एक बार फिर टाइगर वापसी कर सकता है. देश के साथ ही विदेशी बाजारों में जल्द ही नजर आ सकता है. टाइगर को दोबारा से लाने के लिए चर्चाएं तेज हो गई हैं. केन्द्र सरकार भी टाइगर को वापस लाने की बात कह रही है. टाइगर ही विदेशी झींगा को टक्कर दे सकता है. विदेशी बाजार में इक्वाडोर से मुकाबला कर सकता है. मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय के केन्द्रीय मंत्री परषोत्तम रूपाला ने झींगा से जुड़ी कई योजनाओं का जिक्र करते हुए मछली पालकों से टाइगर का पालन करने की बात कही है. उन्होंने माना है कि भारतीय टाइगर ही इक्वाडोर को इंटरनेशनल बाजार में टक्कर दे सकता है.
मत्स्य पालन विभाग के डीडीजी डॉ. जेके जेना ने टाइगर के साथ ही भारतीय व्हाइट झींगा पालन पर भी जोर दिया है. उनका कहना है कि सी फूड में सबसे ज्यादा इनकम झींगा एक्सपोर्ट से होती है. 35 हजार करोड़ रुपये वाले सी फूड एक्सपोर्ट में 70 फीसद हिस्सेदारी झींगा की है. लेकिन बीते कुछ वक्त से झींगा एक्सपोर्ट में गिरावट दर्ज की जा रही है. इसी के चलते रेट भी कम हुए हैं. इक्वाडोर के झींगा से भारत के झींगा एक्स्पोर्ट पर असर पड़ा है. लेकिन मौजूदा वक्त में हम झींगा पालकों को कई तरह की सुविधाएं दे रहे हैं. गौरतलब रहे अभी देश में जो झींगा पाला जा रहा है वो विदेशी (अमेरिकन) वैराइटी का है.
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हाल ही में इंडोनेशिया में झींगा पालन पर एक वर्ल्ड कांफ्रेंस आयोजित की गई थी. भारत से झींगा वर्ल्ड कांफ्रेंस बाली, इंडोनेशिया गए झींगा एक्सपर्ट और झींगालाला फूड चैन के संचालक डॉ. मनोज शर्मा ने किसान तक को बताया कि अभी भारत ही नहीं एशिया में विदेशी वेनामी झींगा पालन में लागत ज्यादा आ रही है. दूसरा अहम पाइंट ये है कि भारत से सात से आठ लाख टन झींगा एक्सपोर्ट होता है. अमेरिका-चीन और यूरोप देश भारतीय झींगा के बड़े खरीदार हैं. लेकिन झींगा पालन करने वालों को सरकार की ओर से मिलने वालीं सुविधाओं की कमी है. कई राज्यों में बिजली रेट ज्यादा हैं.
कमर्शियल रेट पर झींगा पालक को बिजली मिल रही है. झींगा में 40 से 45 फीसद लागत फीड पर आती हैं, लेकिन इस पर भी कोई सब्सिडी वगैरह नहीं मिलती है. यही वजह है कि हम वेनामी के साथ इंटरनेशनल बाजार में महंगे साबित हो रहे हैं. दूसरे कुछ देश हमसे बहुत सस्ता झींगा लेकर आ रहे हैं. ऐसे में जब रूस-यूक्रेन युद्ध और दूसरी कुछ वजहों के चलते बाजार में मंदा है तो उन देशों का झींगा जल्दी बिक जा रहा है. हमारे यहां रेट डाउन हो जाने के बाद भी उतने आर्डर नहीं मिल पा रहे हैं. इसीलिए बाली की कांफ्रेंस में भी एशिया की शान टाइगर का नारा दिया गया था.
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झींगा हैचरी एसोसिएशन के अध्यक्ष रवि कुमार येलांकी ने किसान तक को बताया कि इंटरनेशनल बाजार के हालात को देखते हुए झींगा पालकों ने टाइगर का पालन शुरू कर दिया है. लेकिन अभी इसकी मात्रा बहुत कम है. लेकिन मात्रा कम होने के बाद भी इसका उतना बीज नहीं मिल पा रहा है. कहने का मतलब है कि डिमांड ज्यादा है और माल सप्लाई करने वालीं सिर्फ दो ही कंपनियां हैं. लेकिन अच्छी बात ये है कि लोग टाइगर की तरफ भी आ रहे हैं.
झींगा एक्सापर्ट की मानें तो भारत में करीब 10 लाख टन झींगा का उत्पादन होता है. झींगा के मामले में भारत पूरी तरह से एक्सपोर्ट पर ही निर्भर है. देश में सबसे ज्यादा झींगा आंध्रा प्रदेश में होता है. अगर उत्तर भारत की बात करें तो पंजाब-हरियाणा और राजस्थान में भी झींगा पालन शुरू हो गया है. तीनों राज्य में मिलाकर करीब सात हजार टन झींगा हो रहा है. 14-15 ग्राम वजन वाला झींगा तालाब में 70 से 80 दिन में तैयार हो जाता है. एक साल में झींगा की तीन से चार बार तक फसल तैयार की जा सकती है.
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