केरल के कंथवल्लूर से पलायन कर रहे किसान, हाथियों के आतंक से परेशान होकर छोड़ रहे अपना घर और खेत

केरल के कंथवल्लूर से पलायन कर रहे किसान, हाथियों के आतंक से परेशान होकर छोड़ रहे अपना घर और खेत

इडूक्की के ऊंची पहाडियों से वापस आकर एर्नाकुलम के मुवत्तुपुझा के मैदानी इलाके में बसने वाले किसान शेल्जू सुब्रमण्यम बताते हैं कि उनके दादा चार दशक पहले कंथल्लूर में आकर बस गए थे. लेकिन अब फिर से वापस आ गए हैं. क्योंकि पिछले कुछ वर्षों से हाथी लगातार उनकी फसल को बर्बाद कर रहे हैं.

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केरल के कंथवल्लूर से पलायन कर रहे किसान, हाथियों के आतंक से परेशान होकर छोड़ रहे अपना घर और खेतहाथियों का आतंक (सांकेतिक तस्वीर)

किसानों को जंगली जानवर बहुत नुकसान पहुंचाते हैं. कई जगहों पर जो जंगली जानवरों के प्रकोप के कारण किसानों को अपने खेतों को छोड़ना पड़ता है और वहां से पलायन करना पड़ता है. केरल के कंथवल्लूर के किसान आज उसी समस्या का सामना कर रहे हैं. कंथवल्लूर को केरल का सब्जी का कटोरा कहा जाता है. यह ऊंची पहाड़ियों पर बसा हुआ है. एक वक्त था जब लोग मैदानी इलाकों से यहां पर आकर रहते थे और खेती करते थे. लेकिन अब हाथियों के आतंकित यहां के किसान वापस मैदानी इलाकों का रूख कर रहे हैं.

इडूक्की के ऊंची पहाडियों से वापस आकर एर्नाकुलम के मुवत्तुपुझा के मैदानी इलाके में बसने वाले किसान शेल्जू सुब्रमण्यम बताते हैं कि उनके दादा चार दशक पहले कंथल्लूर में आकर बस गए थे. लेकिन अब फिर से वापस आ गए हैं. क्योंकि पिछले कुछ वर्षों से हाथी लगातार उनकी फसल को बर्बाद कर रहे हैं. द न्यू इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार राज्य सरकार के 'सर्वश्रेष्ठ किसान' पुरस्कार से दो बार सम्मानित शेलजू कहते हैं कि उनके पास कंथालूर में सिर्फ 2.5 एकड़ ज़मीन है. लेकिन पट्टे पर ज़्यादा ज़मीन लेकर 20-25 एकड़ ज़मीन पर खेती करते थे.

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जमीन छोड़ रहे किसान

शेल्जू सुब्रमण्यम ने बताया कि अब उन्होंने कंथालूर में खेती छोड़ने का फैसला किया है. क्योंकि जंगली जानवरों के कारण परेशानी बढ़ गई है. जानवरों ने इंसानी बस्तियों में घुसना शुरू कर दिया है. जानवरों से हर कोई परेशान हैं. उन्होंने कहा कि उसके जैसे और किसान हैं जो उस जगह को छोड़ने की तैयारी कर रहे हैं. अब शेल्जू सुब्रमण्यम ने  मुवत्तुपुझा के निकट लगभग एक एकड़ जमीन खरीदी है. इस जमीन को खेती योग्य बनाने के लिए उन्होंने वहां पर मौजूद रबर के पेड़ों को काट दिया है. 

यह है हाथियों के आने की वजह

एक अन्य किसान सेबेस्टियन ने बताया कि कंथल्लूर में सबसे बड़ी समस्या यह है कि यहां पर अधिकांश बाहरी लोगों ने जमीन खरीद ली है. उन जमीनों पर यूकेलिप्टस ग्रैंडिस के पेड़ बेरोट-टोक बढ़ रहे हैं. बाहरी लोगों ने यहां पर जमीन खरीद कर छोड़ दी है जो तीन सालों बाद यहां आते हैं और उन्हें काट कर बेचते हैं. यह सभी पेड़ इंसानी बस्तियों के पास हैं. जहां पर हाथी आते हैं दिन में इन्हीं पेड़ों की छांव में रहते हैं और रात में खेतों में घुस जाते हैं. उन्होंने बताया कि हाल ही में हाथियों ने एक नाशपाती के खेतों को नुकसान पहुंचाया था. 

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कई परिवारों ने किया है पलायन

किसान सेबेस्टियन ने बताया कि अब उन्होंने खेती करना छोड़ दिया है और पास के एक रिसॉर्ट में काम करते हैं. थोडुपुझा के निकट करीमन्नूर स्थित सेंट मैरी फोरेन चर्च के पादरी फादर स्टेनली पुलप्रायिल कहते हैं कि पिछले पांच वर्षों में उनके चर्च में 20-25 नए परिवार आए हैं, जिनमें से सभी ने जंगली जानवरों के हमलों के कारण पहाड़ियों पर स्थित अपनी संपत्तियां खाली कर दी हैं. उन्होंने बताया कि ऊंची पहाड़ियां धीरे-धीरे खाली हो रही हैं. लो अपनी संपत्ति बेचे बिना ही वहां से जा रहे हैं जो कभी-कभी उसकी देखभाल करने के लिए जाते हैं. 

 

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