इस साल 2025 का मॉनसून देश के कई हिस्सों के लिए वरदान बनकर आया है. 1 जून से 31 अगस्त तक, भारत में सामान्य से अधिक बारिश दर्ज की गई है, जिससे अधिकांश क्षेत्रों में खुशी की लहर है. विशेषकर उत्तर-पश्चिम भारत में तो बारिश ने पिछले कई वर्षों के रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं और सामान्य से 27 फीसदी अधिक वर्षा हुई है. लेकिन इस खुशनुमा तस्वीर का एक दूसरा पहलू भी है, जो बेहद चिंताजनक है और यह उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल क्षेत्र में देखने को मिलता है. एक ही प्रदेश में मॉनसून ने इतने अलग-अलग रंग दिखाए हैं कि यकीन करना मुश्किल हो जाता है. एक तरफ पश्चिमी उत्तर प्रदेश बारिश से तरबतर है, तो वहीं पूर्वांचल के कुछ जिले बारिश की पानी की कमी के कारण अपनी धान की फसल को लेकर चिंतित हैं.
पूर्वांचल के कुछ जिलों में मॉनसून ने बुरी तरह निराश किया है. मौसम विभाग के आंकड़ों के अनुसार, 1 जून से 31 अगस्त के बीच पूर्वी उत्तर प्रदेश में कुल मिलाकर सामान्य से 12 फीसदी कम बारिश हुई है. इस दौरान जहां 625.8 मिमी बारिश होनी चाहिए थी, वहां केवल 548.8 मिमी ही हुई. यह आंकड़ा तो पूरे क्षेत्र का औसत है, लेकिन कुछ जिलों की हालत तो इससे भी कहीं ज्यादा खराब है. धान की फसल को पानी की बहुत अधिक जरूरत होती है. अब किसानों को अपनी धान की फसल बचाने के लिए बहुत अधिक पानी पम्पसेट और टूयूबेल से चलाना पड़ रहा है. रोपाई के बाद खेतों में पानी न होने से जमीन में दरारें पड़ने लगी हैं और फसल का विकास पूरी तरह से रुक गया है, जिसके बाद खेतो में पानी चलाना पड़ रहा है.
धान की फसल को बचाने की जद्दोजहद में किसान अपनी लागत लगा कर सिंचाई कर रहे हैं. देवरिया जिले की स्थिति सबसे गंभीर है, जहां के सुरौली गांव के किसान राधा रमन शाही ने बताया, "इस साल बड़ी उम्मीद से 7 एकड़ में धान लगाया था, लेकिन इस साल बारिश बहुत कम हुई है. किसी तरह सिंचाई करके फसल को हरा तो रखा है, पर अगर अगले कुछ दिनों में बारिश नहीं हुई, तो परेशानी बढ़ सकती है. ऐसी ही चिंता कुशीनगर के बेलवा जंगल गांव के किसान रविप्रकाश पांडेय की भी है. वे कहते हैं, "हमारे जिले में बहुत कम बारिश हुई है. धान की फसल को जिंदा रखने के लिए लगातार पानी देना पड़ रहा है, लेकिन पानी की कमी से अब पौधों में पीलापन आने लगा है. गोरखपुर के हरपुर गांव के प्रगतिशील किसान राजू सिंह बताते हैं, "बारिश तो हुई नहीं, अब फसल बचानी है तो डीज़ल इंजन और बिजली के पंप ही सहारा है. इससे खेती की लागत दोगुनी हो गई है. समझ नहीं आ रहा कि अगर यही हाल रहा तो लागत कैसे निकलेगी."
भारतीय मौसम विभाग के अनुसार पूर्वांचल के कई जिलों में बारिश की कमी के आंकड़े चौंकाने वाले हैं. सबसे खराब हालत देवरिया की है, जहां सामान्य से लगभग 89 फीसदी कम पानी बरसा है. इसी तरह, कुशी नगर जिले में सामान्य से 61 फीसदी की भारी कमी है, जहां 586.7 मिमी की जगह केवल 227.0 मिमी बारिश हुई है. संत कबीर नगर में सामान्य से 53 फीसदी कम वर्षा हुई है. मऊ जिले में 49 फीसदी कम बारिश दर्ज की गई. चंदौली, यहां सामान्य से 46 फीसदी कम बारिश हुई है. गोरखपुर में 43 फीसदी कम बारिश दर्ज की गई है और अम्बेडकर नगर में 40 फीसदी कम बारिश हुई है.
इस असमान वितरण के बीच, पूर्वांचल और मध्य उत्तर प्रदेश के कुछ जिले ऐसे भी हैं जो भाग्यशाली रहे. बांदा और चित्रकूट में सामान्य से क्रमशः 55 फीसदी और 51 फीसदी अधिक बारिश हुई है. धर्म नगरी वाराणसी में भी 36 फीसदी अधिक बारिश ने किसानों को राहत दी है. प्रतापगढ़, सोनभद्र, अयोध्या, बाराबंकी, कन्नौज और लखनऊ जैसे जिलों में बारिश लगभग सामान्य रही है.
पूर्वांचल के जिलों के ठीक विपरीत, पश्चिमी उत्तर प्रदेश की तस्वीर बिल्कुल अलग है. यहां मॉनसून इतना मेहरबान रहा कि सामान्य से 32 फीसदी अधिक बारिश हो चुकी है. अगस्त के महीने में तो कई इलाकों में सामान्य से दोगुनी बारिश हुई. विशेषकर, बिजनौर जिले में मॉनसून अत्यधिक सक्रिय रहा, जहां सामान्य से 113 फीसदी अधिक, कुल 663.5 मिमी वर्षा दर्ज की गई.
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