Asian games : किसान के बेटे ने एशियन गेम्स में जीता पदक, चैंपियन बनने के लिए मनरेगा में करनी पड़ी थी मजदूरी, संघर्ष भरी रामबाबू की कहानी

Asian games : किसान के बेटे ने एशियन गेम्स में जीता पदक, चैंपियन बनने के लिए मनरेगा में करनी पड़ी थी मजदूरी, संघर्ष भरी रामबाबू की कहानी

एशियन गेम्स में 35 किलोमीटर पैदल चाल की मिश्रित टीम स्पर्धा में सोनभद्र जिले के रहने वाले रामबाबू ने कांस्य पदक जीतकर जिले का नाम रोशन किया है. रामबाबू ने जब एशियन गेम्स में पदक जीता तो उस दौरान उनके पिता खेतों में पशुओं के लिए घास काटने गए थे. रामबाबू अपने परिवार का पेट पालने के लिए मनरेगा में मजदूरी भी की है और होटल में वेटर का भी काम कर चुके है.

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Asian games : किसान के बेटे ने एशियन गेम्स में जीता पदक, चैंपियन बनने के लिए मनरेगा में करनी पड़ी थी मजदूरी, संघर्ष भरी रामबाबू की कहानी किसान के बेटे ने एशियन गेम्स में जीता पदक

एशियन गेम्स 2023 में उत्तर प्रदेश के खिलाड़ियों का पदक जीतने का शिलशिला जारी है. बुधवार को उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले से भी एक अच्छी खबर आई है. 35 किलोमीटर की पैदल स्पर्धा में रामबाबू ने मंजू रानी के साथ मिलकर कांस्य पदक जीता. रामबाबू ने जब एशियन गेम्स में पदक जीता तो उसे दौरान उनके पिता खेतों में पशुओं के लिए घास काटने गए थे और माँ घर में काम कर रही थी. पिता जब साइकिल से घर लौटे तो उन्हें लोगों ने बताया कि बेटे ने एशियाई गेम्स में जिले का नाम रोशन किया है. इस खबर को सुनने के बाद उनके चेहरे पर खुशी झलकने लगी और बोले आज बेटे ने सीना चौड़ा कर दिया है.

रामबाबू ने पिछले साल गुजरात में हुए राष्ट्रीय खेलों की पैदल चाल स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीता था फिर इसी साल फरवरी में आयोजित राष्ट्रीय पैदल चाल चैंपियनशिप में अपना ही रिकॉर्ड तोड़ते हुए स्वर्ण पदक जीत चुके हैं.

चैंपियन बनने के लिए कभी की मजदूरी तो कभी बने वेटर 

एशियन गेम्स में 35 किलोमीटर पैदल चाल की मिश्रित टीम स्पर्धा में सोनभद्र जिले के रहने वाले रामबाबू ने कांस्य पदक जीतकर जिले का नाम रोशन किया है. उनकी सफलता के पीछे संघर्षों से भरी कहानी है. उन्होंने अपने परिवार का पेट पालने के लिए मनरेगा में मजदूरी भी की है और होटल में वेटर का भी काम किया है.  इसके बावजूद भी उन्होंने गरीबी के सामने हार नहीं मानी. रामबाबू का परिवार आज भी खपरैल के कच्चे मकान में रहता है. पढ़ाई के दौरान ही उन्होंने धावक बनने का निर्णय कर लिया था. इसके लिए गांव की पगडंडी पर अभ्यास भी किया. संसाधन ना होने के बाद भी उनका अभ्यास जारी रहा. खुराक के लिए पैसे नहीं थे तो उन्होंने होटल में वेटर का भी काम किया. कोरोना के दौरान जब होटल बंद हो गए तो पिता के साथ मनरेगा की मजदूरी करने लगे फिर जब हालात सामान्य हुई तो उन्होंने भोपाल में पूर्व ओलंपियन बसंत बहादुर राणा से ट्रेनिंग ली.

हर प्रतियोगिता में तोड़ा अपना ही रिकॉर्ड

सोनभद्र जिले के बहुअरा गांव के भैरवा गांधी टोला के रहने वाले रामबाबू का जीवन संघर्षों से भरा हुआ है. वे साल 2022 में को सुर्खियों में आए. गुजरात में हुए राष्ट्रीय खेलों की पैदल चाल स्पर्धा में उन्होंने नया रिकॉर्ड बनाया और स्वर्ण पदक हासिल किया. उन्होंने 35 किलोमीटर की दूरी महज 2 घंटे 36 मिनट और 34 सेकंड में पूरी की थी. राष्ट्रीय खेल में उन्होंने जुनैद को हराकर स्वर्ण पदक जीता था. इसी साल 15 फरवरी को रांची में आयोजित पैदल चाल चैंपियनशिप में अपना ही रिकॉर्ड तोड़ते हुए 2 घंटे 31 मिनट 36 सेकंड के समय में 35 किलोमीटर की दूरी तय की फिर मार्च में  स्लोवाकिया में अंतरराष्ट्रीय स्पर्धा में उन्होंने प्रतिभाग करते हुए 2 घंटे 29 मिनट 26 सेकंड में यह दूरी तय कर ली. हर बार रामबाबू अपने ही रिकॉर्ड को तोड़कर आगे बढ़ते रहे. अब एशियन गेम्स 2023 में मंजू रानी के साथ मिलकर पैदल चल की स्पर्धा में कांस्य पदक जीतकर जिले का नाम रोशन किया है.

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मजदूरी करके किसान पिता ने बेटे को बनाया चैंपियन

रामबाबू कि इस सफलता के पीछे उनके माता-पिता का बड़ा योगदान है. उनके पिता छोटेलाल खेती मजदूरी करके बेटे को खर्च भेजते रहे. उनकी माता मीना देवी ने भी दूध इकट्ठा करके फिर खोवा बनाकर मंडी में बेचती थी. रामबाबू के साथ-साथ तीन बहनों की परवरिश भी पिता को करनी थी. इसलिए मेहनत भी ज्यादा करनी पड़ी. अभी भी रामबाबू की छोटी बहन की पढ़ाई जारी है लेकिन पिता का हौसला कम नहीं हुआ है.

स्वर्ण पदक जीतने के बाद डीएम ने दिया आवास और हैंडपंप

गुजरात में हुए राष्ट्रीय खेलों में स्वर्ण पदक जीतने के बाद रामबाबू ने मीडिया के सामने पानी की समस्या का भी जिक्र किया था जिसके बाद तत्कालीन जिलाधिकारी ने उनके घर के बाहर एक हैंडपंप लगा दिया जिससे कि उनकी मां को पानी भरने के लिए दूर न जाना पड़े. जिला अधिकारी चंद्र विजय सिंह ने रामबाबू की इच्छा को पूरी करते हुए उन्हें आवास का तोहफा भी दे दिया. इसके अलावा खेती के लिए 10 विस्वा जमीन पट्टे पर उपलब्ध कराई हैं.

 

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