केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने प्रसिद्ध कृषि वैज्ञानिक डॉ. एम.एस. स्वामीनाथन के निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया है. तोमर ने डॉ. स्वामीनाथन को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि कृषि क्षेत्र के विकास में उनका अभूतपूर्व योगदान सदैव अविस्मरणीय रहेगा और उनका कृतित्व हम सभी को प्रेरणा देता रहेगा. देश में हरित क्रांति में अहम योगदान देने वाले कृषि वैज्ञानिक डा. स्वामीनाथन का आज दोपहर चेन्नई में देहावसान हो गया. केंद्रीय मंत्री तोमर ने अपने शोक संदेश में कहा कि कृषि सेक्टर की प्रगति में योगदान के कारण डा. स्वामीनाथन की, न केवल भारतवर्ष, बल्कि पूरे विश्व में प्रतिष्ठा रही है.
उनका निधन समूचे देश-दुनिया के कृषि जगत के लिए एक अपूरणीय क्षति है. डा. स्वामीनाथन ने कृषि के क्षेत्र में जो नवाचार किए, उनके कारण किसानों को काफी फायदा पहुंचा था. वहीं उस वक्त के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में डा. स्वामीनाथन की अध्यक्षता में किसान आयोग बनाया गया था. वे भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के महानिदेशक रहे थे, अन्य संगठनों के माध्यम से भी उन्होंने कृषि क्षेत्र की सेवा की.
कृषि मंत्री तोमर ने कहा कि हमारे देश की खाद्यान्न आत्मनिर्भरता में डॉ. स्वामीनाथन की सेवाएं कभी भुलाई नहीं जा सकती. उनकी सिफारिश पर भारत सरकार द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) देकर किसानों को लाभ पहुंचाया जा रहा है, साथ ही उनके नेतृत्व में की गई अन्य विभिन्न अनुशंसाएं भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार ने स्वीकार करते हुए उन्हें कृषि क्षेत्र और किसानों के हितों में लागू किया है, जिन पर निरंतर आगे भी काम हो रहा है. तोमर ने कहा कि कृषि के प्रति अपूर्व लगाव और समर्पण रखने वाले डा. स्वामीनाथन के चिंतन-मनन से खेती-किसानी को नया आयाम मिला है. अभूतपूर्व योगदान के दृष्टिगत उन्हें विश्व खाद्य पुरस्कार सहित अनेक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हुए थे.
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केंद्रीय कृषि मंत्री तोमर ने कहा कि डॉ. स्वामीनाथन ने एवरग्रीन रिवोल्यूशन (सदाबहार क्रांति) का आह्वान भी किया था, जो इकोलॉजिकल प्रिंसिपल्स (पारिस्थितिक सिद्धांत) पर आधारित है. इसके माध्यम से कृषि क्षेत्र में भूमि का उपजाऊपन कायम रहता है और टिकाऊ खेती सुनिश्चित होती है, जो महत्वपूर्ण है. डॉ. स्वामीनाथन ने अपने शोध करियर की शुरुआत राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान, कटक से की, वे इंडिका-जापोनिका संकरण में शामिल थे. उन्होंने बासमती चावल के प्रजनन की शुरुआत की, जिसने देश को बासमती चावल निर्यातक के रूप में अग्रणी बना दिया है, जिससे सालाना 30 हजार करोड़ रुपये से अधिक की कमाई होती है.
फसल प्रजनन में आनुवंशिकी विज्ञान के उपयोग के प्रति उनका दूरदर्शी दृष्टिकोण विश्व स्तर पर जाना जाता है. अर्ध-बौनी गेहूं और चावल की किस्मों की क्षमता की पहचान और देश में हरित क्रांति के लिए उनका परिचय उनकी दूरदर्शिता का प्रमाण है. ईश्वर से प्रार्थना है कि दिवंगत आत्मा को शांति प्रदान करें और उनके शोक संतप्त परिवार को इस दुःख को सहन करने की शक्ति प्रदान करें.
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