बेकार जमीन जो किसी काम की नहीं रही, खासतौर से एग्रीकल्चर के मतलब से. लेकिन ऐसी जमीन भी हर चार महीने में एक एकड़ एरिया से चार लाख रुपये की इनकम कराए तो चौंकना लाजमी है. वो भी तब जब नुकसान की संभावना ना के बराबर हो. पंजाब और हरियाणा से लेकर गुजरात तक ऐसी ही बेकार जमीन का इस्तेमाल कर चार से पांच लाख रुपये कमाए जा रहे हैं. एक साल में तीन-तीन बार झींगा मछली की फसल ली जा रही है. फसल भी ऐसी जिसकी लोकल मार्केट के साथ-साथ इंटरनेशनल मार्केट में भी डिमांड है.
मनोज शर्मा गुजरात में झींगा लाला के नाम से जाने जाते हैं. साल 1994 में मनोज ने गुजरात में चार एकड़ से झींगा की शुरुआत की थी. आज मनोज समेत बहुत सारे दूसरे लोग करीब चार हजार एकड़ जमीन पर झींगा की खेती कर रहे हैं. वो भी उस जमीन पर जो खारे पानी के चलते किसी भी तरह की खेती लायक नहीं बची थी.
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मछलियों के डॉक्टर मनोज शर्मा ने किसान तक को बताया कि कोस्ट एरिया में समुंद्री पानी के चलते और मैदानी एरिया में ग्राउंड वॉटर के चलते खेती की जमीन खारी हो गई है. इस पर अब किसी भी तरह की खेती नहीं की जा सकती है. उत्तर भारत में भी लाखों एकड़ जमीन खारी हो गई है. लेकिन झींगा पालन के लिए ऐसी ही जमीन की जरूरत होती है. सबसे बड़ी बात यह कि जो मुनाफा झींगा से होता है उतना मुनाफा तो एक एकड़ में केला, गन्ना और गेहूं की फसल भी नहीं दे सकती है.
अगर बहुत अच्छी कंडीशन की बात करें तो एक एकड़ में चार से साढ़े चार टन तक झींगा तैयार हो जाता है. अगर फसल किसी वजह से कमजोर रह भी जाती है तो साढ़े तीन टन तक माल फिर भी आ जाता है. 90 दिन बाद फसल बिकने के लिए तैयार हो जाती है. 14 से 15 ग्राम के झींगा की डिमांड है तो 90 दिन बाद बेचा जा सकता है. अगर 30 ग्राम वजन वाले झींगा की डिमांड है तो 120 दिन के बाद बेच सकते हैं.
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30 ग्राम वाला झींगा 400 रुपये किलो से ऊपर ही बिक रहा है. जबकि 14 से 15 ग्राम वाला झींगा 350 और 360 रुपये किलो तक बिक रहा है. अगर लागत की बात करें तो नमकीन यानि खारी जमीन हो तो उसमे बस ग्राउंड वॉटर भरना है. उसके बाद एक एकड़ जमीन पर झींगा का एक लाख से एक लाख बीस हजार बीज छोड़ना है. एक लाख रुपये तक में इतना बीज आ जाएगा. इसके बाद उसकी देखभाल करनी है और दाना देना है.
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