मक्का की खेती खरीफ की फसल के रूप में की जाती है. यह अनाज वाली फसलों में सबसे बड़े दाने की फसल है. इसके दानों का इस्तेमाल कई तरह के खाद्य उत्पादों में किया जाता है. इसकी खेती ज्यादातर उत्तर भारत में की जाती है. अनाज के रूप में यह लाभकारी फसल है. कृषि वैज्ञानिक देवी लाल धाकड़, शिवम मौर्य , गोवर्धन लाल कुम्हार और दलीप बताते हैं कि मूल्यवान होने के बावजूद इस फसल में कई प्रकार के रोग पाए जाते हैं. ये रोग किसी न किसी प्रकार से पोषक तत्वों की कमी के कारण उत्पन्न होते हैं. इनके लक्षण फसल पर पहले से ही देखने को मिल जाते हैं.ऐसे मेन किसान सही समय लक्षण देख समस्या दूर सकर सकते हैं.
वैज्ञानिक बताते हैं कि मक्का में पोषक तत्व की कमी के लक्षण बहुत ही कम अवस्थाओं में देखे गये हैं. शुरू में पौधों की नई पत्तियों पर शिराओं के बीच में सफेद, अनियंत्रित आकार के धब्बे पाये जाते हैं. ये धब्बे आपस में मिलकर सफेद धारी का रूप ले लेते हैं. इन पौधों की पोरियों की लम्बाई नहीं बढ़ती.
पोटाश की कमी से पौधा और उसकी गांठें छोटी रह जाती हैं. नीचे की पत्तियों के किनारे शुरू में पीले और बाद में गहरे भूरे रंग के होकर सूखने लगते हैं. इसे झुलसन कहते हैं.
फसल में 30-40 कि.ग्रा. पोटेशियम प्रति हैक्टर दें. पोटेशियम की पूरी मात्रा बुआई के समय पंक्तियों में सीडड्रिल या देसी हल के साथ 6-8 सें.मी. गहरा करके दें.
शुरू में पत्तियों पर हल्की धारियां पायी जाती हैं. ये बाद में सफेद या पीली पत्तियों में बदल जाती हैं. ये धारियां पत्तियों के बीच से लेकर आधार तक प्रायः पूरी चौड़ाई में होती हैं. इसे श्वेत कलिका रोग कहते हैं.
जिंक की कमी होने पर 25 कि.ग्रा. जिंक सल्फेट प्रति हैक्टर को बुआई के समय दें.
इसकी कमी से पौधों की नीचे वाली पत्तियों में सफेद या पीली धारियां बन जाती हैं. ये धारियां शिराओं के बीच में फैल जाती हैं, किन्तु शिरायें हरी बनी रहती हैं. बाद में पुरानी पत्तियां लाल हो जाती हैं. छोटी पौध में ऊपर की सभी पत्तियां पीली पड़ जाती हैं.
10 कि.ग्रा. मैग्नीशियम सल्फेट 100 गैलन पानी में पत्तियों पर छिडकाव करने से भी पौधों को पर्याप्त मैग्नीशियम मिल जाता है.
पुरानी पत्तियां सिरे की ओर किनारे से मरना प्रदर्शित करती हैं. अन्त में शिराओं के बीच-बीच में भी पत्तियां मर जाती हैं और नई पत्तियां मुरझा जाती हैं. इस प्रकार किसान मक्का के पौधे पर पोषक तत्वों की कमी से दिखने वाले लक्षण को पहचानकर सम्बन्धित पोषक तत्वों के उर्वरकों को प्रयोग कर मक्का का अधिक उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं.
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