी वोटों का महत्व आरक्षित सीटों से कहीं अधिक है. झारखंड की बात करें तो यहां पर आदिवासियों के चार प्रमुख समूह हैं, संथाल, मुंडा, हो और उरांव. जबकि पारंपरिक रुप से मुंडाओं का वोट बीजेपी को जाता है क्योंकि बीजेपी के पास अर्जुन मुंडा और कड़िया मुंडा जैसे दो बड़े नाम हैं. एक खूंटी के पूर्व सांसद और एक वर्तमान सांसद है. जेएमएम को संथालों का समर्थन मिलता है. जेएमएम के इस किले को भेदने के लिए बीजेपी के पास दो बड़े चेहरे हैं, एक बाबूलाल मरांडी और दूसरा लुईस मरांडी. जबकि कांग्रेस को हो और उरांव का वोट मिलता है यही कारण है कि पश्चिमी सिंहभूम से कांग्रेस को बढ़त मिलती है. 

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अनूसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं 28 सीटें

हालांकि अब फिर से बीजेपी झारखंड में अपनी वापसी के लिए तैयारी कर रही है. हालांकि बीजेपी के लिए राह इतनी आसान नहीं है पर जिस तरह से लगातार हेमंत सोरेन बीजेपी के हमलों से कमजोर होते जा रहे हैं, बीजेपी अपनी पकड़ मजबूत बनाने में जुट गई है. इसकी शुरुआत खूंटी से हुई है. क्योंकि बीजेपी भी यह मानती है कि अगर 2024 में फिर से झारखंड की सत्ता में वापस आना है तो फिर एसटी आरक्षित सीटों को अपनी झोली में करना होगा. राज्य में 81 विधानसभा सीट हैं जिसमें 28 सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है. जबकि 44 सामान्य और नौ सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है. 

कोल्हान में बड़ा है जीत का अंतर

2019 के विधानसभा चुनाव में जेएमएम  19 सीटों से बढ़कर 30 सीटों पर पहुंच गई तो इस आंकड़े के पीछे आदिवासी वोटर ही थे. क्योंकि कही ना कही रघुवर दास आदिवासियों के मन को छूने में असमर्थ रहे और इसका फायदा जेएमएम को मिला. 2019 में संथाल की 18 सीटों में से 9 सीटों पर जेएमएम को जीत मिली,जौ सौ फीसदी एसटी सीट है. जबकि कोल्हान में 9 की नौ सीटों पर जेएमएम ने जीत दर्ज की. कोल्हान में जेएमएम की जीत इसलिए भी महत्वपू्रण हैं क्योंकि यहां पर घाटशिला, पोटका, सरायकेला, चाईबासा, मंझगाव, मनोहरपुर, चक्रधरपुर और खरसावां विधानसभा सीट से जेएमएम से जीत दर्ज की. इन सभी सीटों का औसत अगर निकाला जाए तो हर सीट में जीत का अंतर लगभग 12 हजार से अधिक वोट का है. जबकि इसी प्रमंडल में जगन्नाथपुर सीट पर 11 हजार से अधिक वोटों के अंतर से कांग्रेस के प्रत्याशी ने जीत हासिल की. 

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एसटी सीटों में कम हुई बीजेपी की पकड़

झारखंड अलग होने से बाद अभी तक में हुए चुनावों को देखें तो यह पता चलता है कि साल 2000 से लेकर 2019 तक लगातर अनुसूचित जनजाती आरक्षित सीटों में बीजेपी की पकड़ कमजोर होती चली गई है. साल 2000 में जहां 20 एसटी आरक्षित सीटों में जीत दर्ज की थी वहीं 2019 में मात्र दो सीट एसटी आरक्षित क्षत्रों से बीजेपी के खाते में आई थी. हालांकि 2011 में यह संख्या 11 जरूर थी. वहीं 2019 के लोकसभा चुनाव की बात करें तो बीजेपी के खाते में कुल 14 में से 12 सीटें आई थी, हालांकि उस वक्त झारखंड में बीजेपी की सरकार थी. इस बार बीजेपी का लक्ष्य यही होगा कम से कम सीटे 12 से कम नहीं हो. 

क्या कहते हैं एक्सपर्ट

इस पूरे मामले पर बात करतें हुए झारखंड के वरिष्ठ पत्रकार शंभुनाथ चौधरी बताते हैं कि झारखंड के खूंटी से सांसद को कंद्रीय कृषि मंत्री चुना जाना राज्य के लिए गर्व की बात है. झारखंड के किसानों के लिए भी यह फायदेमंद हैं क्योंकि राज्य सरकार अक्सर यह शिकायत करती है कि केंद्र हमारी मांगों पर ध्यान देती है. झारखंड में बैक टू बैक सूखा पड़ा है ऐसे में किसानों को केंद्र से भी काफी उम्मीदें हैं. अर्जुन मुंडा तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री तो उन्हें झारखंड के बारे में बहुत जानकारी भी और यहां के किसानों की वस्तुस्थति की जानकारी भी है. जाहिर सी बात है उनके अनुभवों का किसानों को लाभ होगा. 

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2024 को लेकर बिछाई जा रही बिसात

उन्हें केंद्रीय मंत्री बनाए जाने पर राज्य में बीजेपी के फायदे का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि झारखंड में बीजेपी आदिवासी वोटरों के बीच अपनी पैठ बनाने के लिए और उन्हें लुभाने के लिए लगातार प्रयास कर रही है. अर्जुन मुंडा का केंद्र में कद बढ़ाना उसी रणनीति का हिस्सा है. उलिहातू में पीएम मोदी का आना भी उसी प्लानिंग के तहत हुआ है. अर्जुन मुंडा का कद बढ़ाकर, उन्हें कृषि मंत्री बनाकर, छत्तीसगढ़ का पर्यवेक्षक बनाकर बीजेपी यह संदेश देना चाहती है कि वह आदिवासी समाज की हितैषी है, साथ ही समाज के लोग भी देख रहे हैं पार्टी में उन्हें सम्मान मिल रहा है. इसके अलावा समीर उरांव में पार्टी में बेहतर पद दिया गया है. आशा लक़डा को पर्यवेक्षक बनाया गया है. शंभुनाथ चौधरी ने यह भी कहा की छत्तीसगढ़ के जिन आदिवासी बहुल सीटों में बाबूलाल मरांडी ने प्रचार किया उन अधिकांश सीटों पर बीजेपी ने जीत दर्ज की है. इस तरह से मरांडी के जरिए संथाल, मुंडा के जरिए कोल्हान और समीर उरांव के जरिए लोहरदगा, गुमला और सिमडेगा जिले के सीटों पर गहरी पैठ बनाने की बीजेपी की कोशिश की जा रही है. यह सारी बिसात मिशन 2024 को लेकर बिछाई जा रही है. 

 

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