Kashmiri Saffron: मौसम संग चूहों से केसर की फसल को बचाने की हो रही तैयारी, करते हैं बड़ा नुकसान 

Kashmiri Saffron: मौसम संग चूहों से केसर की फसल को बचाने की हो रही तैयारी, करते हैं बड़ा नुकसान 

जानकार बताते हैं कि भारत को हर साल 100 टन केसर की जरूरत होती है. सबसे ज्यादा केसर ईरान, चीन, अफगानिस्तान से आयात होती है. दिल्ली की खारी बावली और जामा मस्जि‍द केसर की बड़ी मंडी हैं. कश्मीर के पुलवामा में बड़े पैमाने पर केसर की खेती की जाती है.  

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Kashmiri Saffron: मौसम संग चूहों से केसर की फसल को बचाने की हो रही तैयारी, करते हैं बड़ा नुकसान खेत में लगे केसर के फूल का प्रतीकात्मक फोटो. फोटो क्रेडिट-इरशाद

देश के सबसे महंगे मसालों में शुमार केसर के पीछे चूहे पड़ गए हैं. बीते कुछ साल से चूहे केसर को ज्यादा ही नुकसान पहुंचा रहे हैं. देश में सोने से भी ज्यादा महंगी केसर की खेती स‍िर्फ कश्मीर में ही होती है. लेकिन वहां के किसानों के सामने मौसम के साथ ही चूहों के रूप में एक नई परेशानी सामने आ गई है. एक चूहा इतने महंगे केसर का जानी दुश्मन बन गया है. जरा सा मौका मिलते ही चूहा केसर की फसल को खाने लगता है. चूहे खेत में  बिल बना रहे हैं. खासतौर पर तब, जब पौधे पर फूल आने लगता है. 

आने वाले महीने अक्टूबर से कश्मीर में मौसम करवट बदलने लगेगा. सर्दी बढ़ने के साथ ही बर्फवारी का मौसम भी शुरू हो जाएगा. लेकिन इस दौरान केसर के खेत में बहुत सावधानी बरतनी होती है. सबसे खास काम ये होता है क‍ि पिघली हुई बर्फ का पानी खेत में न भरने पाए. साथ ही इसी दौरान चूहे भी नम मिट्टी में बिल बनाकर केसर के पौधे और फूलों को खाकर नुकसान पहुंचाते हैं.  

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एक पुडि़या और खेत के चक्कर लगाने से बचती है फसल  

पत्तलगढ़, पुलवामा, कश्मीर में केसर के किसान इरशाद ने किसान तक को बताया कि बर्फवारी के बाद केसर के पौधे में फूल आना शुरू हो जाते हैं. पौधा की ग्रोथ भी होने लगती है. जमीन पर चारों ओर बर्फ का पड़ा होना केसर के पौधे के लिए संजीवनी का काम करती है. लेकिन कुछ दिन बाद मौसम खुलने पर बर्फ पिघलने लगती है. यही वो वक्त होता है जब चूहे नम मिट्टी में अपने बिल बनाने लगते हैं. बिलों में रहकर चूहे धीरे-धीरे दिन-रात केसर की फसल खाना शुरू कर देते हैं. 

लेकिन इसी के साथ खेतों में चूहे का इंतजाम भी करना होता है. वर्ना जरा सी लापरवाही से केसर की फसल बर्बाद हो सकती है. इसके लिए किसानों को चाहिए कि वो ऐसे में चूहे से बचने के लिए एल्युमिनियम फॉस्फेट का इस्तेमाल करें. दिन में एक बार ही सही, लेकनि पूरे खेत का चक्कर लगाएं. जहां भी चूहे का बिल दिखे वहां एल्युमिनियम फॉस्फेट की पुड़िया रख दें. इससे बिल में मौजूद चूहा बाहर नहीं आएगा. इस कार्रवाई को तब तक लगातार दोहराते रहें जब तक फसल घर में ना आए जाए. 

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बर्फ पिघलने पर बनाएं पानी निकलने का रास्ता

इरशाद ने बताया कि बर्फवारी के बाद जब मौसम खुलता है तो बर्फ पिघलकर पानी की शक्लम में बहने लगती है. ऐसे में यह जरूरी है कि पानी के निकलने के लिए खेत में रास्ताघ बनाया जाए. क्यों कि इस दौरान खेत में अगर पानी भरने लगा तो इससे केसर की फसल को नुकसान पहुंचेगा. क्योंकि केसर की फसल को अक्टू बर तक ही पानी की जरूरत होती है.  

एग्रीकल्चर डायरेक्टर ने रेट में फर्क की बताई बड़ी वजह 

जम्मू-कश्मीर एग्रीकल्चर के पूर्व डायरेक्टर सैय्यद अल्ताफ ने फोन पर किसान तक को बताया कि कश्मीर में होने वाली केसर पूरी तरह से ऑर्गनिक है. जबकि ईरानी केसर में पेस्टीसाइड का इस्तेमाल किया जाता है. लेकिन आजकल कश्मीरी केसर कई तरह की परेशानियां झेल रही है. इसी के चलते कश्मीरी केसर का उत्पादन कम हो रहा है.

हालांक‍ि कश्मीरी केसर ईरान ही नहीं अफगानिस्तान, चीन, पुर्तगाल और दूसरे देशों के मुकाबले कई गुना बेहतर है. कश्मीरी केसर दवाईयों में इस्तेमाल के लिए हाथों-हाथ बिक जाती है. एक वजह यह भी है कि भारत में केसर की खेती का क्षेत्रफल बहुत कम है. जबकि ईरान में केसर की खेती का क्षेत्रफल करीब 10 गुना से ज्यादा है.      

 

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