गन्ने के लिए रेड रॉट बीमारी बेहद खतरनाकउत्तर प्रदेश में Co 0238 गन्ना किस्म ने एक समय में अभूतपूर्व सफलता हासिल की थी. साल 2019-20 सीज़न में, इसने राज्य में 22 लाख हेक्टेयर क्षेत्र पर कब्जा कर लिया था, जो उत्तर प्रदेश के कुल गन्ना क्षेत्र का लगभग 82.21 फीसदी था. इसकी उच्च उपज और चीनी की मात्रा के कारण यह किसानों और चीनी मिलों दोनों की पसंदीदा बन गई थी. रेड रॉट बीमारी के चलते Co 0238 का रकबा अब लगातार घटाने के मजबूर है. चीनी मिलें और गन्ना विकास विभाग अब किसानों को इस किस्म को न बोने की सलाह दे रहे हैं. वर्ष 2024-25 में राज्य के कुल गन्ना क्षेत्र 28.25 लाख हेक्टेयर में से Co 0238 प्रजाति का क्षेत्र घटकर 44.45 फीसदी हो गया है.
इस रोग का मुख्य कारण एक नया और अधिक उग्र रोगज़नक़ (virulent pathotype) है, जिसे हाल ही में CF13 नाम दिया गया है. यह नया रोगज़नक़ विशेष रूप से Co 0238 किस्म को अत्यधिक प्रभावित कर रहा है, और इसी के उत्पन्न होने के कारण Co 0238 में किस्मों की प्रतिरोधी क्षमता टूटने लगी है. यह स्थिति उत्तर प्रदेश के गन्ना उद्योग के लिए एक बड़ी चुनौती पेश कर रही है. इस बात की चिंता प्रेस क्रांफेस में कृषि मंत्री शिवराज सिंह ने जताई थी.
भारत में गन्ने की 50 से अधिक बीमारियां दर्ज की गई हैं, लेकिन रेड रॉट (लाल सड़न) इनमें सबसे विनाशकारी बीमारियों में से एक है. अतीत में, इस रोग ने Co 312, Co 658, Co 997, Co 1148, Co 6304, CoC 671, CoC 8001, CoC 85061, CoC 86062, CoC 90063, CoC 92061, CoJ 64, CoSe 92423, CoS 8436 जैसी कई बेहतरीन व्यावसायिक गन्ना किस्मों को पूरी तरह से खत्म कर दिया है. आज भी, चीनी उद्योग रेड रॉट के कारण गंभीर समस्याओं का सामना कर रहा है, जिससे इसकी उत्पादकता और लाभ पर बुरा असर पड़ रहा है.
भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान (ICAR-IISR), लखनऊ के पूर्व निदेशक, डॉ. आर. विश्वनाथन के अनुसार, गन्ने की सबसे लोकप्रिय किस्म Co 0238 को 2009 में में जारी किया गया था. इसकी औसत पैदावार 80 टन प्रति हेक्टेयर से अधिक थी. इसमें गन्ने के जूस में सुक्रोज सामग्री 18 से लेकर 20% तक मिलता थी. इसके कारण, किसानों और मिल मालिकों दोनों ने इस किस्म को खुले हाथों से अपनाया. इसकी इन खूबियों ने चीनी मिलों को अपने कमांड क्षेत्रों में Co 0238 का अंधाधुंध विस्तार किया. साल 2019-20 सीज़न के दौरान, यह अद्भुत किस्म पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और बिहार जैसे 5 प्रमुख गन्ना उत्पादक राज्यों में 25.8 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में खेती की जा रही थी, जो इन राज्यों के कुल गन्ना क्षेत्र का 79.2 फीसदी था.
Co 0238 ने उद्योग को 12 फीसदी से अधिक की रिकॉर्ड चीनी रिकवरी के साथ अत्यधिक लाभ पहुंचाया. 2020 के सीज़न में, उत्तर प्रदेश की कुछ चीनी मिलों ने तो 13 फीसदी से अधिक की चीनी रिकवरी दर्ज की, जो इन क्षेत्रों में अब तक की सबसे अधिक रिकवरी थी. लेकिन 2017 में इस "वंडर किस्म" Co 0238 पर लाल सड़न रोग (रेड रॉट) की काली छाया पड़नी शुरू हो गई. इस गंभीर चुनौती को देखते हुए, भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान, लखनऊ ने सुझाव दिया है कि गन्ने को इस रोग की जकड़ से बाहर निकालने के लिए चीनी मिलों को अपने कमांड क्षेत्र में Co 0238 की खेती 40 प्रतिशत क्षेत्र तक सीमित कर देनी चाहिए.
रेड रॉट से संक्रमित होने पर गन्ने की फसल की गुणवत्ता और मात्रा दोनों में भारी गिरावट आती है, जिससे किसानों को आर्थिक नुकसान होता है. यह रोग अगली फसल के लिए तैयार होने वाली पेड़ी (ratoon) को भी कमजोर कर देता है, जिससे उसकी गुणवत्ता खराब हो जाती है और भविष्य की फसल प्रभावित होती है. संक्रमित गन्ने से प्राप्त बीज स्वस्थ नहीं होते, जिससे बुवाई के लिए गुणवत्ता वाले बीज की उपलब्धता में कमी आती है और रोग का प्रसार भी बढ़ता है. रोगग्रस्त गन्ने की गुणवत्ता खराब होने के कारण बाजार में उसका मूल्य कम मिलता है, जिससे किसानों की आय प्रभावित होती है. एक किस्म में रेड रॉट का प्रकोप अन्य स्वस्थ किस्मों में भी फैलने का खतरा पैदा करता है, जिससे पूरे क्षेत्र की गन्ना खेती खतरे में पड़ जाती है.
रेड रॉट रोग से प्रभावित गन्ने में चीनी की मात्रा कम हो जाती है, जिससे मिलों में चीनी की रिकवरी दर घट जाती है और उत्पादन पर नकारात्मक असर पड़ता है. रोगग्रस्त गन्ने से प्राप्त जूस की गुणवत्ता खराब होती है, जिससे चीनी उत्पादन प्रक्रिया और अंतिम उत्पाद की गुणवत्ता प्रभावित होती है. गुणवत्ता वाले गन्ने से चीनी निकालने की प्रक्रिया में मोलासेस (शीरा) की मात्रा बढ़ जाती है, जिससे चीनी का प्रतिशत कम हो जाता है. गन्ने के खराब होने से खोई (गन्ने का अवशेष, जिसका उपयोग ईंधन के रूप में होता है) की मात्रा भी कम हो जाती है, जिससे मिलों की ऊर्जा लागत बढ़ सकती है.
जब कोई प्रमुख किस्म रेड रॉट के कारण अपनी प्रतिरोधी क्षमता खो देती है, तो उसे नई किस्मों से बदलना पड़ता है, जिसमें अनुसंधान, विकास और किसानों तक नई किस्मों को पहुंचाने की भारी लागत आती है. रेड रॉट के गंभीर प्रकोप वाले क्षेत्रों में गन्ना उत्पादन और चीनी उत्पादकता में भारी गिरावट आती है, जिसका देश के समग्र चीनी उत्पादन और अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है. रेड रॉट का यह बढ़ता प्रसार भारतीय गन्ना उद्योग के लिए एक गंभीर चुनौती है, जिसके लिए तत्काल और प्रभावी प्रबंधन रणनीतियों की जरूरत है.
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