scorecardresearch
इन चार दुश्मनों से बचा लेंगे तो बंपर पैदावार देगी भिंडी, आजमाएं ये आसान तरीके

इन चार दुश्मनों से बचा लेंगे तो बंपर पैदावार देगी भिंडी, आजमाएं ये आसान तरीके

बरसात वाली फसल के लिए बलुई दोमट भूमि का चयन करना चाहिए, जिसमें जल निकास अच्छा हो.खेत की एक बार मिट्टी पलटने वाले हल से तथा तीन-चार बार हैरो या देसी हल से जुताई करके मिट्टी को भुरभुरा बनाकर खेत को समतल कर लेना चाहिए.बुआई के समय खेत में उपयुक्त नमी होनी अति आवश्यक है.

advertisement
भिंडी की खेती भिंडी की खेती

ग्रीष्मकालीन भिंडी की फसल लेने के कुछ अतिरिक्त फायदे हैं.इस मौसम में आमतौर पर दूसरी सब्जियां कम उपलब्ध होने के कारण बाजार मूल्य अच्छा मिलता है तथा इस दौरान मोजैक रोग का प्रकोप बहुत ही कम होता है.अतः इस मौसम में भिंडी की वे किस्मे भी बो सकते हैं जो मोजैक के प्रति संवेदनशील होती हैं.इस प्रकार ग्रीष्मकालीन भिंडी के उत्पादन की उन्नत तकनीकी को अपनाकर अधिक उपज प्राप्त कर सकते हैं.

भिंडी की फसल को लगभग सभी प्रकार की भूमि पर उगाया जा सकता है.गर्मियों की फसल के लिए भारी दोमट मृदा अधिक उपयुक्त रहती है.इस मृदा में नमी अधिक समय तक बनी रहती है.बरसात वाली फसल के लिए बलुई दोमट भूमि का चयन करना चाहिए, जिसमें जल निकास अच्छा हो.खेत की एक बार मिट्टी पलटने वाले हल से तथा तीन-चार बार हैरो या देसी हल से जुताई करके मिट्टी को भुरभुरा बनाकर खेत को समतल कर लेना चाहिए.बुआई के समय खेत में उपयुक्त नमी होनी अति आवश्यक है.यदि भूमि में नमी की कमी हो तो खेत की तैयारी से पूर्व एक सिंचाई अवश्य कर लेनी चाहिए.

उन्नत किस्म

पूसा सावनी

 यह किस्म पहले पीले मोजैक रोग के प्रति अवरोधी थी लेकिन अब यह सुग्राही बन चुकी है.यह एक अच्छी किस्म है और आज भी इसे उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्रों में ग्रीष्म ऋतु में उगाया जाता है. जायद में बुआई के 40-45 दिनों बाद फूल व फल प्राप्त होने लगते हैं.

ये भी पढ़ें:  Onion Export Ban: जारी रहेगा प्याज एक्सपोर्ट बैन, लोकसभा चुनाव के बीच केंद्र सरकार ने किसानों को दिया बड़ा झटका

बुआई का समय

जायद वाली फसल की बुआई फरवरी के द्वितीय सप्ताह से मार्च के अन्त तक की जा सकती है.

बीज दर

जायद के मौसम में अंकुरण कम होने के कारण अधिक बीज की आवश्यकता होती है.अतः एक हैक्टर के लिए 18-20 कि.ग्रा. बीज की आवश्यकता होती है.

भूमि उपचार 

खेत की तैयारी के समय अन्तिम जुताई के साथ कटुआ कीट के नियंत्रण के लिए भूमि में दानेदार फ्यूराडॉन 25 कि.ग्रा. अथवा थिमेट (10 जी) 10-15 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर की दर से मिला लेनी चाहिए.

बीज उपचार 

बुआई के पहले बीज को 24 घंटे पानी में भिगो लें.तत्पश्चात बीजों को निकालकर कपड़े की थैली में बांधकर गर्म स्थान में रख दें तथा अंकुरण होने लगे तभी बुआई करें.बीजजनित रोगों की रोकथाम के लिए बुआई से पूर्व थायरम या कैप्टॉन (2 से 3 ग्राम दवा प्रति कि.ग्रा.) से बीज को उपचारित कर लेना चाहिए.

फसल की सुरक्षा

1-पीला मोजैक

यह रोग सफेद मक्खी द्वारा फैलाया जाता है.इसका प्रकोप होने पर पत्तियों की शिराएं पीली हो जाती हैं.बाद में फल सहित पूरा पौधा पीला हो जाता है.सफेद मक्खी के नियंत्रण के लिए रोगार या मैटासिस्टॉक्स (0.1 प्रतिशत) का छिड़काव पौधे उगने के बाद से ही 10-12 दिनों के अंतराल पर करते रहना चाहिए.

2-चूर्णिल फूंफदी रोग

रोगग्रस्त पौधों पर सफेद पाउडर जैसी हल्की पर्त जमा हो जाती है.पत्तियां पीली पड़ जाती है तथा धीरे-धीरे गिरने लगती हैं.पौधों पर कैराथेन (0.06 प्रतिशत) का छिड़काव 10-15 दिनों के अंतराल पर दो से तीन बार करना चाहिए.

3-फल छेदक

यह कीट बढ़ते हुए फलों में छेद करके हानि पहुंचाता है.इसका लार्वा फलों में छेद करता है.पौधों पर थायोडान (0.2 प्रतिशत) का छिड़काव 10-12 दिनों के अंतराल पर दो तीन बार करना लाभकारी होता है.

4-कटुआ कीट

यह कीट पौधे के उगने के समय पौधे को नीचे से काट देता है, जिससे पौधा सूख जाता है.इससे बचाव के लिए दानेदार फ्यूराडॉन 25 कि.ग्रा. अथवा थिमेट (10 जी) 10 से 15 कि.ग्रा. मात्रा प्रति हैक्टर की दर से खेत की तैयारी के समय मिट्टी में मिला देनी चाहिए.

ये भी पढ़ें: नास‍िक की क‍िसान ललिता अपने बच्चों को इस वजह से खेती-क‍िसानी से रखना चाहती हैं दूर

 

TAGS: