झारखंड के इस जिले में अब तक शुरू नहीं हुई धान की खरीदझारखंड के रामगढ़ जिले के ग्रामीण इलाकों में 70 से 80 परसेंट किसान फसल चक्र पर निर्भर हैं. किसानों के मुताबिक, इस साल अच्छी बारिश की वजह से धान की बंपर पैदावार हुई है और उन्हें अपनी फसल का अच्छा दाम मिलने की उम्मीद थी, लेकिन बदकिस्मती से सरकार के बेपरवाह रवैये की वजह से उनकी उम्मीदों पर पानी फिर गया है, क्योंकि सरकारी धान खरीद का प्रोसेस अभी तक शुरू नहीं हुआ है. किसान बिचौलियों को 15 से 16 रुपये के औने-पौने दामों पर धान बेचने को मजबूर हैं. किसान बेसब्री से धान खरीद केंद्र खुलने का इंतज़ार कर रहे हैं, सोच रहे हैं कि सरकार कब उनकी सुध लेगी.
किसानों के मुताबिक, कर्ज लेकर धान की फसल लगाई थी, दूसरे, दूसरी फसल भी समय पर लगानी है, जिसके लिए पैसे चाहिए, मजबूरी में हमें अपनी उगाई हुई धान की फसल बिचौलियों को बेचनी पड़ रही है, इस वजह से हमें धान की फसल का सही दाम नहीं मिल पा रहा है. मौसम कब बदल जाए, कहा नहीं जा सकता, इसलिए धान खराब होने पर उसे खलिहान में रखना भी हम ठीक नहीं समझ रहे, आखिर कब तक धान खरीद केंद्र खुलने का इंतजार करते रहेंगे, इसलिए बिचौलियों को बेच रहे हैं, ये बिचौलिए धान को राइस मिल को दे रहे हैं.
हालांकि, इस मामले में जिले की DSO रंजीता टोप्पो रामगढ़ जिले के किसानों से अपील कर रही हैं कि वे अपना धान सिर्फ सरकारी धान खरीद केंद्र पर ही बेचें. कुछ ही दिनों में धान खरीद केंद्र खुल जाएंगे. दूसरी बात, इस बार किसानों को धान की कीमत दोनों किस्तों में एक साथ दी जाएगी. रंजीता टोप्पो ने यह भी कहा कि फिलहाल पूरे जिले में 22 PACS चुने गए हैं जहां धान खरीदा जाएगा. इस मामले में झारखंड की कृषि मंत्री शिल्पी नेहा तिर्की ने भी हाल ही में रांची में किसानों को जानकारी दी थी कि आप लोग सरकारी प्रक्रिया से ही धान बेचें.
पिछले साल रामगढ़ ज़िले में 2 लाख क्विंटल धान खरीदने का टारगेट था, लेकिन सिर्फ़ 1.46 लाख क्विंटल ही खरीदा गया. किसान विकास कुमार ने कहा, "मेरे पापा ने धान लगाने के लिए लोन लिया था. अब हम अपनी लागत भी नहीं निकाल पा रहे हैं. हमें ऐसा लग रहा है कि हम सुसाइड करने वाले हैं. अगर PACS खुल जाते, तो हमें बेहतर दाम मिलते." एक और किसान राजू कुमार ने कहा, "हम 14-15 रुपये में धान बेच रहे हैं. हम बर्बाद हो गए हैं. हमें जल्दी से PACS खोलना चाहिए.
" एक महिला किसान सोहरी देवी ने बताया कि उनकी लागत भी नहीं निकली है, उन्होंने 14 रुपये किलो धान बेचा है. किसान देवचंद कुमार ने कहा कि काटा हुआ धान 15 दिनों से खेतों में पड़ा है, और अब उन्हें इसे प्राइवेट इन्वेस्टर्स को बेचना पड़ रहा है. उनके परिवार ने धान उगाने के लिए लोन लिया था. यह सवाल उठना लाज़मी है कि सरकार धान खरीद केंद्र खोलने में देरी क्यों कर रही है. अगर धान खरीद केंद्र समय पर खुल गए होते तो अब तक कई किसान अपने कर्ज से मुक्त हो गए होते.
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