जलवायु परिवर्तन की मार से गन्ना की पैदावार और परता पर असर, बचाने के लिए ये काम हैं जरूरी

जलवायु परिवर्तन की मार से गन्ना की पैदावार और परता पर असर, बचाने के लिए ये काम हैं जरूरी

जलवायु परिवर्तन से गन्ने की फसल पर बुरा असर पड़ रहा है. अनियमित बारिश और बढ़ता तापमान गन्ने की पैदावार और परता दोनों को कम कर रहा है. बदलते मौसम की चुनौतियों का सामना करने के लिए किसानों को अपनी खेती के तरीकों में कुछ बदलाव करने की जरूरत है. जिसके बारे कृषि विशेषज्ञ ने जरूरी उपाय बताए हैं.

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जलवायु परिवर्तन की मार से गन्ना की पैदावार और परता पर असर, बचाने के लिए ये काम हैं जरूरीगन्ने की खेती से किसानों की कमाई में इजाफा

किसी भी फसल से अच्छी पैदावार के लिए उपजाऊ मिट्टी, सही मात्रा में पानी, अनुकूल मौसम और कीट-पतंगों से बचाव की जरूरत होती है. लेकिन इसके साथ जलवायु परिवर्तन आज पूरी दुनिया के लिए एक गंभीर समस्या बन चुका है. गन्ना भी एक ऐसी ही फसल है, जिसे एक खास तरह के तापमान और नमी की जरूरत होती है. जब मौसम के इन मानकों में बदलाव होता है, तो फसल की पैदावार सीधे तौर पर प्रभावित होती है. कृषि विज्ञान केंद्र, नरकटियागंज, पश्चिम चंपारण के वरिष्ठ वैज्ञानिक और अध्यक्ष डॉ. आर.पी. सिंह ने बताया कि पश्चिम चंपारण जिले के लगभग 50 प्रतिशत से अधिक हिस्से में गन्ने की खेती होती है. इस साल जिले में बारिश बहुत कम और अनियमित हुई, जबकि गर्मी लंबे समय तक बनी रही. कहीं पर ज्यादा पानी गिरा तो कहीं पर बिलकुल सूखा रहा. इस बदलते मौसम का असर अब गन्ने की फसल पर साफ दिखाई दे रहा है.

कृषि विशेषज्ञों का अनुमान है कि ऐसी स्थिति बनी रही तो गन्ने के उत्पादन में 15 से 25 प्रतिशत तक की कमी आ सकती है और चीनी की रिकवरी यानी गन्ने के रस में चीनी की मात्रा (परता) में भी 1 से 2 प्रतिशत की गिरावट हो सकती है, जो किसानों और चीनी मिलों दोनों के लिए एक बड़ा आर्थिक नुकसान है.

अधिक तापमान से गन्ने की उपज घट जाती है 

डॉ. आर.पी. सिंह ने बताया, गन्ने की फसल मूल रूप से गर्म और नमी वाले उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों के लिए सबसे बेहतर है, जहां तापमान लगभग एक जैसा बना रहता है. लेकिन पश्चिम चंपारण जैसे इलाके उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्र में आते हैं, जहां सर्दियों में तापमान 4-5 डिग्री तक गिर जाता है और गर्मियों में 40-45 डिग्री तक पहुंच जाता है. तापमान का यह बड़ा उतार-चढ़ाव गन्ने की फसल के लिए बहुत हानिकारक है.

ठंड के मौसम में गन्ने की बढ़वार बहुत धीमी हो जाती है. पौधे में नए कल्ले कम निकलते हैं, जिससे गन्ने की संख्या घट जाती है. हालांकि, ठंड का एक फायदा यह है कि इस समय पौधे के अंदर मौजूद ग्लूकोज, सुक्रोज यानी चीनी में बदल जाता है और गन्ने में मिठास बढ़ती है. ज्यादा गर्मी पड़ने पर भी गन्ने में कल्ले कम निकलते हैं. गर्मी के कारण गन्ना जल्दी पक जाता है और उसमें फूल आ जाते हैं, जिससे उसकी बढ़वार रुक जाती है. अधिक तापमान में फसल को पानी की जरूरत भी ज्यादा होती है और पानी की कमी होने पर गन्ने की लंबाई और मोटाई कम हो जाती है.

सबसे बड़ा नुकसान यह होता है कि गर्मी के कारण पौधा अपनी ऊर्जा के लिए जमा की हुई चीनी (सुक्रोज) को वापस ग्लूकोज में बदलकर इस्तेमाल करने लगता है. इससे गन्ने में मिठास जमा नहीं हो पाती, रस की गुणवत्ता कम हो जाती है और चीनी परता में भारी कमी आती है. गन्ने की अच्छी बढ़वार और पैदावार के लिए 20 से 35 डिग्री सेल्सियस का तापमान सबसे अच्छा माना जाता है.

बदलते मौसम में किसान ऐसे करें अपनी फसल का बचाव

डॉ.आर.पी. सिंह ने सुझाव दिया कि बदलते मौसम की चुनौतियों का सामना करने के लिए किसानों को अपनी खेती के तरीकों में कुछ बदलाव करने की जरूरत है. कुछ जरूरी उपाय करें, जैसे 

सही किस्मों का चुनाव करें: किसानों को गन्ने की ऐसी किस्मों का चयन करना चाहिए जो सूखे और बाढ़ जैसी स्थितियों को सहन कर सकें. अपने क्षेत्र के लिए उपयुक्त किस्मों की जानकारी के लिए कृषि वैज्ञानिकों से संपर्क करें.
बुआई का सही समय और तरीका: गन्ने की बुआई के समय खेत में पर्याप्त नमी और सही तापमान होना बहुत जरूरी है. इससे गन्ने का जमाव अच्छा होता है और फसल की शुरुआत मजबूत होती है.
सिंचाई की उचित व्यवस्था: बदलते मौसम में पानी की कमी एक बड़ी समस्या है. इसलिए, जीवन रक्षक सिंचाई के लिए तालाब, ड्रिप सिंचाई या स्प्रिंकलर जैसी तकनीकों की व्यवस्था सुनिश्चित करें.
कीट एवं रोग प्रबंधन: फसल पर शुरुआत से ही कीटों और बीमारियों की निगरानी करें. किसी भी समस्या के लक्षण दिखते ही कृषि विज्ञान केंद्र या चीनी मिल के विशेषज्ञों से सलाह लेकर ही दवा का छिड़काव करें.

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