कपास की सरकारी खरीद प्रक्रिया अक्टूबर में शुरू हुई थी जो जारी है. आंकड़ों से पता चलता है कि देशभर की मंडियों में जितनी कपास की आवक पहुंची है उससे आधी खरीद हो सकी है. जनवरी की शुरुआत तक न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी दर पर कपास की खरीद 63 लाख गांठ तक पहुंची है. जबकि, इससे दोगुनी मात्रा में किसान कपास उपज लेकर मंडियों में पहुंचे हैं. सबसे ज्यादा कपास खरीद तेलंगाना, महाराष्ट्र और गुजरात से की गई है.
भारतीय कपास निगम (CCI) ने अक्टूबर में कपास की सरकारी खरीद एमएसपी दर पर शुरू की थी. 2024-25 के मार्केटिंग सीजन अब तक फाइबर फसल कपास की कुल बाजार आवक का लगभग 46 फीसदी खरीदा गया है. ताजा आंकड़ों के अनुसार कपास निगम ने 63 लाख गांठ से अधिक कपास (कच्चा कपास) खरीदा है. यह अनुमानित बाजार आवक लगभग 136 लाख गांठ का लगभग आधा है. कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया (CAI) के आंकड़ों के अनुसार मंगलवार को बाजार आवक लगभग 136 लाख गांठ तक पहुंच गई थी.
इससे पहले भारतीय कपास निगम ने आधिकारिक आंकड़े जारी करते हुए बताया था कि देशभर से 14 दिसंबर के मध्य तक 31 लाख गांठ कपास की खरीद कर ली गई है. इस हिसाब से देखें तो अक्टूबर से दिसंबर तक 60 दिन से अधिक समय में जितना कपास खरीदा उतना कपास बीते 20 दिनों में ही निगम ने किसानों से खरीद लिया है. खरीद में तेजी की वजह मंडियों में ज्यादा आवक भी रही है.
भारतीय कपास निगम (CCI) के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक ललित कुमार गुप्ता के अनुसार तेलंगाना में अब तक लगभग 32 लाख गांठ और महाराष्ट्र में 16 लाख गांठ की खरीद की गई है. गुजरात में 5 लाख गांठें खरीदी गई हैं, जबकि आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में 3-3 लाख गांठें खरीदी गई हैं. इसके अलावा मध्य प्रदेश में करीब 2.25 लाख गांठें खरीदी गई हैं. ओडिशा में 1.25 लाख गांठें खरीदी गई हैं और राजस्थान में 0.5 लाख गांठें, हरियाणा में 0.30 लाख गांठें और पंजाब में 0.01 लाख गांठें खरीदी गई हैं.
कच्चे कपास की बाजार कीमतें न्यूनतम समर्थन मूल्य के स्तर से नीचे रहीं हैं. प्रमुख उत्पादक क्षेत्रों के विभिन्न बाजारों में कपास की कीमतें 7100-7200 प्रति क्विंटल के दायरे में हैं. केंद्र ने 2024-25 के मार्केटिंग सीजन के लिए मध्यम किस्म के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्या यानी एमएसपी 7121 प्रति क्विंटल और लंबी किस्म के लिए 7521 प्रति क्विंटल निर्धारित कर रखा है. इस हिसाब से बाजारों में कपास की कीमतें अभी भी एमएसपी से काफी नीचे चल रही हैं. इससे किसानों को कम कीमत मिल रही है जो उनके लिए नुकसानदायक है.
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