अरहर के उत्पादन में कमी आने के बावजूद भी कटाई से पहले अरह दाल की कीमतों में पिछले महीने की तुलना में 10-15 प्रतिशत की गिरावट आई है. जो फसल के मौसम से पहले न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) के स्तर के करीब 6,600 रुपए प्रति क्विंटल पर आ गई है. इससे उत्पादकों की तरफ से दालों को खरीद जल्द शुरू करने की मांग शुरू हो हुई है. असल में पूर्वी अफ्रीकी के देशों और म्यांमार से कम कीमत पर खरीदी गई अरहर की उपलब्धता में बढ़ोतरी से घरेलू कीमतों पर अरहर की कीमतोंं पर ये दबाव पड़ रहा है.
कृषि मंत्रालय की एक इकाई एगमार्कनेट के आंकड़ों के अनुसार, गुलबर्गा बाजार में अरहर दाल का मॉडल मूल्य (जिस दर पर अधिकांश व्यापार होता है) अब नवंबर की शुरूआत में 7,800-7,900 रुपये से घटकर 6,800 रुपए रहा है. वहीं अगले पखवाड़े में नई फसल के बाजार में आने से दाल के उत्पादकों को डर है कि कीमतें आगे भी कम हो सकती हैं.
कर्नाटक में अरहर की फसल में इस साल 2-4 सप्ताह की देरी हुई है. गुलबर्गा में कर्नाटक के प्रदेश लाल ग्राम उत्पादक संघ के अध्यक्ष बसवराज इंगिन ने कहा कि यह मुख्य रूप से जून-जुलाई के दौरान बुवाई करने वाली फसल ज्यादा बारिश के कारण प्रभावित हुआ. जिससे किसानों के एक वर्ग को कई क्षेत्रों में फिर से बुवाई करने के लिए मजबूर होना पड़ा. उन्होंने कहा, हमने मांग की है कि इस साल फसल के मौसम में सार्वजनिक खरीद जल्दी शुरू की जाए. अरहर के दो प्रमुख उत्पादकों कर्नाटक और महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में नई फसल बाजार जल्दी शुरू हो गई है. हालांकि, बाजार में आ रही नई फसल में नमी की मात्रा ज्यादा है. आईग्रेन इंडिया के राहुल चौहान ने कहा, महाराष्ट्र के सोलापुर जैसे जगहों में नई अरहर की कीमतें 6,800-7,111 रुपए के आसपास चल रही है. जबकि दुधनी में यह 6,300-6,800 रुपए है. उन्होंने कहा कि कर्नाटक के गुलबर्गा में नई फसल 7,250 रुपए है.
कृषि मंत्रालय के पहले अनुमान के मुताबिक इस साल खरीफ सीजन में अरहर का उत्पादन एक साल पहले के 43.4 लाख टन के मुकाबले 38.9 लाख टन रहने का अनुमान है. वही कारोबारियों को उम्मीद है कि कुल उत्पादन शुरुआती अनुमानों से कम रहेगा.
कर्नाटक में इस साल फसल अधिक बारिश के कारण कम रही है. वहीं उत्पादकों को फसल बुवाई के शुरुआती दिनों में ज्यादा बारिश का सामना करना पड़ा था. अब उन्हें विल्ट रोग का सामना करना पड़ रहा है. जिसके कारण कलबुर्गी के प्रभावित क्षेत्रों में फसल सूख गई है. उन्होंने कहा, फसल के कम आकार को देखते हुए कीमतें थोड़ी स्थिर होनी चाहिए. लेकिन पिछले एक महीने से कीमतों में गिरावट देखी जा रही है. जो आयात वाली अरहर की उपलब्धता में बढ़ोतरी के कारण हो सकता है.
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