पराली प्रबंधन किसानों के लिए आज भी एक बड़ी समस्या मानी जाती है. हालांकि पराली जलाने से रोकने के लिए राज्य सरकार और विभिन्न संस्थाओं की तरफ से कई तरह के प्रयास किए जा रहे हैं. किसानों को सब्सिडी योजनाओं का लाभ दिया जा रहा है ताकि उन्हें पराली प्रबंधन करने में आसानी हो सके. यह प्रयास रंग भी ला रहे हैं और पराली जलाने की घटनाओं में कमी भी दर्ज की जा रही है. इन सब प्रयासों के अलावा कुछ ऐसे जागरूक किसान भी हैं जो पराली प्रबंधन के लिए खुद से कोशिश कर रहे हैं और उनकी मेहनत रंग भी ला रही है.
पंजाब के पटियाला में भी किसान पर्यावरण प्रदूषण को कम करने के लिए फसल अवशेष प्रबंधन का आधुनिक तरीका अपना रहे हैं. यहां के किसान फसल अवशेष प्रबंधन के लिए आधुनिक कृषि मशीनों को अपना रहे हैं. तेईपुर गांव के रहने वाले किसान गुरमुख सिंह और जतिंदर सिंह भी ऐसे ही किसान हैं. दोनों ही किसान भाई हैं. उनके पास 10 एकड़ की जमीन है. उन दोनों ही भाईयों ने पिछले 9 सालों के दौरान भी पराली नहीं जलाई है. इतना ही नहीं उन्होंने खेत में बचे हुए पराली को जलाए बिना ही गेहूं की बुवाई की है जिससे उनकी आय बढ़ी है.
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टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार गुरमुख सिंह ने बताया कि उन्होंने साल 2015 से पराली नहीं जलाई है. वे पराली को जलाए बिना उस वापस मिट्टी में मिला रहे हैं. उन्होंने बताया कि वे सुपर स्ट्रा मैनेजमेंट सिस्टम (सुपर-एसएमएस) के लैस कंबाइन हार्वेस्टर का उपयोग करते हैं. फिर सुपर सीडर का इस्तेमाल करते हुए गेहूं की बुवाई करते हैं. गुरमुख सिंह बताते हैं कि पराली को मिट्टी में मिलाने से भूमि की लवणता कम हो गई, उपजाऊ क्षमता बढ़ गई है और यूरिया का उपयोग भी आधा हो गया है.
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उन्होंने अपना अनुभव साझा करते हुए कहा कि पराली को मिट्टी में मिलाने से फसल की पैदावार में सुधार हुआ है और फसलों की गुणवत्ता और रंग में भी उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है. इसके साथ ही कीटों के हमलों में भी कमी आई है और मिट्टी में पानी को सोखने की क्षमता बढ़ गई है, जिससे खेतों में खरपतवारों की मात्रा में कमी आई है. उन्होंने कहा कि सुपर सीडर न केवल पर्यावरण के अनुकूल है बल्कि कई अन्य लाभ भी प्रदान करता है. उन्होंने बताया कि सुपर सीडर का उपयोग करके बोए गए गेहूं को पराली जलाने के बाद बोई गई फसलों की तुलना में कम पानी की आवश्यकता होती है.
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