दिल्ली में प्रदूषण का स्तर बढ़ाहर साल अक्टूबर और नवंबर का महीना आते ही दिल्ली-एनसीआर की हवा में जहर घुल जाता है. आसमान में धुंध की एक चादर बिछ जाती है, आंखें जलने लगती हैं और सांस लेना मुश्किल हो जाता है. जैसे ही यह 'प्रदूषण का मौसम' शुरू होता है, टीवी चैनलों से लेकर सोशल मीडिया तक एक-दूसरे पर उंगलियां उठाने का खेल शुरू हो जाता है. और इस पूरे खेल में, सबसे आसान निशाना बनाया जाता किसान को. दशकों से यह एक कहानी बन गई थी कि पंजाब और हरियाणा का किसान पराली जला रहा है, इसीलिए दिल्ली का दम घुट रहा है. लेकिन साल 2025 के जो आंकड़े सामने आए हैं, वे इस पूरी कहानी को पलटकर रख देते हैं.
ये आंकड़े एक बड़ा सवाल खड़ा करते हैं. अगर किसान सच में बदल गया है, तो फिर दिल्ली की हवा क्यों नहीं बदली? इस साल प्रदूषण के मौसम में एक हैरान करने वाला, लेकिन बेहद सकारात्मक बदलाव देखने को मिला है. यह कोई छोटी-मोटी बात नहीं है, यह एक ऐतिहासिक बदलाव है.
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान पूसा दिल्ली (IARI) की सैटेलाइट मॉनिटरिंग रिपोर्ट जो 15 सितंबर से 21 अक्टूबर 2025 तक के आंकड़ों पर आधारित है, एक नई सच्चाई बयां कर रही है. ये आंकड़े बताते हैं कि जिन किसानों पर हर साल दिल्ली के प्रदूषण का सबसे बड़ा ठीकरा फोड़ा जाता था, उन्होंने इस साल पराली जलाने में लगभग ना के बराबर काम किया है.
जब हम 15 सितंबर से 21 अक्टूबर के बीच पराली जलाने के आंकड़ों को देखते हैं और उनकी पिछले 5 सालों से तुलना करते हैं, 15 सितंबर से 21 अक्टूबर के बीच के पराली जलाने के आंकड़े एक चौंकाने वाला बदलाव दिखाते हैं. पंजाब में, जहां 2020 में 10,791 मामले थे, वहीं 2025 में यह संख्या घटकर सिर्फ 415 रह गई है, जो 96% से ज्यादा की सीधी गिरावट है.
हरियाणा में भी 2020 के 1,326 मामलों की तुलना में 2025 में सिर्फ 55 मामले 95.8% की कमी दर्ज हुए. यह जबरदस्त गिरावट दिखाती है कि किसान अब बदल गया है. यह बदलाव सिर्फ सरकारी सख्ती से नहीं, बल्कि जागरुकता, पराली न जलाने के फायदों की समझ और नई तकनीक अपनाने से आया है. किसान अब पराली को मजबूरी में जलाने के बजाय उसका सही प्रबंधन करना सीख गया है.
IARI की creams रिपोर्ट के अनुसार, 15 सितंबर से 21 अक्टूबर के बीच
पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने की घटनाएं (2020 - 2025)
| राज्य | साल 2020 | साल 2021 | साल 2022 | साल 2023 | साल 2024 | साल 2025 |
| पंजाब | 10,791 | 4,327 | 3,114 | 1,764 | 1,510 | 415 |
| हरियाणा | 1,326 | 1,368 | 771 | 689 | 655 | 55 |
| कुल योग | 12117 | 5695 | 3885 | 2453 | 2165 | 479 |
हमें यह भी समझना होगा कि किसान पहले पराली जलाता क्यों था. यह उसका कोई शौक नहीं था, बल्कि एक बहुत बड़ी मजबूरी थी. धान की फसल कटने के बाद किसान के पास गेहूं की बुवाई के लिए बहुत कम समय सिर्फ 15 से 20 दिन होता है. अगर गेहूं की बुवाई में देरी होती, तो इसका सीधा असर उसकी अगली फसल के उत्पादन पैदावार पर पड़ता. धान के जो अवशेष, यानी पराली, खेत में बच जाते थे, उन्हें खेत से हटाने के लिए मजदूरों पर बहुत खर्च आता था.
ऐसे में, समय बचाने और अगली फसल की तैयारी करने के लिए किसान के पास सबसे सस्ता और तेज रास्ता बचता था पराली में आग लगा देना. वह यह मजबूरी में करता था, ताकि उसकी गेहूं की फसल समय पर लग सके. जैसे ही किसानों को पराली का समाधान मिलना शुरू हुआ, उन्होंने उसे तुरंत अपनाया. 'पूसा डीकंपोजर' जैसे जैविक घोल हों या 'हैप्पी सीडर' जैसी मशीनें, किसानों ने अपना पैसा खर्च करके भी इन तकनीकों को अपनाया. उन्होंने पराली जलाना कम कर दिया क्योंकि वे अपने 'सामाजिक दायित्व' को समझते हैं. वे भी जानते हैं कि साफ हवा उनके अपने बच्चों के लिए भी जरूरी है.
अब सबसे अहम सवाल है. जब पिछले पांच सालों में पराली का धुआं 96% तक कम हो गया है, तो दिल्ली की हवा आज भी 'खराब' और 'बहुत खराब' श्रेणी में क्यों है? इसका एक ही सीधा मतलब निकलता है: दिल्ली के प्रदूषण के लिए सिर्फ किसान को दोष देना या उसे 'बली का बकरा' बनाना हमेशा से ही गलत था. किसान समस्या का एक छोटा सा हिस्सा हो सकता था, लेकिन वह पूरी समस्या कभी नहीं था. किसान ने तो अपना हिस्सा 96 फीसदी तक कम कर दिया, लेकिन दिल्ली की हवा फिर भी जहरीली है.
अगर किसान जिम्मेदार नहीं है, तो फिर कौन है? जवाब है दिल्ली खुद दिल्ली के असली गुनाहगार उसकी अपनी सीमाओं के 'अंदर' ही मौजूद हैं, जो साल के 365 दिन हवा में जहर घोलते हैं. इस साल दिवाली के बाद दिल्ली की हवा और ज्यादा जहरीली हो गई. राजधानी का वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) बढ़कर 351 तक पहुंच गया, जो इस सीजन का पहला 'गंभीर' स्तर था. यह 2021 के बाद से दिवाली का सबसे खराब प्रदूषण स्तर माना जा रहा है.
दिवाली से पहले के आठ दिनों में दिल्ली का औसत AQI 233 था, लेकिन सिर्फ दो दिनों में ही हवा खतरनाक स्तर पर पहुंच गई. रिपोर्ट्स बताती है कि इस साल दिवाली के बाद वायु प्रदूषण में करीब 50% की बढ़ोतरी हुई, जो 2021 के बाद से सबसे तेज उछाल है. आमतौर पर यह उछाल 10 से 25 प्रतिशत होता था, लेकिन इस साल यह लगभग दोगुना हो गया. साथ ही, मौसम में ठंड बढ़ने के कारण हवा भारी हो जाती है और हवा में मौजूद कण (प्रदूषक) नीचे ही जम जाते हैं, जिससे प्रदूषण का स्तर और खतरनाक हो जाता है.
पराली का धुआं तो साल में बस 15-20 दिन की बात थी. असली समस्या तो दिल्ली के 'अंदर' है, जो 365 दिन प्रदूषण फैलाती है. दिल्ली की सड़कों पर लाखों गाड़ियां 24 घंटे धुआं छोड़ती हैं. हर कोने में चल रहे कंस्ट्रक्शन से उड़ने वाली धूल और फैक्ट्रियों का धुआं हवा को लगातार खराब कर रहा है. किसानों ने पराली न जलाकर जो बड़ा बदलाव दिखाया है, उससे यह शीशे की तरह साफ हो गया है कि दिल्ली को साफ हवा के लिए दूसरों पर नहीं, बल्कि खुद पर उंगली उठानी होगी. पराली का सच यह है कि किसान बदल चुका है.
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today