Turtle Smuggling: दो लाख रुपये किलो के चिप्स बेचने को होती है कछुओं की तस्करी, सरकार ने उठाया ये कदम 

Turtle Smuggling: दो लाख रुपये किलो के चिप्स बेचने को होती है कछुओं की तस्करी, सरकार ने उठाया ये कदम 

चंबल और गंगा नदी से कछुए बहुत पकड़े जाते हैं. खासतौर पर यूपी के आगरा और इटावा से कछुओं की तस्करी होती है. तीन बहुत ही खास प्रजाति के कछुए इसी इलाके में पाए जाते हैं. यहां से सड़क के रास्ते कछुए पश्चिम बंगाल भेजे जाते हैं. 

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Turtle Smuggling: दो लाख रुपये किलो के चिप्स बेचने को होती है कछुओं की तस्करी, सरकार ने उठाया ये कदम DNA is highly perishable, but under certain conditions, it can be preserved in ancient remains. (Photo: Getty)

कछुओं की तस्करी रुकना तो दूर कम होने का नाम नहीं ले रही है. तस्करी के चलते ही कछुओं की कई खास प्रजाति में बड़ी कमी देखी जा रही है. कछुओं की कई महत्वपूर्ण प्रजाति की कमी ने सरकार की परेशानी भी बढ़ा दी है. इसी पर लगाम लगाने के लिए उत्त्र प्रदेश की सरकार कई कदम उठा रही है. हाल ही में सरकार ने कासगंज में हैचरी बनाने का प्लान तैयार किया है. हैचिंग के बाद कछुओं को अलीगढ़ में रखा जाएगा. उसके बाद जब वो थोड़े बड़े हो जाएंगे तो उन्हें कासगंज में ही गंगा नदी में छोड़ दिया जाएगा. 

गौरतलब रहे कछुओं की तस्करी खाने की कई तरह की डिश के लिए होती है. इसी में से एक खास डिश है कछुओं के बने चिप्स. जानकारों की मानें तो विदेशों में कछुओं से बने चिप्स दो लाख रुपये किलो तक बिकते हैं. 

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ऐसे संरक्षित किए जाएंगे कछुओं के अंडे 

हैचरी अभियान से जुड़े जानकारों की मानें तो कासगंज में सोरो के लहरा घाट से लेकर कादरगंज तक बने रेतीले टापुओं पर हैचरी बनाई जाएंगी. आने वाली फरवरी में हैचरी का काम शुरू हो जाएगा. हैचरी कुछ इस तरह से डिजाइन की जाती है कि प्राकृतिक गर्मी मिलने से अंडों से बच्चे बाहर आ जाएं. जब अंडों से बच्चे निकलना शुरू हो जाएंगे तो उन्हें अलीगढ़ के माकंदपुर में चेतना केन्‍द्र की नर्सरी में रखा जाएगा. फिर करीब एक साल बाद इन्हें वापस गंगा नदी में ही छोड़ दिया जाएगा.  

ऐसे बनाए जाते हैं कछुओं के चिप्स 

पर्यावरणविद और गंगा अभियान से जुड़े रहे राजीव चौहान ने किसान तक को बताया कि कई देशों में कछुओं के चिप्स पसंद किए जाते हैं. इनके चिप्स की कीमत दो लाख रुपये किलो और कहीं-कहीं तो उससे भी ज्या‍दा होती है. चिप्स के लिए खासतौर पर चंबल नदी से लगे आगरा के पिनहाट और इटावा के ज्ञानपुरी और बंसरी में निलसोनिया गैंगटिस और चित्रा इंडिका तीन प्रजाति का इस्तेमाल किया जाता है. चिप्स बनाने के लिए कछुए के पेट की स्किन जिसे प्लैस्ट्रान कहा जाता है इस्तेमाल होती है. 

तस्कर प्लैस्ट्रान को काटकर अलग कर लेते हैं. फिर इसे उबालकर सुखाया जाता है. इसके बाद इसे बंगाल और असम के रास्ते विदेशों में भेज दिया जाता है. गर्मी में प्लैस्ट्रान के चिप्स बनाए जाते हैं तो सर्दियों में जिंदा कछुओं की तस्करी की जाती है. क्योंकि सर्दियों में तस्करी करने में परेशानी नहीं आती है.

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थाईलैंड, मलेशिया और सिंगापुर में है चिप्स की डिमांड

राजीव चौहान का कहना है कि कछुओं से बने चिप्स की सबसे ज्यादा डिमांड थाईलैंड, मलेशिया और सिंगापुर में है. यही वजह है कि चिप्स के लिए कई खास प्रजाति के कछुए पकड़कर मारे जा रहे हैं. तस्करों से मिली जानकरी के मुताबिक कछुओं को पकड़ने और उनके चिप्स बनाने वाले पांच हजार रुपये किलो के हिसाब से ज्ञानपुरी और बंसरी में पकड़े गए निलसोनिया गैंगटिस और चित्रा इंडिका कछुओं के चिप्स बेचते हैं. इटावा-पिनहाट से यह चिप्स 24 परगना पहुंचाए जाते हैं. जहां से यह थाईलैंड, मलेशिया और सिंगापुर को तस्करी कर दिए जाते हैं. तस्करों के अनुसार इन तीन देशों में पहुंचते ही चिप्स 2 लाख रुपये किलो तक बिकने लगता है. एक किलो वजन के कछुए में से 250 ग्राम तक चिप्स निकाल आते हैं.

 

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