Vegetable Farming: सब्जी की खेती में है कमाई, लेकिन बेटा नहीं बनेगा किसान

Vegetable Farming: सब्जी की खेती में है कमाई, लेकिन बेटा नहीं बनेगा किसान

ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी कई किसान परंपरागत तरीके से सब्जी की खेती कर रहे हैं और औसत कमाई कर रहे हैं. बिहार के कई जिलों में चकबंदी नहीं होने के कारण भी किसान आधुनिक तरीके से खेती नहीं कर पा रहे हैं. खेती की मुश्किलों को देखते हुए, वे अपने बेटों को किसानी से दूर रखने में ही उनकी भलाई समझ रहे हैं.

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 Vegetable Farming: सब्जी की खेती में है कमाई, लेकिन बेटा नहीं बनेगा किसानसब्जी की खेती करने वाले किसान बायें से संतोष कुमार,अशोक पाल, उपेंद्र यादव,

कृषि के क्षेत्र में तकनीक की मदद खेती करके किसान अच्छी कमाई कर रहे हैं, जिसमें सब्जी की खेती को किसान कमाई का एक बेहतर विकल्प के तौर पर देख रहे हैं. यहां तक कि परंपरागत तरीके से सब्जी की खेती करने वाले किसानों का कहना है कि अगर मौसम का साथ मिले, तो सब्जी से जितनी कमाई एक बीघे में होगी, वह चार बीघे में धान व गेहूं की खेती से नहीं है. लेकिन इसके साथ ही उनका यह भी कहना है कि वह किसान बन गए हैं, मगर अपने बेटों को किसान के तौर पर नहीं देखना चाहते हैं. इनमें वो किसान भी शामिल हैं, जो बिना किसी तकनीकी मदद के समय से पहले लौकी व टमाटर की खेती से एक बीघा में 30 से 40 हजार रुपये की कमाई कर रहे हैं.

बता दें कि आज भी देश के कई किसान परंपरागत ढंग से खेती कर रहे हैं और उनका मानना है कि अगर सही तरीके से किराए की जमीन पर भी खेती किया जाए, तो किसान अच्छी कमाई कर सकता है. 

बेटा नहीं बनेगा किसान

अशोक पाल, उपेंद्र यादव, संतोष कुमार अपनी उम्र के आधे से भी अधिक समय से खेती कर रहे हैं. ये कहते हैं कि सब्जी की खेती से घर का खर्च चल जाता है. लेकिन इसके सहारे वो बेहतर जीवन जी सकें, यह संभव नहीं है. अशोक पाल करीब एक एकड़ में किराए की जमीन पर टमाटर, गोभी और परवल की खेती कर रहे हैं. यह बताते हैं कि सब्जी की खेती से साल के एक से डेढ़ लाख रुपये की कमाई हो जाती हैं, लेकिन इतनी कमाई इस महंगाई के लिए काफी नहीं है. बच्चों को अच्छी से पढ़ा पाना भी मुश्किल है. आगे वाली पीढ़ी जैसे-तैसे शिक्षा हासिल कर रही है. किसानों का कहना है कि वह चाहते हैं कि उनके बच्चे सरकारी नौकरी करें, उनकी तरह किसान ना बनें. इस किसानी में जिंदगी गल गई है. लेकिन जीवन बेहतर नहीं बन पाया. उपेंद्र यादव कहते हैं कि समय से पहले अगर खेती की जाए तो कुछ ज्यादा कमाई हो जाती है, लेकिन इसके लिए बेहतर सुविधा नहीं है. आज किसान की फसल बेचकर व्यापारी अमीर हो चुके हैं, लेकिन खुद किसान लाचार अवस्था में बैठा है. व्यापारी हमसे 30 रुपये में पांच किलो टमाटर खरीदते हैं और वह 50 रुपये में एक किलो टमाटर बेचते हैं. अब ऐसी किसानी का क्या मतलब? हमारे साथ जो कुछ हो रहा है, वह हमारे बच्चों के साथ ना हो. इसके लिए उन्हें किसानी से दूर सरकारी नौकरी दिलाने के लिए पढ़ा रहे हैं.

परंपरागत तरीके से समय से पहले खेती करके कर रहे कमाई

'किसान तक' को अशोक पाल बताते हैं कि उन्होंने परवल की खेती एवं टमाटर की खेती की है. आने वाले मार्च महीने से हार्वेस्टिंग (परवल व टमाटर की तोड़ाई) शुरू हो जाएगी. उस दौरान करीब 60 रुपये प्रति किलो परवल बिकता है. इसके साथ ही देसी टमाटर के पौधे लगाए हुए हैं. गर्मी के मौसम में टमाटर का भाव 40 रुपये से ऊपर पहुंच जाता है. पिछले पांच सालों से शिव शंकर मौर्य नवंबर में किराए की करीब 2 बीघे खेत में लौकी की खेती कर रहे हैं. मार्च महीने में जब लौकी की फसल तैयार होती है तो 70 रुपये प्रति किलो तक बाजार में बिकती है. ये कहते हैं कि करीब 60 से 70 हजार रुपये की कमाई सीजन से पहले लौकी की खेती से हो जाती है. वहीं फरवरी में लौकी की खेती करने का सबसे बड़ा नुकसान ये है कि बाजार नहीं मिलता है. आगे कहते हैं कि इन्होंने करीब 13 हजार रुपये में एक साल के लिए जमीन किराए पर लिया है और इसमें धान की खेती करने के बाद लौकी की खेती करता हूं. अगर चकबंदी हो जाती तो अपनी ही जमीन में बेहतर ढंग से खेती कर पाता. अभी जमीन दूर है.

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