बकरीद के लिए बकरों का लोकल बाजार शुरू हो चुका है. पशुपालक बकरों को बेचने के लिए बाजार में लेकर आ रहे हैं. अगर विदेश जाने वाले बकरों की बात करें तो उनका बाजार लगभग खत्म हो चुका है. सबसे ज्यादा बकरे सऊदी अरब जाते हैं. यहां हज के मौके पर हर एक हाजी को बकरे की कुर्बानी देनी होती है. लेकिन खरीदारी लोकल बाजार में भी कम नहीं होती है. उत्तरी भारत की कई बड़ी बकरा मंडी ऐसी हैं जहां से बकरीद के लिए देशभर में बकरे सप्लाई होते हैं. इन्हीं मंडियों में पशुपालकों को बकरों के अच्छे दाम भी मिल जाते हैं.
पशुपालकों के लिए साल में एक बार ऐसा दिन आता है जब उनके बकरे आम दिनों के बाजार रेट से महंगे बिकते हैं. यह मौका होता है कुर्बानी के त्यौहार बकरीद का. इस दौरान बकरे हाथ-ओं-हाथ और मुंह मांगे दामों पर बिकते हैं. बकरा देखने में खूबसूरत और वजनदार हो तो 50 हजार और एक लाख रुपये का भी बिक जाता है.
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बकरा और मीट एक्सपोर्ट की बात छोड़ दें तो कोलकाता में दुर्गा पूजा और बकरीद के मौके पर देश में बकरों की डिमांड किसी से छिपी नहीं है. इतना ही नहीं बकरीद से कई दिन पहले लाखों की संख्या में बकरे सऊदी अरब को एक्सपोर्ट किए जाते हैं. यहां तक की रोजाना की डिमांड पूरी करने के लिए भी अरब देशों में भारतीय नस्ल के बकरे खूब पसंद किए जाते हैं. बकरा एक्सपोर्ट करना हो या फिर दुर्गा पूजा और बकरीद के मौके पर बेचना हो, थोक बकरा करोबारी सीधे यूपी, मध्य प्रदेश, राजस्थान और हरियाणा की ओर दौड़ लगाता है.
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बकरा करोबारी सलीम पठान ने किसान तक को बताया कि 100 से लेकर एक हजार और दो हजार बकरे खरीदने के लिए कारोबारी बकरों की बड़ी मंडी जसवंत नगर (यूपी), कालपी (मध्य प्रदेश), महुआ, अलवर (राजस्थान) और मेवात (हरियाणा) की ओर रुख करते हैं. यही वो बकरा मंडियां हैं जहां जितना बकरा, जिस नस्ल का चाहिए वो मिलेगा. सिर्फ ब्लैक बंगाल और बीटल नस्ल का बकरा कम मिलेगा. बाकी किसी भी नस्ल के बकरे की आप डिमांड कीजिए वो हाजिर हो जाएगा.
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