सरकार ने चावल की भूसी के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया हैसफेद चावल के निर्यात पर बैन के बाद सरकार ने चावल की भूसी (Rice Bran) पर भी प्रतिबंध लगा दिया है. जिस चावल की भूसी से तेल निकाला जा चुका है, उस भूसी का अब निर्यात नहीं होगा. अभी तक धड़ल्ले से इसका निर्यात होता था, लेकिन महंगाई को देखते हुए सरकार ने यह बड़ा कदम उठाया है. फैसले के मुताबिक, सरकार ने 30 नवंबर तक भूसी के निर्यात को बैन कर दिया है. वजह की बात करें तो देश में दूध और दूध से बने प्रोडक्ट के बढ़ते रेट को देखते हुए सरकार ने यह फैसला लिया है. आपको बता दें कि चावल की भूसी पशु आहार, पोल्ट्री और मछलियों के फीड और दाने में बड़े पैमाने पर इस्तेमाल होता है. इन दानों में भूसी का प्रयोग 25 फीसद तक होता है. हाल के दिनों में दूध और उससे बने प्रोडक्ट जिस हिसाब से महंगे हुए हैं, उसे देखते हुए सरकार ने चावल की भूसी के निर्यात को रोक दिया है.
दूध, मछली, मीट और पोल्ट्री का दाम आजकल इसलिए बढ़ा है क्योंकि दाने के दाम में बढ़ोतरी है. इस दाने में चावल की भूसी का प्रयोग होता है. चावल की भूसी हाल के दिनों में महंगी हो गई है और पिछले कुछ हफ्तों में 15,000 रुपये प्रति टन से बढ़कर इसका भाव 18,500 रुपये प्रति टन तक पहुंच गया है. साल 2022-23 में भारत में तकरीबन 55 लाख टन भूसी का उत्पादन हुआ था जबकि उससे एक साल पहले यह उत्पादन 50 लाख टन था. हालांकि 55 लाख टन में से केवल 600,000 टन भूसी का ही निर्यात हो पाया है क्योंकि अधिकांश मात्रा देश में ही खपत होती है.
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देश में भूसी का सबसे अधिक उत्पादन पश्चिम बंगाल में होता है. इसके अलावा देश के पूर्वोत्तर राज्यों की भी इसमें बड़ी हिस्सेदारी है. लेकिन समस्या ये है कि देश के पूर्वी और उत्तरी हिस्से में भूसी और उससे जुड़े उद्योगों की भारी कमी है. यहां तक कि खपत भी अधिक नहीं है. यही वजह है कि यहां से भूसी की अधिक मात्रा निर्यात में निकल जाती है. एक सवाल ये भी उठता रहा है कि जब देश के पूर्वी और पूर्वोत्तर हिस्से में भूसी की अधिक मात्रा है तो उसे बाकी हिस्सों में भी पहुंचाया जा सकता है. इस पर सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया यानी कि SEA का कहना है कि भूसी की ढुलाई इतनी महंगी है कि उससे रेट में बेतहाशा बढ़ोतरी हो सकती है.
भूसी के निर्यात पर बैन के असर की बात करें तो इस बारे में एसईए ने विस्तार से जानकारी दी है. एसईए का कहना है कि भूसी के निर्यात पर बैन लगने से तिलहन का क्षेत्र प्रभावित होगा, साथ में तिलहन किसान भी जद में आएंगे. राइस मिलिंग इंडस्ट्री के साथ राइस ब्रान ऑयल के उत्पादन पर भी असर पड़ने की बात कही जा रही है. एक्सपर्ट बताते हैं कि भूसी का निर्यात बंद होने से उसकी प्रोसेसिंग कम होगी जिससे राइस ब्रान ऑयल का उत्पादन घटेगा. इससे ब्रान ऑयल के रेट में वृद्धि होगी. यह वृद्धि आम लोगों की जेब पर इसलिए भारी पड़ेगी क्योंकि देश में खाद्य तेलों के दाम पहले से ही बढ़े हुए हैं.
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दूध के बढ़े दाम को देखते हुए सरकार ने भूसी के निर्यात पर बैन लगाया है. पिछले तीन साल में दूध के दाम में 22 फीसद की तेजी है. केवल एक साल में ही 10 फीसद तक रेट बढ़े हैं. किसानों का कहना है कि कोविड के दौरान ऑक्सीजन सिलेंडर की कमी हुई जिससे कृत्रिम गर्भाधान की प्रक्रिया प्रभावित हुई और उससे बछड़ों की जन्म दर घट गई. इसका नतीजा हुआ कि दूध का उत्पादन घट गया. उत्पादन घटते ही दाम में उछाल देखा गया.
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