अगर तालाब, नदी और समुंद्र की मछली जिंदा बाजार में बिकने के लिए पहुंचे तो उसके दाम बढ़ जाते हैं. मछली पालक को ज्यादा फायदा होने लगता है. बाजार के जानकारों की मानें तो ग्राहक जिंदा मछली को जल्दी पसंद करते हैं. लेकिन नदी-तालाब से जिंदा मछली को सीधे बाजार में पहुंचाना इतना आसान नहीं होता है. पांच-छह घंटे के सफर में मछली को जिंदा बाजार ले जाने में खर्च भी बहुत आता है. लेकिन सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ पोस्ट हार्वेस्ट टेक्नोंलॉजी एंड इंजीनियरिंग (सीफेट), लुधियाना ने मछली कारोबारियों की इस परेशानी को आसान कर दिया है.
सीफेट ने जिंदा मछलियों को बाजार तक पहुंचाने के लिए एक लाइव फिश कैरियर सिस्टम बनाया है. सीफेट का बनाया यह सिस्टम अब बाजार में भी आ गया है. महाराष्ट और हिमाचल प्रदेश की दो अलग-अलग कंपनियां इसे बना रही हैं. अपनी जरूरत के हिसाब से मछली पालक छोटा या बड़ा सिस्टम खरीद सकते हैं.
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लाइव फिश कैरियर सिस्ट म बनाने वाले सीफेट के सीनियर साइंटिस्ट डॉ. अरमान मुजाद्दादी ने किसान तक को बताया कि अभी तक हमारा संस्थान हिमाचल प्रदेश और महाराष्ट्र में इस सिस्टम की टेक्नोलॉजी को बेच चुका है. दोनों ही राज्यों में लाइव फिश कैरियर सिस्टम बनाने का काम शुरू हो चुका है. ऑर्डर के हिसाब से सिस्ट म तैयार किए जा रहे हैं. हमारे संस्थान ने मॉडल के तौर पर सबसे छोटा सिस्टम तैयार किया था. लेकिन इस टेक्नोलॉजी की मदद से एक हजार किलो वजन की क्षमता वाला बड़ा सिस्टम भी तैयार किया जा सकता है.
डॉ. अरमान का कहना है कि हमारे संस्था न में 100 किलो मछली की क्षमता के हिसाब से ई-रिक्शा पर इस सिस्टम को लगाया गया था. अगर ई-रिक्शा को हटाकर सिस्टम की बात करें तो इसकी लागत दो लाख रुपये तक आएगी. अगर आप बाजार में 400 से 500 किलो तक मछली ले जाना चाहते हैं तो कार्ट की लागत चार लाख रुपये और 700 से 800 किलो वजन तक मछली ले जाने वाली कार्ट की लागत पांच लाख रुपये तक आएगी. मछलियों के वजन के हिसाब से ई-रिक्शा की जगह गाड़ी बड़ी होती चली जाती है.
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डॉ. अरमान ने बताया कि सीफेट द्वारा बनाई गई इस कार्ट को लाइव फिश कैरियर सिस्टम नाम दिया गया है. वजन के हिसाब से पीवीसी का एक टैंक गाड़ी पर लगाया गया है. इस टैंक में पानी साफ बना रहे इसके लिए टैंक के ऊपरी हिस्से में फिल्टर लगाए गए हैं. क्योंकि पानी अगर गंदा रहेगा तो उसमे आक्सीजन भी नहीं बनेगी. पानी में मूवमेंट देने के लिए एक शॉवर लगाया गया है. मौसम कैसा भी हो, लेकिन मछली को 15 से 20 डिग्री तापमान का पानी चाहिए होता है.
इसलिए एक चिलर लगाया गया है. सर्दी में हीटर लगाते हैं. पानी में बुलबुले बनेंगे तो हवा में मौजूद आक्सीजन आराम से जल्दी ही पानी में घुल जाएगी. इसलिए टैंक के पानी में बुलबुले बनाने के लिए हवा छोड़ने वाली मोटर लगाई गई है. टैंक की क्षमता बढ़ने के साथ ही सभी उपकरण की क्षमता भी बढ़ाई जाती है.
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