सड़क से लेकर संसद तक, एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) की गारंटी का मुद्दा जोर पकड़ता जा रहा है. कई किसान नेताओं का मानना है कि भले ही सरकार किसान सम्मान निधि को बंद कर दे, मगर उसे एमएसपी की गारंटी का कानून बनाना चाहिए. इससे किसानों के अधिकांश समस्याओं का समाधान हो जाएगा. एमएसपी वह मूल्य है जिस पर सरकार किसानों से फसल खरीदती है, जिससे उन्हें उनकी उपज के लिए सुनिश्चित आय मिलती है. यह मूल्य किसानों के लिए एक सुरक्षा जाल का काम करता है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि उन्हें उनकी फसलों का उचित मूल्य मिले, खासकर जब बाजार की कीमतें एमएसपी से नीचे गिर जाती हैं.
इस दौरान किसानों के हित सुरक्षित रह सकते हैं. लेकिन छोटे जोत के किसान इस बात से सहमत नहीं हैं कि किसान सम्मान निधि को त्याग कर एमएसपी की गारंटी कानून लागू किया जाए. इस प्रकार, किसानों की जोत के श्रेणियों के आधार पर उनकी समस्याओं और राय में भिन्नता है. छोटे जोत वाले किसान कहते है अगर एमएसपी की गारंटी बनानी है, यह सभी फसलों पर लागू होनी चाहिए. दूसरी तऱफ. छोटे किसानों को किसान सम्मान निधि जैसी आर्थिक मदद मिलती रहे. वहीं, अगर एमएसपी से किसानों का कम दाम मिल रहे हैं तो भांवातर योजना तरह उस फसल की नुकसान की भरपाई होनी चाहिए. इससे किसानों की आर्थिक हित सुरक्षित रह सके.
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हरियाणा के जिला सोनीपत के गांव खुरमपुर के सोनू कुमार, जिनके पास 20 एकड़ में धान और गेहूं की खेती है, मानते हैं कि एमएसपी की गारंटी कानून जरूरी है, क्योंकि बाजार में उतार-चढ़ाव के कारण किसानों को उनकी उपज का सही मूल्य नहीं मिल पाता. उनका कहना है कि भले किसान सम्मान निधि ना मिले, लेकिन एमएसपी की गारंटी का कानून बनना चाहिए. वहीं, गांव हिरनकी, दिल्ली के किसान उमेश सिंह, जो धान और गेहूं की फसलों की खेती करते हैं, मानते हैं कि किसानों को बेहतर लाभ के लिए एमएसपी की गारंटी का कानून बनना चाहिए, क्योंकि किसान सम्मान निधि से कोई खास फायदा नहीं होता, क्योंकि यह राशि बहुत छोटी है.
उत्तर प्रदेश के ग्राम चितावा, जिला अयोध्या के छोटे जोत के किसान सीताराम वर्मा ने किसान तक बताया कि उनके पास दो एकड़ खेत है और उनकी अधिकांश उपज परिवार के उपयोग में आ जाती है. उनका कहना है कि छोटे जोत वाले किसानों को अपनी उपज उगाने के लिए आर्थिक मदद की जरूरत है. उनका सुझाव है कि किसान सम्मान निधि की राशि बढ़ाई जानी चाहिए, क्योंकि खेती में लगने वाली खाद, बीज, और डीजल की लागत लगातार बढ़ रही है. छोटे किसानों के पास खाद, बीज, और जुताई के लिए पैसे नहीं रहते, जिससे उन्हें लोन लेना पड़ता है और कर्ज में आ जाते हैं. इसलिए, किसान सम्मान निधि की राशि को बढ़ाया जाना चाहिए. हालांकि, वे मानते हैं कि एमएसपी की गारंटी भी एक अच्छा कदम है, लेकिन किसान सम्मान निधि का सहयोग बंद करके केवल एमएसपी पर ध्यान देना उचित नहीं है. किसान सम्मान निधि से उन्हें बहुत मदद मिलती है, लेकिन यह राशि बहुत कम है और इसे बढ़ाए जाने की जरूरत है.
गांव मकसोन्द गंज, जिला अयोध्या के छोटे जोत किसान शोभाराम, जिनके पास दो एकड़ खेत है और वे सब्जी, फल, और मक्का की खेती करते हैं, किसान तक से कहा कि किसानों को एमएसपी की गारंटी कानून के साथ-साथ आर्थिक मदद भी मिलनी चाहिए. अगर छोटे जोत के किसानों के पास खेती के लिए समय पर पैसे नहीं होते हैं, तो वे बुवाई और जुताई समय पर नहीं कर पाएंगे, जिससे बेहतर उपज की संभावना कम हो जाएगी. इसलिए, पहले आर्थिक मदद के लिए किसान सम्मान निधि की राशि बढ़ाई जानी चाहिए और सभी फसलों, खासकर फल और सब्जियों पर एमएसपी की गारंटी का कानून बनना चाहिए.
उत्तर प्रदेश के प्रगतिशील किसान, सत्यपाल सैनी, ग्राम रनियाला, सहारनपुर, जिनके पास तीन एकड़ खेत है और वे सब्जी और सब्जी नर्सरी की खेती करते हैं, किसान तक पर अपना विचार रखते हुए कहा कि अगर एमएसपी की गारंटी का कानून बने, तो सभी फसलों, अनाज से लेकर सब्जियों तक, पर एमएसपी गारंटी होनी चाहिए. उनका कहना है कि गन्ना की उपज का मूल्य फिक्स होता है, जो मिलों द्वारा निर्धारित किया जाता है. इसके कारण उनके क्षेत्र में सबसे अधिक गन्ने की खेती होती है. इसी तरह, अगर केवल अनाज वाली फसलों की एमएसपी की गारंटी मिले, तो केवल इन फसलों की खेती होगी, जिससे कृषि विविधीकरण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा. इसलिए, सभी फसलों पर एमएसपी गारंटी मूल्य प्रदान किया जाना चाहिए, और छोटे किसानों को किसान सम्मान निधि मिलती रहे और इसकी राशि बढ़ाई जानी चाहिए.
देश में 86 फीसदी किसान छोटे और सीमांत हैं, जिनके पास पांच एकड़ से कम भूमि है. इसका मतलब है कि अधिकांश किसान जो खाद्यान्न फसल उगाते हैं, वह अपने परिवार के उपयोग के लिए उगाते हैं, क्योंकि उनके पास पर्याप्त भूमि नहीं है, जिससे वे अपनी उपज को एमएसपी पर बेच सकें. छोटे और सीमांत किसान अपनी आय के लिए कृषि श्रमिक के रूप में काम करते हैं. 15 सिंतम्बर 2020 के दिये गये संसद में एक आंकड़े के मुताबिक, औसतन एक किसान जिसकी जोत 0.01 हेक्टेयर तक थी उनके ऊपर 31,100 रुपये का बैंक कर्ज था. वहीं, 0.01 से 0.04 हेक्टेयर तक जोत वाले किसानों के पास 23,900 रुपये,0.41 से 1.00 हेक्टेयर तक जोत वाले किसानों के ऊपर 35,400 रुपये, और 1 हेक्टेयर से लेकर 2 हेक्टेयर तक जोत वाले किसानों के ऊपर 54,800 रुपये का कर्ज था. इन कर्ज को चुकाने के लिए छोटे के किसान आर्थिक परेशानियों में पड़ते है.
छोटे जोत के किसानों को सरकारी आर्थिक मदद से व्यापारियों, बिचौलियों और सूदखोरों के चंगुल से बचने में मदद मिलती है. अन्यथा, व्यापारी उनकी उपज का औने-पौने दाम खरीदते हैं या उन्हें अधिक ब्याज देना पड़ता है. इसके कारण, किसानों को बैंकों से कर्ज लेना पड़ता है और कर्ज चुका न पाने की स्थिति में उन्हें आत्महत्या जैसी गंभीर कदम उठाने की नौबत आती है. दूसरी तरफ छोटे जोत के किसान अधिक आय के लिए नगदी फसल, सब्जी, या अन्य फसलें उगाते हैं. एमएसपी किसानों की फसल मूल्य की सुरक्षा कवच है, और लोन से बचने के लिए सरकारी आर्थिक मदद एक ढाल की तरह काम करती है. इसलिए, सभी हितों को ध्यान में रखते हुए संतुलन बनाना जरूरी है.
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