भारत ने गैर-बासमती और बासमती चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगाया है. इसमें कुछ शर्तें हैं, लेकिन यह प्रतिबंध पूरी तरह से प्रभावी है. भारत का चावल पूरी दुनिया का पेट भरता है, इसलिए सरकार के हालिया फैसले से कई देशों में हड़कंप है. यहां तक कि खाद्य सुरक्षा पर भी सवाल उठ रहे हैं. इस बीच एक चर्चा ये तेज हुई है कि चावल के निर्यात पर बैन से देश के किसानों और चावल मिलर्स का क्या नुकसान हुआ है.
हम यहां बात करेंगे तमिलनाडु के तिरुवन्नामलई इलाके की जहां कई तरह के सफेद चावल का उत्पादन बड़े पैमाने पर होता है. उसमें भी अरनी नाम का खास इलाका है जहां के किसान धान की खेती से बेहतर कमाई करते हैं. उनका उगाया गया धान और उससे तैयार चावल विदेशों में एक्सपोर्ट होता रहा है. लेकिन सरकार के हालिया फैसले से अरनी के किसान सकते में हैं.
पूरे तिरुवन्नामलई की बात करें तो यहां पांच तरह के चावल का उत्पादन सबसे मशहूर है जिनके निर्यात पर सबसे अधिक असर देखा जा रहा है. इन धानों को उगाने वाले किसानों की कमाई का भारी नुकसान हुआ है. इनमें चावल की पांच वेरायटी हैं जैसे पोन्नी, पीटीडी, सोना डिलक्स, एचएमटी और आईआर 50. ये सभी चावल विश्व प्रसिद्ध हैं जिनके निर्यात पर बैन लगने से किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है.
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सूत्रों के मुताबिक, अरनी में पैदा होने वाला 50 फीसद से अधिक चावल दक्षिण भारत के अलग-अलग राज्यों में बेचा जाता है और बड़ी खेप विदेशों में भी जाती है. विदेशों में सिंगापुर, मलेशिया, खाड़ी देश और दक्षिण अफ्रीका के नाम हैं. इन सभी देशों में अरनी के मशहूर चावल निर्यात किए जाते हैं. अरनी के किसानों के साथ राइस मिलर्स को भी बहुत नुकसान है क्योंकि निर्यात के लिए इन मिलों में धान की प्रोसेसिंग की जाती है. अब ये प्रोसेसिंग बहुत कम हो गई है.
निर्यात से हो रहे नुकसान के बारे में एक किसान ने बताया कि आगे स्थिति और भी खराब होने वाली है. किसानों को वित्तीय तौर पर बड़ा घाटा हो रहा है. किसान कहते हैं, अगर कोई आढ़ती या एजेंट पहले धान की 100 बोरी लेता था, तो अब उसने खरीद कम कर दी है. इससे सीधा नुकसान किसान को हो रहा है क्योंकि धान उनका ही होता है. अगर प्रतिबंध अधिक दिनों तक चलता है, तो देश में चावल की ओवर सप्लाई हो जाएगी जिससे दाम तेजी से गिर जाएंगे. इससे किसानों और राइस मिलर्स दोनों को नुकसान होगा.
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