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Millets crops: अमीरों की थाली में गरीबों के भोजन को मिल रही पहचान, मिलेट की बढ़ी अहमियत

Millets crops: अमीरों की थाली में गरीबों के भोजन को मिल रही पहचान, मिलेट की बढ़ी अहमियत

आज पूरी दुनिया उसी मोटे अनाज की तरफ पुनः वापस लौट रही है और बाजार में इन्हें 'सुपर फूड' का दर्जा दिया गया है. बाजार में मोटे अनाज वाले उत्पाद और मल्टीग्रेन आटे की मांग बढ़ रही है. ब्लड प्रेशर कोलेस्ट्रॉल और शुगर का लेवल संतुलित बनाए रखने के लिए मोटा अनाज अमीरों और शहरी मध्य वर्ग के भोजन का अनिवार्य हिस्सा बन गया है. लेकिन इसकी कीमत गरीब किसान पहले चुका है. उसकी थाली का भोजन शहरी अमीर खा रहे हैं.

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मोटे अनाजों का भोजन में बढ़ा स्थान मोटे अनाजों का भोजन में बढ़ा स्थान

आज पूरी दुनिया उसी मोटे अनाज की तरफ पुनः वापस लौट रही है और बाजार में इन्हें 'सुपर फूड' का दर्जा दिया गया है. बाजार में मोटे अनाज वाले उत्पाद और मल्टीग्रेन आटे की मांग बढ़ रही है. ब्लड प्रेशर, कोलेस्ट्रॉल और शुगर का लेवल संतुलित बनाए रखने के लिए मोटा अनाज अमीरों और शहरी मध्य वर्ग के भोजन का अनिवार्य हिस्सा बन गया है. लेकिन इसकी कीमत गरीब किसान पहले ही भर चुका है. उसकी थाली का भोजन शहरी अमीर खा रहे हैं. मोटे अनाज की मांग तो बढ़ रही है, लेकिन उन किसानों से मिलेट 50  साल पहले क्यों धीरे-धीरे दूर कर दिया गया?

हमारे देश में ज्वार, बाजरा, मडुआ, सावां, कोदो, चीना, कौनी इत्यादि की खेती आज से 50 साल पहले अधिक मात्रा में की जाती थी जो हमारे खाने की परंपरा का अहम अंग था. साठ के दशक में आई हरित क्रांति के बाद हम सभी ने अपनी थाली में धीरे-धीरे चावल और गेहूं को सजा लिया और मोटे अनाजों को अपनों से दूर कर लिया था. गेहूं और चावल का उत्पादन तो बढ़ा, लेकिन उसमें पाए जाने वाले पोषक तत्वों की कमी होती गई. जिस अनाज को हम 6000 साल से खा रहे थे, उससे हम ने मुंह मोड़ लिया. लेकिन अब सीमांत और मझोले किसान मोटे अनाजों की पहचान वापस ला रहे हैं.

धान और गेहूं का क्यों बढ़ा कब्जा? 

साठ के दशक के बाद अपने देश में लोगों की भूख मिटाने के लिए केवल मुख्य रूप से चावल और गेहूं की फसल पर निर्भर होते गए. इन्हीं दोनों अनाजों के उत्पादन बढ़ाने के लिए इसकी बुवाई से लेकर कटाई तक के यंत्र और मशीनरी तक विकसित किए गए. इससे किसानों को इसकी खेती आसान लगने लगी और किसानों ने इन दोनों फसलों रकबा बढ़ा दिया. ये दोनों फसलें दूसरे अनाजों की महत्ता को कम करती गईं, जिसका नतीजा रहा पोषक तत्वों वाली फसलें गौण होती चली गईं. देश धान, गेहूं पर निर्भर होता गया जिसमें अधिक रासायनिक खाद और पानी की जरूरत होती है.

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इसके प्रभाव से खेत की मिट्टी की उर्वरता में कमी और उगाए जाने वाले अनाजों में पोषक तत्वों की कमी देखने को मिल रही है. अगर मृदा की उर्वरता की बात करें तो अपने देश में जैव कार्बन की मात्रा 85 फीसदी मृदा में बहुत न्यूनतम है. पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार में जहां मुख्य रूप से धान-गेहूं फसल चक्र की खेती की जाती है. साल 2018-19 के मृदा नमूने के अनुसार, पंजाब और हरियाणा राज्यों में 99 फीसदी, उत्तर प्रदेश 97 फीसदी, बिहार में 82 फीसदी खेतों में जैविक उर्वरता न्यूनतम से कम है. कृषि विशेषज्ञों की मानें तो लगातार एक प्रकार की फसल उगाने के कारण मिट्टी की उर्वरता का ह्रास होता है. इसे खेतों के फसल चक्र में विभिन्नता लाकर दूर किया जा सकता है.

मुख्य अनाजों में पौष्टिक तत्वों की कमी 

धान-गेहूं खेतों से ज्यादा पोषक तत्व ले रहे हैं, लेकिन इन फसलों के अनाज में पोषक तत्वों की कमी होती जा रही है. आहार पोषण मूल्य कम हो गया है. पिछले 50 सालों में चावल में जिंक सांद्रता 33 फीसदी और आयरन सांद्रता 27 फीसदी, गेहूं में जिंक सांद्रता 33 फीसदी और आयरन सांद्रता 19  फीसदी की कमी आई है. आयरन लोगों के शरीर के लिए अहम तत्व है. हीमोग्लोबिन का यह अहम हिस्सा है जो शरीर के विभिन्न हिस्सों में ऑक्सीजन पहुंचाने में मदद करता है.

आयरन की कमी से मनुष्य में थकान, सांस लेने में तकलीफ, नाड़ी की गति, सिर दर्द आदि समस्याएं होती हैं. हार्मोन के उत्पादन के लिए शरीर को आयरन की भी जरूरत होती है. जिंक की कमी से कमजोरी महसूस होना, बार बार दस्त होना, भूख न लगना, वजन घटाना और मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ता है. इन अनाजों से भोजन में जिंक और आयरन की कमी नहीं बल्कि विटामिन, प्रो-विटामिन, विटामिन ई, विटामिन ए और फोलिक एसिड की कमी होती जा रही है. 

सभी तरह से बेहतर हैं मोटे अनाज 

अपने देश में साल 2022- 2023  में मोटे अनाज ज्वार, बाजरा, रागी और छोटे मिलेट्स का उत्पादन 1 करोड़ 70 लाख टन से अधिक है, जो दुनिया का लगभग 20 फीसदी उत्पादन है. डॉ आरपी सिंह, कृषि विज्ञान केंद्र, मोतिहारी, पश्चिम चंपारण ने कहा कि गरीबों के अनाज कहे जाने वाले मोटे अनाज की खेती में ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ती है. यह अनाज कम पानी और कम उपजाऊ भूमि में भी उग जाते हैं. धान, गेहूं, गन्ना की तुलना में बहुत कम पानी देने की जरूरत पड़ती है. इसकी खेती में यूरिया और अन्य रसायनों को कम देना पड़ता है. इसके अलावा जलवायु परिवर्तन के दौर में बेहतर पैदावार दे सकते हैं. इसलिए मोटे अनाज की खेती पर्यावरण के अनुकूल एक बेहतर विकल्प है.

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मोटे अनाजों की खेती में धान, गेहूं फसल की तुलना में लगभग 50 फीसदी कम खर्च लगता है. मोटे अनाजों में पौष्टिकता की भरमार होती है. इन मोटे अनाजों में कैल्शियम, फाइबर, विटामिंस, आयरन और प्रोटीन प्रचुर मात्रा में पाया जाता है जो हमारे भोजन को पौष्टिक बनाते हैं. भारतीय मूल का उच्च पोषण वाला मोटा अनाज रागी है जिसे मडुआ के नाम से भी जाना जाता है. प्रति 100 ग्राम रागी में 344 मिलीग्राम कैल्शियम पाया जाता है. रागी डायबिटीज के रोगियों के लिए अधिक फायदेमंद है. इसमें मौजूद एंटीऑक्सीडेंट नींद की परेशानी और डिप्रेशन से निकालने में मदद करता है.

मोटे अनाज ज्यादा हेल्दी 

डॉ सिंह के अनुसार, मोटे अनाज बाजरा में प्रोटीन की प्रचुर मात्रा पाई जाती है जो हमारी हड्डियों को मजबूत बनाता है. फाइबर की अधिकता के कारण यह पाचन क्रिया में सहायक होता है और वजन कम करने में भी मदद मिलती है. इसमें कैरोटीन भी पाया जाता है जो हमारी आंखों को सुरक्षा प्रदान करता है. इसमें एंटीऑक्सीडेंटअच्छी मात्रा में पाया जाता है जो खराब कोलेस्ट्रॉल के लेवल को रोकने में मदद करता है. ज्वार में मौजूद कैल्शियम हड्डियों को मजबूती देने का काम करता है जबकि कॉपर और आयरन शरीर में लाल रक्त कणिकाओं की संख्या बढ़ाने में और खून की कमी यानी एनीमिया को दूर करने में सहायक होता है. इसमें फास्फोरस और पोटेशियम भी अच्छी मात्रा में पाया जाता है जो बेबी फूड बनाने में प्रयोग किया जाता है.

बाजार का सपोर्ट क्यों है जरूरी?

सरकार भी मोटे अनाज को लेकर काफी उत्सुक दिख रही है. सरकार मोटे अनाज को बढ़ावा देने के लिए कई कार्यक्रम  चला रही है. वही नौ वर्षों के शासन के दौरान ज्वार, बाजरा और रागी के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में 100 से 150 प्रतिशत की भारी वृद्धि हुई है. सरकार के आंकड़ों के मुताबिक, 2014-15 से 2023-24 के बीच ज्वार का एमएसपी 108 फीसदी बढ़ा है. वित्तीय वर्ष 2014-15 में ज्वार का एमएसपी 1,550 रुपये प्रति क्विंटल था, जो 2023-24 में 3,225 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच गया.

इसी तरह बाजरे का एमएसपी 2014-15 में 1,250 रुपये प्रति क्विंटल था, जो 2023-24 में 100 फीसदी बढ़कर 2,500 रुपये प्रति क्विंटल हो गया. रागी का एमएसपी नौ वर्षों में 148 प्रतिशत बढ़कर 1,550 रुपये प्रति क्विंटल से 3,846 रुपये प्रति क्विंटल हो गया. मक्के के मामले में, एमएसपी 2014-15 में 1,310 रुपये प्रति क्विंटल था, जो 2023-24 में 59 प्रतिशत बढ़कर 2,090 रुपये प्रति क्विंटल हो गया. लेकिन मोटे अनाज का फायदा तब मिलेगा जब इन अनाजों की खरीद की व्यवस्था गेहूं और चावल की तरह कर दी जाए जिससे किसानों का उत्साह बना रहे.